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रूस की पहली कोरोना वैक्सीन से भारतीयों को ख़ुश होना चाहिए या निराश?

रूस की पहली कोरोना वैक्सीन की घोषणा हुई तो दुनिया भर में खुशी की लहरें दौड़तीं उससे पहले ही संदेह के घने बादल मंडराने लगे। ये संदेह इसलिए पैदा होने शुरू हुए कि रूस की ओर से न तो बड़े स्तर पर किसी क्लिनिकल ट्रायल के बारे में बताया गया और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ को इसकी जानकारी दी गई। इंग्लैंड, अमेरिका और दूसरे कई देशों में जहाँ काफ़ी पहले ही दूसरी वैक्सीन पर तीसरे चरण के ट्रायल शुरू हो चुके हैं उससे भी पहले एकाएक से रूस की वैक्सीन टपक पड़ी। उसे भी सीधे मंजूरी तक मिल गई और रूसी राष्ट्रपति ने घोषणा कर दी कि उन्होंने अपनी बेटी को यह टीका लगवा दिया है। तो आख़िर क्या है रूस का दावा और क्यों दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर सवाल उठा रहे हैं? और हम भारतीयों को इस टीके से कितनी उम्मीदें रखनी चाहिए? 

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इन सवालों के जवाब से पहले रूस के दावों को जान लें। मॉस्को के गामालेया संस्थान द्वारा तैयार इस वैक्सीन को स्पुतनिक नाम दिया गया है। जुलाई की शुरुआत में इस वैक्सीन के पहले चरण के ट्रायल को सफल क़रार दिया गया था। रूस की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 13 जुलाई को इसका दूसरा चरण शुरू हुआ था। इसके बाद कुछ दिनों पहले ही ख़बर आई कि तीसरे चरण को पूरा किए बिना ही इस वैक्सीन को रजिस्टर कराया जा रहा है। सामान्य तौर पर जब तक तीसरे चरण का ट्रायल नहीं होता है तब तक किसी वैक्सीन को लोगों को उपलब्ध कराने की मंजूरी नहीं दी जाती है। तीसरे चरण में हज़ारों लोगों पर इस टीके का ट्रायल किया जाता है और इसके सुरक्षित होने व कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होने पर ही इसकी मंजूरी दी जाती है।

लेकिन इसके बावजूद रूस की उप प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मामलों की प्रमुख तात्याना गोलिकोवा ने कहा है कि स्वास्थ्य कर्मियों को टीका जल्द ही लगाया जा सकता है और अगस्त के आख़िर में या सितंबर में बड़े स्तर पर इसका उत्पादन शुरू किया जाएगा। माना जा रहा है कि रूस अब तीसरे चरण का ट्रायल शुरू करेगा। 'अल जजीरा' की एक रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन के उत्पादन से पहले ही 20 देशों ने रूस को ऑर्डर दे दिए हैं।

हालाँकि बड़ी संख्या में देश ऐसे हैं जो रूस द्वारा क्लिनिकल ट्रायल की जानकारी नहीं दिए जाने और वैज्ञानिकों द्वारा सवाल उठाए जाने पर सशंकित हैं। भारत के विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाए हैं।

दिल्ली एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि इस वैक्सीन की सुरक्षा से लेकर साइड इफेक्ट की जाँच ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दुनिया में यह साफ़ होना चाहिए कि वैक्सीन सुरक्षित है। गुलेरिया ने कहा, 'हमें देखना पड़ेगा कि रूसी वैक्सीन सेफ और इफेक्टिव हो। सेफ का मतलब कि उससे कोई साइड इफेक्ट नहीं हो और इफेक्टिव का मतलब कि वैक्सीन इम्युनिटी को बढ़ाती हो।' 

जिन बातों पर गुलेरिया ने ज़ोर दिया है उन्हीं बातों पर अमेरिका के जाने-माने संक्रामक रोग विशेषज्ञ और राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के सलाहकार एंथनी फॉसी भी ज़ोर देते हैं। नेशनल जियोग्राफ़िक पर पैनल डिस्कशन के दौरान एंथनी फॉसी ने कहा कि वैक्सीन बनाना और उस वैक्सीन को सुरक्षित और प्रभावी साबित करना अलग बात है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रूसी सरकार से वैक्सीन के बारे में पूरे शोध को जारी करने और इसके सभी चरणों के क्लीनिकल ट्रायल को पूरा करने के तय मानकों को लागू करने को कहा है।

डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता क्रिश्चियन लिंडमियर ने कहा कि डब्ल्यूएचओ को आधिकारिक तौर पर किसी भी रूसी टीके को मंजूर किए जाने की स्थिति में होने की जानकारी नहीं दी गई है।

'डरावना और जोखिम भरा'

अमेरिका के जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय में वैक्सीन सुरक्षा संस्थान के निदेशक डैनियल सैल्मन ने इस वैक्सीन के बारे में आगाह किया है। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' के अनुसार, डैनियल सैल्मन ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह वास्तव में डरावना है। यह वास्तव में जोखिम भरा है।' डॉ. सैल्मन और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि रूस तथाकथित तीसरे चरण के ट्रायल से आगे कूदकर एक ख़तरनाक क़दम उठा रहा है। 

विशेषज्ञ यह भी साफ़ करते हैं कि प्रयोगिक दवाओं और वैक्सीन के ट्रायल में अंतर होता है। बीमारों को दी जाने वाली प्रायोगिक दवाओं के विपरीत, वैक्सीन स्वस्थ लोगों को दी जाती हैं। इसलिए वैक्सीन देने में सुरक्षा मानकों का ज़्यादा ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि लाखों लोगों को टीका लगाया जाता है तो हज़ारों लोगों में भी दुर्लभ दुष्प्रभाव सामने आ सकता है।

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बता दें कि दुनिया भर में फ़िलहाल कोरोना वायरस के लिए 165 से ज़्यादा वैक्सीन पर अलग-अलग जगहों पर काम चल रहा है। इसमें से 135 अभी ह्यूमन ट्रायल से पहले के चरण में हैं। 19 वैक्सीन पहले चरण के ट्रायल में हैं। 11 वैक्सीन दूसरे चरण के ट्रायल में, 8 तीसरे चरण के ट्रायल में हैं और 2 वैक्सीन को तो शुरुआती और सीमित स्तर पर प्रयोग के लिए मंजूरी भी मिल गई है। वैसे, सामान्य तौर पर वैक्सीन बनने में वर्षों लगते हैं, तो भी इतनी तेज़ी से काम चलने के बावजूद वैज्ञानिक उम्मीद जता रहे हैं कि सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन अगले साल तक मिलेगी। 

ऐसे में यदि रूस की वैक्सीन से कोई ज़्यादा उम्मीद करता है तो वैज्ञानिकों द्वारा जताए गए संदेहों के बाद तो नहीं लगता है कि इस साल के आख़िर से पहले ज़्यादा आस रखनी चाहिए।

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