इतिहास में हमेशा ऐसे लोग हुए हैं जो अन्याय को पहचान सके हैं। जो हिंसा के स्रोत तक पहुँच पाते हैं। ऐसे लोगों को आप चाहे तो न्याय का समुदाय या इंसाफ़ की बिरादरी कह सकते हैं।
आज यानी 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाया गया था। भगत सिंह भगत सिंह कैसे बने? किताबों ने। किताबों से उनका गहरा लगाव था। भगत सिंह के मित्रों में से एक शिव वर्मा ने लिखा है कि भगत सिंह हमेशा एक छोटा पुस्तकालय लिए चलते थे।
प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष शृंखला में पढ़ें समाजोन्मुख-आत्मोन्मुख-भाषोन्मुख होने का प्रेमचंद के लिए क्या है मायने, अपूर्वानंद की कलम से।
कमला को ट्रम्प घटिया कह चुके हैं। कमला हैरिस ने अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की आलोचना की थी। इसके चलते ट्रम्प ने उन्हें घटिया कहा था। वे बार-बार कह रहे हैं कि कमला हैरिस अमरीका की हो ही नहीं सकतीं।
अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कांग्रेस के अहिंसक आन्दोलन के पीछी भी किसी तरह की हिंसा छिपी थी? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष कड़ी में पढ़ें अपूर्वानंद को।
सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने प्रशांत भूषण को बताया है कि अपनी ग़लती मान लेने से कोई छोटा नहीं हो जाता। इस प्रसंग में, जैसा भारत में हर प्रसंग में करने का रिवाज है, न्यायमूर्ति ने महात्मा गाँधी का सहारा लिया।
गाँव से कुएँ अब गायब हो रहे हैं, सामूहिकता ख़त्म हो रही है। ऐसे में प्रेमचंद की कहानी को एक बार फिर याद कर रहे हैं लेखक अपूर्वानंद। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 23 वीं कड़ी।
प्रेमचंद का पूरा जीवन दर्शन तार्किकता और विवेक की नींव पर टिका हुआ है। राष्ट्रीयता और जाति भेद के बारे में क्या सोचते थे प्रेमचंद? प्रेमंचद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हि्न्दी की विशेष श्रृंखला में पढ़े अपूर्वानंद को।
प्रेमचंद गांधी की राजनीति ही नहीं, उनके सामाजिक सरोकारों से भी प्रभावित थे। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला में पढ़ें अपूर्वानंद को।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य में जाति व्यवस्था पर गहरी चोट की है। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 20 वीं कड़ी में पढ़ें अपूर्वानंंद को।
जैन धर्म का मानव संस्कृति को योगदान ही माना जाएगा कि उसने क्षमायाचना को एक सामुदायिक या सार्वजनिक भाव के रूप में प्रतिष्ठित किया। पढ़ें अपूर्वानंद का लेख।
प्रेमचंद साहित्य में हम पाते हैं, अपने समय के बोध का अर्थ है अपनी सीमितता का बोध। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 18 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
हिंदी और उर्दू के स्वरूप पर प्रेमचंद क्या सोचते थे? प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष श्रृंखला की 17 वीं कड़ी में बता रहे हैं अपूर्वानंद।
थाने पर भीड़ का इकट्ठा होना, उत्तेजित हो जाना, हिंसा पर उतर आना यह किसी भी तरह स्वीकार्य प्रतिक्रिया नहीं है। यह स्वाभाविक नहीं है, यह संगठित है और नियोजित है।