आपको थ्यानअनमेन चौक याद है? चीन की राजधानी बीजिंग स्थित इस चौक में 1989 में लोकतंत्र की माँग कर रहे प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए सेना के टैंक भेज दिए गए थे। हज़ारों लोग मारे गए थे, हज़ारों घायल हो गए थे। इसके बाद चीन के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में गुस्सा बढ़ा था, असंतोष फैला था और यह एशियाई देश पूरी दुनिया में बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया था।
एक बार फिर चीन के ख़िलाफ़ वैसा ही गुस्सा बढ़ रहा है, असंतोष फैल रहा है और अमेरिका को टक्कर देने वाला यह देश एक बार फिर पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ने लगा है। इस बार वजह है कोरोना वायरस संक्रमण।
दुनिया से और खबरें
चीन की ख़ुफ़िया रिपोर्ट
समाचार एजेन्सी रॉयटर्स के अनुसार, चीन के आतंरिक सुरक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सौंपी एक रिपोर्ट में साफ़ शब्दों में कहा है कि पूरी दुनिया में चीन-विरोधी भावनाएँ उफान पर हैं और स्थिति वैसी ही है जैसी थ्यानअनमेन चौक कांड के बाद हुई थी।शी जिनपिंग को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन विरोधी इस लहर में बीजिंग के ख़िलाफ़ मुहिम की अगुआई अमेरिका कर रहा है। सबसे बुरी स्थिति में दोनों महाशक्तियों के बीच हथियारबंद झड़प से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
यह रिपोर्ट चाइना इंस्टीच्यूट ऑफ़ कंटेपोरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस (सीआईसीआर) ने तैयार की है। यह संस्था चीनी ख़ुफ़िया एजेंसी स्टेट सिक्योरिटी से जुड़ी थिंकटैंक है, यानी बौद्धिकों और विश्लेषकों का समूह है जो सरकार को नीति निर्धारण में मदद करने के लिए शोध करता है।
तल्ख़ चीन-अमेरिका रिश्ते
अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति के रूप में उभरने की कोशिश में लगे चीन और वॉशिंगटन के बीच रिश्ते तल्ख़ बीते कई दशकों से है, इसमें नया कुछ नहीं है। साम्यवाद, ताईवान, हॉग कॉग और दक्षिण चीन सागर पर दोनों के बीच कटुता तो पहले से है। चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध और उसके बाद कोरोना वायरस संक्रमण के लिए चीन पर हो रहे लगातार अमेरिकी हमलों से स्थिति बदतर हुई है।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने खुल कर कहा है कि चीन से निकले कोरोना वायरस की वजह से लाखों अमेरिकियों की स्थिति खराब है। इसके बाद उन्होंने बीते दिनों अमेरिकी आयातों पर नए सीमा शुल्कों की धमकी देकर स्थिति और तनावपूर्ण बना दिया है। यह सिर्फ धमकी नहीं है। ट्रंप प्रशासन के आला अफ़सर इस सोच में है कि चीन के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की जाए।
निशाने पर साम्यवाद!
शी जिनपिंग को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका इस प्रचार को हवा दे रहा है कि चीन के आर्थिक विकास से दुनिया का लोकतंत्र ख़तरे में है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति लोगों के विश्वास में कमी कर उसे कमज़ोर करना चाहता है।अमेरिका प्रत्यक्ष रूप से कोरोना के बहाने चीन पर हमला कर रहा है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मॉर्गन ऑर्टगस ने रॉयटर्स से कहा, ‘वैज्ञानिकों, पत्रकारों और नागरिकों को चुप करने की कोशिशें और ग़लत जानकारियों को फैलाने से स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है।’
परेशान अमेरिका
बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के ज़रिए जिस तरह चीन पूरे दक्षिण एशिया ही नहीं, दुनिया के दूसरे कई महादेशों में भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, अमेरिका उससे परेशान है।थ्यानअनमेन चौक पर प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई के बाद दुनिया के कई देशों ने चीन पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें प्रौद्योगिकी और हथियार देने पर रोक लगाना भी शामिल था।
आज चीन अधिक ताक़तवर है। शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद चीनी सेना का आधुनिकीकरण हुआ। आज चीन वायु सेना और नौसेना के मामलों में 70 साल से चल रहे अमेरिकी आधिपत्य को चुनौती देने की स्थिति में है।
अमेरिकी प्रचार, चीनी जवाब
अमेरिका भले ही कोरोना वायरस संक्रमण के लिए बीजिंग को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करे, चीन ने अपने यहाँ इस पर काबू पा लिया है। इसके अलावा उसने जाँच किट, पर्सनल प्रोटेक्टिव उपकरण, वेंटीलेटर और दूसरी चीजों की पूरी दुनिया में सप्लाई कर यह स्थापित कर लिया है कि वह कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहा है और सबके साथ खड़ा है।उसने इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को दान ऐसे समय में देने का एलान किया है जब अमेरिका ने डब्लूएचओ को पहले से तय पैसे पर भी रोक लगा दी है।
चीन के ख़िलाफ़ वातावरण बन रहा है, यह भी सच है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने चीन के ‘वेट मार्केट’ को बंद करने की अपील ही नहीं की, चीनी शहर ऊहान से कोरोना वायरस के निकलने के आरोपों की अंतरराष्ट्रीय जाँच की माँग की है।
‘वेट मार्केट’ उस बाज़ार को कहते हैं जहाँ जानवरों के माँस बिकते हैं। लगातार बर्फ के पिघलने और जानवरों को मारने के बाद खून धोते रहने की वजह से वह जगह हर समय गीली रहती है। इसलिए उसे ‘वेट मार्केट’ कहते हैं।
फ्रांस ने बीते दिनों चीनी राजदूत को इसलिए फटकार लगाई क्योंकि एक सरकारी चीनी वेबसाइट पर कोरोना से निपटने के मुद्दे पर पश्चिमी देशों की आलोचना की गई थी।
सवाल यह है कि बीजिंग इससे कैसे निपटेगा? चीनी संसद नेशनल पीपल्स कांग्रेस की सालाना बैठक इस महीने होने वाली है। क्या उसमें इस पर चर्चा होगी?
अपनी राय बतायें