कोरोना वायरस से संक्रमित होने का ही खौफ कितना ज़्यादा है! क्या हो जब अस्पतालों में भर्ती होने वाले ऐसे 48 फ़ीसदी लोगों में मानसिक दिक्कतें आएँ? क्या सरकार ऐसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है?
अकेले जीना मुश्किल है और मरने के वक़्त अकेले रहना शायद और भी पीड़ादायक। कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे ने यह अहसास दिला दिया है। क्या मरने के वक़्त अकेले होने का डर इस कोरोना वायरस से कम होगा?
यदि कहें कि कोरोना वायरस से लड़ने में भारत को जर्मनी से सीख लेनी चाहिए तो पहली नज़र में शायद आप चौंक जाएँ। ऐसा इसलिए कि जर्मनी में पॉजिटिव केस ज़्यादा हैं तो क्या लेकिन वहाँ मृत्यु दर काफ़ी कम है।
यह माना हुआ तथ्य है कि प्राकृतिक आपदा, महामारी, युद्ध जैसे संकट के समय में महिलाएँ सबसे ज़्यादा भुक्तभोगी होती हैं और यही कोरोना संकट के समय भी हो रहा है।
दुनिया भर में अभी तक यही आँकड़ा आया है कि कोरोना वायरस से महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की ज़्यादा मौत हो रही है। इस पर सीधा सवाल यही कौंधता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्या वायरस पुरुषों को चुन-चुन कर हमला कर रहा है?
जिस कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन किया गया है अब उसी लॉकडाउन के कारण कोरोना से बचाव के लिए उपयोग में आने वाले उपकरणों की आपूर्ति में बाधा आती दिख रही है।
क्या आप कोरोना से सुरक्षित हैं? क्या प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों से आप इस वायरस से सुरक्षित होने के प्रति आश्वस्त हैं? सरकार के पास कोई योजना है जिससे आपका विश्वास पक्का होता हो कि अब कोरोना ख़त्म हो जाएगा?
कोरोना वायरस से बचें या भूखे मरने की नौबत आने से? लॉकडाउन के बाद यही सवाल शहरों में फँसे हज़ारों मज़दूरों के दिमाग़ में है। यही उलझन उन्हें जैसे-तैसे घर भागने पर मजबूर कर रही है।
कोरोना को काबू करना कोई दक्षिण कोरिया से सीखे। उसके पास इटली, अमेरिका और स्पेन जैसे विकसित देशों की तरह मज़बूत स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है फिर भी इसने इन देशों व चीन की तरह सख्ती नहीं की। फिर भी इसने कोरोना को नियंत्रित कर लिया।
कोरोना वायरस और दिल्ली दंगे का खौफ़ कितना ज़्यादा है? इसका अंदाज़ा होली जैसे उत्सव के माहौल से लगाया जा सकता है। होली जो देश में खुशियों के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है।
एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि हिंसा शुरू होने से एक दिन पहले यानी रविवार को ट्रकों में भरकर बाहर से लोग और ईंट-पत्थर लाए गए थे। शायद साथ में हथियार भी हों। इससे साफ़-साफ़ लगता है कि दंगा कराया गया है।
दिल्ली हिंसा ने पूरे देश को झकझोर दिया है। और यह शायद जिन्हें नहीं झकझोर पायी है उनको सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी ज़रूर झकझोर देगी! अदालत ने कहा है कि अमेरिका में नेताओं को भड़काऊ बयान देने के कारण गिरफ़्तार कर लिया जाता है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिंसा पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की नींद तीन दिन बाद अब खुली है। वह भी आधी रात को। या यूँ कहें कि वह अब होश में आए हैं। वह भी तब जब यह हिंसा पूरी तरह बेकाबू हो गई।
महिलाओं के प्रति सरकार का जिस तरह का नज़रिया है उस पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सरकार को आइना दिखा दिया। आइना क्या दिखाया, साफ़-साफ़ दकियानूसी कह दिया। रूढ़िवादी बता दिया। लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाला कह दिया।
जेएनयू में नकाबपोशों के हमले की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन इस मामले में अब तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हो पाई है और पुलिस चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर रही है।
आम आदमी पार्टी दिल्ली चुनाव तो जीत गई पर चुनौतियों का क्या होगा? पार्टी की धमाकेदार जीत पर कहा जा रहा है कि पार्टी के विकास मॉडल और मुफ़्त वाली योजनाओं पर लोगों ने वोट दिया है।
शीना बोरा हत्याकांड में जो पीटर मुखर्जी चार साल से ज़्यादा समय से जेल में हैं उनके मामले में बॉम्ब हाई कोर्ट ने कहा है कि उनके ख़िलाफ़ प्रारंभिक तौर पर कोई सबूत नहीं है।
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के जिस 'देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को' नारे को हत्या के लिए उकसाने वाला बताया गया उसी नारे के साथ प्रदर्शन को अब दिल्ली पुलिस ने अनुमति दे दी है।
भारत में लोकतंत्र कमज़ोर हुआ है! इसका सबूत यह है कि लोकतंत्र के पैमाने पर विश्व के 167 देशों की रैंकिंग में भारत 10 स्थान फिसल गया है। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने यह रिपोर्ट जारी की है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुझाव दिया है कि विधानसभा सदस्यों को अयोग्य क़रार देने का अधिकार एक स्वतंत्र निकाय के पास हो। हालाँकि, यह काम कोर्ट ने संसद पर छोड़ दिया है।
जेएनयू हिंसा में नकाबपोशों के हमले में घायल विश्वविद्यालय की छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष के ख़िलाफ़ ही एफ़आईआर दर्ज करने पर गीतकार जावेद अख्तर ने तंज कसा है। यह तंज ऐसा-वैसा नहीं है, यह चोट है। एक गहरी चोट।