अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कांग्रेस के अहिंसक आन्दोलन के पीछी भी किसी तरह की हिंसा छिपी थी? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष कड़ी में पढ़ें अपूर्वानंद को।
सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने प्रशांत भूषण को बताया है कि अपनी ग़लती मान लेने से कोई छोटा नहीं हो जाता। इस प्रसंग में, जैसा भारत में हर प्रसंग में करने का रिवाज है, न्यायमूर्ति ने महात्मा गाँधी का सहारा लिया।
गाँव से कुएँ अब गायब हो रहे हैं, सामूहिकता ख़त्म हो रही है। ऐसे में प्रेमचंद की कहानी को एक बार फिर याद कर रहे हैं लेखक अपूर्वानंद। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 23 वीं कड़ी।
प्रेमचंद का पूरा जीवन दर्शन तार्किकता और विवेक की नींव पर टिका हुआ है। राष्ट्रीयता और जाति भेद के बारे में क्या सोचते थे प्रेमचंद? प्रेमंचद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हि्न्दी की विशेष श्रृंखला में पढ़े अपूर्वानंद को।
प्रेमचंद गांधी की राजनीति ही नहीं, उनके सामाजिक सरोकारों से भी प्रभावित थे। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला में पढ़ें अपूर्वानंद को।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य में जाति व्यवस्था पर गहरी चोट की है। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 20 वीं कड़ी में पढ़ें अपूर्वानंंद को।
जैन धर्म का मानव संस्कृति को योगदान ही माना जाएगा कि उसने क्षमायाचना को एक सामुदायिक या सार्वजनिक भाव के रूप में प्रतिष्ठित किया। पढ़ें अपूर्वानंद का लेख।
प्रेमचंद साहित्य में हम पाते हैं, अपने समय के बोध का अर्थ है अपनी सीमितता का बोध। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 18 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
हिंदी और उर्दू के स्वरूप पर प्रेमचंद क्या सोचते थे? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 17 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
थाने पर भीड़ का इकट्ठा होना, उत्तेजित हो जाना, हिंसा पर उतर आना यह किसी भी तरह स्वीकार्य प्रतिक्रिया नहीं है। यह स्वाभाविक नहीं है, यह संगठित है और नियोजित है।
क्या है प्रेमचंद में अगर वह कोरा आदर्शवाद नहीं है? उन्हें पढ़ें कैसे, यह ऐसी समस्या है, जिसपर उनके समकालीनों से लेकर आज तक सक्रिय रचनाकार विचार करते रहे हैं। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला।
कृष्ण जन्माष्टमी अभी गुजरी है। अमूमन इस रोज़ सोशल मीडिया पर उर्दू/मुसलमान शायरों की कृष्ण भक्ति या कृष्ण महिमा में लिखी गई कविताएँ उद्धृत की जाती रही हैं। इस वर्ष यह उत्साह कम दिखलाई पड़ा।
हिन्दू-मुसलिम एकता, प्रेम, विवेक और सौहार्द्र के बारे में प्रेमचंद की क्या राय थी, बता रहे हैं अपूर्वानन्द। सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 13वीं कड़ी में।
क्या हमें मान लेना चाहिए कि 2020 का 5 अगस्त भारतीय गणतंत्र के पहले संस्करण का अवसान और दूसरे संस्करण का जन्म दिवस है? क्या इसकी चमक दमक 15 अगस्त की आभा को धूमिल कर देगी?
पिछले दिनों प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की याद बार-बार दिलाई गई है। भारत की अदालतों में जो कुछ भी हो रहा है, उसके संदर्भ में। ख़ासकर प्रशांत भूषण पर अदालत की हतक के मुकदमे के सिलसिले में। प्रेमचंद जयंती पर सत्य हिन्दी की विशेष पेशकश अपूर्वानंद की कलम से।
प्रेमचंद को लेकर साहित्यवालों में कई बार दुविधा देखी जाती है। उनका साहित्य प्रासंगिक तो है लेकिन क्यों? क्या ‘गोदान’ इसलिए प्रासंगिक है कि भारत में अब तक किसान आत्महत्या कर रहे हैं?
माखनलाल चतुर्वेदी ठीक ही प्रेमचंद की ‘कठोर मज़दूरी को चिह्नित करते हैं। उनकी भाषा जो इतनी सहज जान पड़ती है, पानी की तरह बहती हुई, उसके पीछे शब्दों और भाषा की दीर्घ साधना तो है ही, ख़ुद का उनके साथ घोर परिश्रम है।