विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि ओमिक्रॉन का ही एक रूप यानी सब-वैरिएंट अपने मूल वैरिएंट से भी ज़्यादा संक्रामक हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कुछ ऐसे शोध सामने आए हैं। इसने यह भी कहा है कि ओमिक्रॉन का यह सब-वैरिएंट कम से कम 57 देशों में फैल चुका है। हालाँकि, अभी तक यह साफ़ नहीं है कि यह पहले से ज़्यादा घातक है या कम।
वैसे तो ओमिक्रॉन वैरिएंट 4 रूपों या सब-वैरिएंट के रूप में फैला है। बीए.1, बीए.1.1. बीए.2 और बीए.3 सब-वैरिएंट के रूप में अब तक पहचान की गई है। ये सभी रूप ओमिक्रॉन वैरिएंट के हैं। ये रूप मूल वैरिएंट से इतने अलग नहीं हैं कि इन्हें दूसरा वैरिएंट कहा जाए। यानी ये ओमिक्रॉन फैमिली के हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि पिछले महीने एकत्र किए गए सभी कोरोना वायरस नमूनों में से 93 प्रतिशत से अधिक मामले ओमिक्रॉन वैरिएंट के आए हैं। वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक पहल के रूप में GISAID सामने आया है और इस पर अपलोड किए गए अभी तक के सभी जीनोम सिक्वेंसिंग के आँकड़ों के अनुसार, ओमिक्रॉन के सभी मामलों में से 96 फ़ीसदी मामले बीए.1 और बीए.1.1 के आए हैं।
लेकिन अब बीए.2 से जुड़े मामले बढ़ रहे हैं। अब हाल के कई शोध संकेत देते हैं कि बीए.2 ओमिक्रॉन के अपने मूल वैरिएंट से ज़्यादा संक्रामक है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि बीए.2 के मामले 57 देशों से आए हैं और कुछ देशों में तो इस सब-वैरिएंट के मामले सभी ओमिक्रॉन मामलों में आधे से भी अधिक हैं।
एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड पर डब्ल्यूएचओ के शीर्ष विशेषज्ञों में से एक मारिया वान केरखोव ने संवाददाताओं से कहा कि सब-वैरिएंट के बारे में जानकारी बहुत सीमित थी, लेकिन कुछ प्रारंभिक आंकड़ों से संकेत मिलता है कि बीए.2 में बीए.1 की तुलना में विकास दर थोड़ी ज़्यादा है।
डब्ल्यूएचओ के शीर्ष विषेशज्ञों में से एक केरखोव ने कहा कि उभरता हुआ बीए.2 रूप मूल रूप बीए.1 से अधिक गंभीर नहीं लगता है।
बता दें कि डब्ल्यूएचओ ने मंगलवार को कहा है कि कोरोना वायरस की सावधानियाँ अभी भी बरती जानी चाहिए क्योंकि ओमिक्रॉन अभी भी कई देशों में चरम पर नहीं पहुँचा है।
पिछले महीने ही इंसकॉग यानी भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम के वैज्ञानिकों ने कहा था कि भारत में बीए.1 के सबसे ज़्यादा मामले आए हैं। तब रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में ओमिक्रॉन के बीए.2 के मामले भी मिले हैं, लेकिन इसके मामले बीए.1 की तुलना में बेहद कम हैं।
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