2019 ने शीतयुद्ध का दूसरा बिगुल बजा दिया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीते साल अक्टूबर में किए गए ऐलान के क्रम में रूसी रक्षा मंत्रालय दुनिया की सबसे पहली अभेद्य मैक 27 की गति से लक्ष्य भेदने में सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइलें तैनात कर रहा है! मैक आवाज़ की गति के समतुल्य इकाई है। ये मिसाइलें आवाज़ से 27 गुना अधिक वेग से लक्ष्य तक पहुँचेंगी। अमरीका इज़रायल और पश्चिम के अन्य सभी देशों में से किसी के पास इन हाइपरसोनिक मिसाइलों को रोक कर नष्ट करने की क्षमता नहीं है ।
अभी तक रूस व भारत के संयुक्त प्रयास से विकसित ब्रह्मोस को ही दुनिया की सबसे तेज़ मिसाइल माना जाता था, जो आवाज़ से सात गुना तेज़ गति से लक्ष्य भेदने में सक्षम है, पर यह अधिकतम 300 किलोमीटर तक के लिए ही उपयोगी है। इसका पेलोड भी कम है। 'अवाँ गार्द' नाम की यह नई रूसी हाइपरसोनिक मिसाइलें दुनिया के किसी भी कोने तक पहुँच सकती हैं। इन्हे विशेष विमानों से भी दाग़ा जा सकता है और रूसी नौसेना के लिए पनडुब्बी संस्करण भी तैयार किया जा रहा है।
हम रूस-चीन से पीछे: जनरल थॉमसन
अमरीकी और पश्चिमी सैन्य विशेषज्ञों ने इस सूचना की गंभीरता से उत्पन्न ख़तरे को महसूस करना शुरू कर दिया है। 'द हिल' नामक रक्षा संबंधी पत्रिका में रिटायर्ड अमरीकी मेजर जनरल हावर्ड डलास थॉमसन ने लिखा 'हमारी सरकारों ने हाइपरसोनिक तकनीक से बने हथियारों के ख़तरों को समय पर गंभीरता से नहीं लिया, और अब हम रूस ही नहीं चीन से भी इस मामले में पीछे हैं।' जनरल थामसन अमरीका की ओहायो स्थित उत्तरी कमान के चीफ़ आफ स्टाफ़ भी रह चुके हैं। चीन ने 2018 में हाइपरसोनिक तकनीक के विकास पर बहुत ज़ोर लगाया।
भारत द्वारा पूर्वी राज्यों (अरुणाचल आदि ) में ब्रह्मोस तैनात किए जाने के बाद चीन में इस अभियान में अचानक तेज़ी आई। अमरीका में पूरे दशक में इस तकनीक पर जितने परीक्षण हुए होंगे, उतने चीन ने बीते एक वर्ष में कर डाले।
मिसाइलों की तैनाती शुरु
'द हिल' के लेख में नोट लिखा गया , 'हमें पक्की जानकारी है कि हमने प्रतिद्वन्दियों को इस क्षेत्र में पछाड़ दिया है।' बीते साल के जाड़े की शुरुआत में अक्टूबर में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने विश्व मीडिया के सामने अवाँ गार्द के परीक्षण का वीडियो रिलीज़ करते हुए मास्को में कहा था कि वे कितनी भी कोशिश कर लें उन्हे कम से कम 18-24 महीने चाहिए तब कहीं जाकर वह वहाँ पहुँचेंगे जहाँ हम बीते साल थे। 2019 में तो यह हमारी रक्षा में तैनात मिलेंगे, पुतिन ने कहा था और अब अमरीकी सेटेलाइट चित्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि उनकी तैनाती शुरू हो चुकी है। वर्तमान में यू एस मिसाइल डिफ़ेंस एजेंसी के सेंसर और रेडार आई सी बी एम (इंटर कॉटीनेंटल बैलिस्ट्क मिसाइल ) की क्षमताओं के अनुसार ही तैनात हैं। उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देश यह दावा करते रहते हैं कि वे कैलिफोर्निया तक मिसाइल पहुँचा देंगे। अमरीका इनकी रोकथाम के लिये तैयार है, पर हाइपरसोनिक हथियारों के मामले में वह निर्वस्त्र है।
आई. सी. बी. एम. से सुरक्षा के लिए अमरीका के पाल पैट्रियॉट और 'थाड' नाम के विश्वविख्यात सुरक्षा उपकरण हैं, जो हर क़िस्म की आई सी बी एम को रोकने और नष्ट करने में सक्षम हैं।
ट्रंप ने संधि रद्द की
1987 में रोनाल्ड रीगन जब अमरीकी राष्ट्रपति थे तब वाशिंगटन में तब के सोवियत संघ के साथ उन्होने एक संधि की थी जिसके तहत सभी पारमाणविक मिसाइलों को नष्ट किया जाना था। मिखाइल गोर्बाचोव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के तौर पर इस संधि पर दस्तखत किए थे। इस संधि के बाद सभी मिसाइलें जो जमीन और हवा से छोड़ी जा सकती थीं नष्ट कर दी गईं थीं। 20अक्तूबर 2018 को राष्ट्रपति ट्रंप ने इस संधि को रद्द कर दिया। जवाब में पूतिन ने हाइपरसोनिक मिसाइलों की तैनाती का ऐलान कर दिया। रूस की माली हालत ऐसी नहीं है कि वह दुबारा शीत युद्ध में फँसे। अमरीका ने उस पर तमाम क़िस्म के प्रतिबंध भी लगा रखे हैं। इसके चलते रूसी पेशनरों की बड़ी आबादी और निम्न मध्यवर्ग की आय बहुत ही कम हो गई है। बीते पिछले बरस के संसदीय चुनावों में सायबेरिया के ग़रीब इलाक़ों से 'लाल सलाम' वापस लौटा है। पुतिन अभी भी बहुत लोकप्रिय हैं पर शहरी मतदाताओं में ही। अमरीकी तंत्र हाइपरसोनिक हथियारों की रेस में भले ही रूस से पीछे रह गया हो समाजी अंतर्विरोध के राजनैतिक इस्तेमाल में रूस से मीलों आगे है। हमारी इस मसले में शायद ही कोई प्रत्यक्ष भूमिका हो पर हथियारों की होड़ के अप्रत्यक्ष शिकार तो हम भी हैं इसलिये शीत युद्ध की वापसी का स्वागत तो कर नहीं सकते बल्कि वैश्विक नेताओं में विवेक उपजने की उम्मीद ही करेंगे।
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