आशरीन सुल्ताना से शादी करने पर नागराजू की हत्या का मुसलिम समाज ने निंदा की। वे समर्थन में नहीं आए, बल्कि विरोध किया। लेकिन क्या अब नागराजु की हत्या का इस्तेमाल मुसलिम विरोधी नफ़रत के लिए नहीं किया जा रहा है?
क्या हिंदी को पूरे देश पर थोपने की कोशिश की जा रही है? क्या इस भाषा का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है? अगर ऐसा है तो यह निश्चित रूप से बेहद चिंता की बात है।
बीते दिनों कई राज्यों में हुई सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं इसी ओर इशारा करती हैं कि समाज से सहानुभूति को खत्म करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। भारत के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।
असम से लेकर कर्नाटक और उत्तर प्रदेश तक मुसलमानों के खिलाफ नफरती अभियान क्यों चलाया जा रहा है? और इसके लिए हिंदुओं के धार्मिक अवसरों का इस्तेमाल क्यों हो रहा है?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के कमरे में उनके पीछे गाँधी की तसवीर की अनुपस्थिति को लेकर लगातार सवाल पूछा जा रहा है। गाँधी की तसवीर न होने के पीछे क्या वजह हो सकती है?
पांच राज्यों के बहुसंख्यकवादी जनादेश के बाद क्या धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए रास्ता ख़त्म हो जाएगा? क्या अल्पसंख्यक समुदाय के हक़ों की हिफाजत हो सकेगी?
भारत क्या अंतरराष्ट्रीय मामलों में दखल देने की हालत में नहीं है, क्या वह कमजोर देशों का मित्र भी नहीं रह गया है? केंद्र सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी लाचार क्यों दिखी है?
कर्नाटक में चल रहे हिजाब विवाद के बीच श्रीलंका के एक कार्टूनिस्ट का कार्टून आया है। कार्टून देखकर धक्का लगता है, शर्म आती है कि यह भारत की कैसी छवि दुनिया में बन रही है?
हरिद्वार की धर्म संसद में मुसलमानों का नरसंहार करने की बातें कही गई। इसके अलावा भी कई तरह का जहरीला प्रचार चल रहा है। क्या यह नस्लकुशी की जमीन तैयार करने की कोशिश है?
हरिद्वार में आयोजित हुई धर्म संसद में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती और भड़काऊ बयानबाज़ी की गई। बीजेपी में किसी ने इसकी निंदा नहीं की और प्रधानमंत्री मोदी ने भी मुगल शासन को लेकर तमाम बातें कहीं।
पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचार के ख़िलाफ़ वहां की सरकारों ने सख़्ती दिखाई है लेकिन भारत इस मामले में पीछे क्यों दिखता है।
केनोशा में पिछले साल हुए नस्लभेद विरोधी प्रदर्शन के दौरान दो लोगों की हत्या के अभियुक्त काइल रिटेनहॉउस को रिहा कर दिए जाने से क्या अमेरिका में नस्लवाद और बढ़ेगा?