‘पाताल लोक’ में इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी और उनके जूनियर इमरान अंसारी ने शानदार अभिनय किया है। ‘पाताल लोक’ से अल्पसंख्यकों के मसले पर समाज की सोच कैसी है, इसका भी पता चलता है।
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन के बीच गुरुवार को बुद्ध पूर्णिमा की सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन सुन कर कई तरह के ख़याल आए।
मध्यवर्गीय परवरिश वाले माहौल से आने वाले इरफ़ान ने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से निकलकर मुंबई की चकाचौंध वाली फ़िल्म इंडस्ट्री में अपने काम के दम पर पहचान बनाई।
कोरोना वायरस संक्रमण के ख़तरे के चलते जारी लाॅकडाउन की वजह से रामनवमी बिना किसी राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक शोरशराबे, भीड़भाड़ और कर्मकांडी तामझाम के मनी।
ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण बेहाल है, दिहाड़ी मजदूरों की कमर टूट चुकी है, मंत्रियों का रामायण देखते हुये फ़ोटो ट्वीट करना क्या जायज है?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस रंजन गोगोई को रिटायर होने के सिर्फ़ चार महीने बाद ही राज्यसभा का सांसद मनोनीत करने के मामले ने न्यायपालिका की बेदाग़ छवि और सरकार से उसके रिश्तों को लेकर नये सिरे से तीखी बहस छेड़ दी है।
19वीं शताब्दी के भारतीय सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह का बीबीसी के एक सर्वेक्षण में पूरी दुनिया की तमाम ऐतिहासिक हस्तियों के बीच सर्वकालिक महान शासक चुना जाना एक चौंकाने वाली ख़बर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में भाषण के दौरान भारत विभाजन के लिए इशारों-इशारों में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर आरोप लगाया, वल्लभभाई पटेल पर क्यों नहीं?
केंद्र में 2014 में बीजेपी की सरकार आने के बाद से विकास के सारे वादों और दावों के बावजूद हमारे देश की राजनीति हिन्दू-मुसलमान-पाकिस्तान, बँटवारा, हिंदू राष्ट्र, गाँधी, नेहरू, जिन्ना के इर्दगिर्द घूम रही है।
इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जैसे प्रगतिशील वामपंथी शायर की नज़्म को मज़हबी चश्मे से देखा जाए और उस पर हिन्दू विरोधी या इसलाम परस्त होने का आरोप लगा दिया जाए।
वर्तमान राजनीतिक हालात को देखकर कहा जा सकता है कि ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने का जो काम संघ 1947 में नहीं कर पाया, उस पर अब सुनियोजित तरीक़े से अमल करने की तैयारी है।
महात्मा गाँधी की एक कट्टरपंथी हिंदू के हाथों हत्या के बाद के 71 बरसों में बार-बार यह सवाल खड़ा किया गया है कि गाँधी के विचारों और उनके सिद्धांतों की प्रासंगिकता क्या है?