क्या है प्रेमचंद में अगर वह कोरा आदर्शवाद नहीं है? उन्हें पढ़ें कैसे, यह ऐसी समस्या है, जिसपर उनके समकालीनों से लेकर आज तक सक्रिय रचनाकार विचार करते रहे हैं। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला।
कृष्ण जन्माष्टमी अभी गुजरी है। अमूमन इस रोज़ सोशल मीडिया पर उर्दू/मुसलमान शायरों की कृष्ण भक्ति या कृष्ण महिमा में लिखी गई कविताएँ उद्धृत की जाती रही हैं। इस वर्ष यह उत्साह कम दिखलाई पड़ा।
हिन्दू-मुसलिम एकता, प्रेम, विवेक और सौहार्द्र के बारे में प्रेमचंद की क्या राय थी, बता रहे हैं अपूर्वानन्द। सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 13वीं कड़ी में।
क्या हमें मान लेना चाहिए कि 2020 का 5 अगस्त भारतीय गणतंत्र के पहले संस्करण का अवसान और दूसरे संस्करण का जन्म दिवस है? क्या इसकी चमक दमक 15 अगस्त की आभा को धूमिल कर देगी?
पिछले दिनों प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की याद बार-बार दिलाई गई है। भारत की अदालतों में जो कुछ भी हो रहा है, उसके संदर्भ में। ख़ासकर प्रशांत भूषण पर अदालत की हतक के मुकदमे के सिलसिले में। प्रेमचंद जयंती पर सत्य हिन्दी की विशेष पेशकश अपूर्वानंद की कलम से।
प्रेमचंद को लेकर साहित्यवालों में कई बार दुविधा देखी जाती है। उनका साहित्य प्रासंगिक तो है लेकिन क्यों? क्या ‘गोदान’ इसलिए प्रासंगिक है कि भारत में अब तक किसान आत्महत्या कर रहे हैं?
माखनलाल चतुर्वेदी ठीक ही प्रेमचंद की ‘कठोर मज़दूरी को चिह्नित करते हैं। उनकी भाषा जो इतनी सहज जान पड़ती है, पानी की तरह बहती हुई, उसके पीछे शब्दों और भाषा की दीर्घ साधना तो है ही, ख़ुद का उनके साथ घोर परिश्रम है।
उमर अब्दुल्ला नाराज़ हैं। भारत के विपक्ष से, संसद से और अपने आप से। अपने साथ किए गए धोखे से वह नाराज़ हैं। वह क्षुब्ध हैं कि जम्मू और कश्मीर की रही-सही स्वायत्तता का अपहरण कर लिया गया और उसके दो टुकड़े कर दिए गए।
भारत में मुक्ति या क्रांति के नाम पर हिंसा की वैधता को लेकर तीखी बहस रही है। प्रेमचंद इस पर क्या सोचते थे और उनके विचार दार्शनिक अल्बेयर कामू के विचार से किस तरह भिन्न थे, बता रहे हैं अपूर्वानंद।
प्रेमचंद मानव समाज के बारे में क्या सोचते थे, वह मनुष्य की ज़िन्दगी को ऊपर उठाने के बारे में क्या राय रखते थे? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला, आठवीं कड़ी।
हिंदी साहित्य में किसी प्रेमचंद-युग की चर्चा नहीं होती, उर्दू साहित्य में भी शायद नहीं। लेकिन यह कहना बहुत ग़लत न होगा कि अज्ञेय हों या जैनेंद्र या और भी लेखक, वे प्रेमचंद-युग की संतान हैं।..प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की सातवीं कड़ी।
प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर अपूर्वानंद बता रहे हैं कि ‘ईदगाह’ की याद इस प्रसंग में सहज ही आती है। प्रेमचंद का प्यारा हामिद हास्यपूर्ण युक्तियों का सहारा लेता है अपने दोस्तों से बदला लेने का।
प्रेमचंद के हास्य बोध, उनकी करुणा और गढ़ी गई भाषा पर यह लेख लिखा है कि अपूर्वानंद ने। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर यह सत्य हिन्दी की विशेष पेशकश है।
शायद अब वक़्त आ गया है कि इसे किसी एक ख़ास मुल्क या मज़हब या समुदाय को लगनेवाली बीमारी न मानकर वैसे ही महामारी माना जाए जैसे हम कोरोना वायरस के संक्रमण को मानते हैं।
प्रेमचंद 140 के हुए। नहीं, यह कहना पूरी तरह सही न होगा। प्रेमचंद तो कुल जमा 110 के हुआ चाहते हैं। इनकी पैदाइश 1910 की है। उसके पहले का अवतार था नवाब राय।
तो क्या अब दुनिया भर के मुसलमानों के लिए यह जश्न का मौक़ा है? यह कि हागिया सोफ़िया या हाया सोफ़िया अब फिर से मसजिद है? वह जो कल तक संग्रहालय थी? उसके पहले मसजिद? और उसके भी पहले एक गिरजाघर?
आज जो चीन के सम्पूर्ण बहिष्कार का नारा दे रहे हैं, वे कल तक अफ़सोस कर रहे थे कि चीन ने विकास की जो ऊँचाइयाँ हासिल कर ली हैं, हम उनके क़रीब भी क्यों नहीं पहुँच पाए हैं।
राजनीति में झूठ बोलना क्या एक नये दौर में पहुँच गया है। अमेरिका में तो मीडिया ने ट्रम्प के झूठ की लंबी फेहरिस्त तक छापी है। इस पर शोध हुए हैं कि उनके लगातार झूठ और ग़लत तथ्यों की जानकारी देने की ख़बरें छपने के बावजूद जनता और झूठ क्यों माँगती है।