हमास लड़ाकों के पास एम14 असॉल्ट राइफलें देखी गईं। एक प्रमुख अमेरिकी राजनेता ने सवाल किया है कि क्या फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास ने अमेरिका निर्मित बंदूकों का इस्तेमाल किया है। इसका पता लगाने के लिए जांच की मांग की गई कि क्या हथियारों का स्रोत अफगानिस्तान या यूक्रेन था। इस संबंध में इंडिया टुडे ने एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की है।
We need to work with Israel to track serial numbers on any U.S. weapons used by Hamas against Israel.
— Rep. Marjorie Taylor Greene🇺🇸 (@RepMTG) October 8, 2023
Did they come from Afghanistan?
Did they come from Ukraine?
Highly likely the answer is both.
🔴 2 armed terrorists fired shots toward an Israeli vehicle.
— Israel Defense Forces (@IDF) October 5, 2023
IDF soldiers closed off routes in the area and identified the vehicle. After exchanges of fire, the 2 terrorists were neutralized.
An M-16 rifle and magazines used by the terrorists were located inside the vehicle. pic.twitter.com/U1BvNjMiLv
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जंग एक बड़ा कारोबार है, लेकिन यह अब एक खूनी धंधा है। जंग के दौरान दुनिया भर में हजारों मौतें होती हैं। यह हमने यूक्रेन में देखा, यह हम इजराइल और ग़ज़ा में देख रहे हैं। हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर यूएसए इस बड़े धंधे के केंद्र में है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2013-17 और 2018-22 के बीच अमेरिका निर्मित हथियारों के निर्यात में 14 पीसदी की बढ़ोतरी हुई और 2018-22 की अवधि में ग्लोबल हथियारों के निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी। यह रिपोर्ट मार्च 2023 की है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा हुआ। उसने यूक्रेन को जमकर हथियारों की आपूर्ति की। अमेरिका में 9/11 हमले के बाद तालिबान के खिलाफ उसने अफगानिस्तान में युद्ध छेड़ दिया। उसने अरबों डॉलर के हथियार और रक्षा उपकरण वहां झोंक दिए। अफगानिस्तान कभी भी किसी विदेशी ताकत के लिए आसान क्षेत्र नहीं रहा है। 1988 में सोवियत रूस के हमले की तरह, अमेरिका के नेतृत्व में नाटो अभियान भी नाकाम हो गया। पहले रूसी फौजें अफगानिस्तान से भागीं और उसके बाद अमेरिकी फौजों को भी किसी तरह इज्जत बचाकर वहां से निकलना पड़ा। ये सब बहुत पुरानी बातें नहीं हैं। इस तथ्यात्मक इतिहास का पुनर्लेखन कोई नहीं कर सकता।
फरवरी 2020 में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें तय पाया गया कि मई 2021 तक अफगानिस्तान से सभी विदेशी सैनिक वापस चले जाएंगे। ट्रम्प के उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इस समझौते से प्रतिबद्धता जताई, लेकिन विदेशी सैनिकों के वापसी की समय सीमा 31 अगस्त तक बढ़ा दी।
अमेरिकी रक्षा विभाग ने अगस्त 2022 में अपनी रिपोर्ट में कहा था- " अफगानिस्तान में जब चुनी हुई सरकार गिरी तो उसके पास 7.12 अरब डॉलर के अमेरिकी हथियार थे। अधिकांश हथियारों को तालिबान ने जब्त कर लिया था।" इनमें सैन्य विमान, जमीनी युद्ध वाहन, हथियार और अन्य सैन्य उपकरण थे। इसमें ब्लैक हॉक्स और अन्य हेलीकॉप्टर, यूएस ह्यूमवीज़ और स्कैनईगल सैन्य ड्रोन भी शामिल थे। इसमें एम16 असॉल्ट राइफल और एम4 कार्बाइन जैसे अत्याधुनिक हथियार थे, जो भारत विरोधी और इजराइल विरोधी ताकतों के साथ पहुंच गए। वही हथियार अब इन दोनों देशों के खिलाफ इस्तेमाल हो रहे हैं।
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