पाकिस्तान इन खराब आर्थिक हालातों से जूझ रहा है।
आवश्यक वस्तुओं का कीमतें आसमान छू रही हैं। सरकार इससे निजात पाने के लिए अलग संस्थाओं
से बात कर रहा है जिससे की देश को पटरी पर लाया जा सके। इसी सिलसिले में वह आईएमएफ
से भी लगातार बात कर रहा है। इस संस्था से वह 1.1 विलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज की
मांग कर रहा है।
शहबाज शरीफ की सरकार इस पैकेज के सहारे अपनी छवि
सुधारकर चुनाव में जाना चाहते हैं। 'द न्यूज इंटरनेशनल' की खबर के अनुसार
पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के बीच बेलआउट पैकेज पर गतिरोध बरकरार
है । दोनों ही पक्ष पिछले 10 दिनों की बातचीत
के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। और फिलहाल बातचीत भी रोक दी गई है।
पाकिस्तान के लिहाज से यह
घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब आईएमएफ और पाकिस्तान के बीच 31 जनवरी से नौ फरवरी के बीच इस्लामाबाद में
बातचीत संपन्न हुई। आईएमएफ की टीम पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ बातचीत करने के
लिए इस्लामाबाद पहुंची था।
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द न्यूज इंटरनेशनल की ही रिपोर्ट
के अनुसार, गुरुवार की रात जारी किए एक
बयान में पाकिस्तान के वित्त सचिव हामिद शेख ने विवरण का
खुलासा किए बिना कहा कि "आईएमएफ के साथ आवश्यक उपायों पर पहले ही एक समझौता
किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि आईएमएफ के साथ बातचीत पूरी हो चुकी है। आईएमएफ
ने एमईएफपी आर्थिक और वित्तीय नीतियों का ज्ञापन दस्तावेज पाकिस्तान को सौंप दिये
हैं।
हमीद शेख ने घोषणा की कि
अंतरराष्ट्रीय लेनदार ने पाकिस्तानी अधिकारियों को आने वाले दिनों में कर्मचारी
स्तर का समझौता करने के लिए कहा है और "ऋण जारी करने के समझौते पर भी जल्द ही
हस्ताक्षर किए जाएंगे। आईएमएफ का ऋण
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान
(एसबीपी) के पास विदेशी केवल 2.91
अरब डॉलर मुद्रा भंडार
शेष रह गया है।
पाकिस्तान के इन हालातों
के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को माना जा रहा है क्योंकि उनकी सरकार सब्सिडी
समझौतों से मुकर गई, और सौदे में लिखित कर संग्रह के लिए किये जाने वाले सुधारों
को पूरा करने में विफल रही। जिसके कारण छह अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज को बार-बार रोका
जाता रहा है। शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसको दोबारा से शुरु किया
गया और अगस्त में लगभग 1.17 अरब डॉलर का ऋण प्राप्त करने में सफल रहे।
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समाचार रिपोर्ट के अनुसार, बाद में, नौवीं समीक्षा के समय सितंबर में कार्यक्रम फिर
से रुक गया क्योंकि पाकिस्तानी अधिकारी आईएमएफ के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा
करने में विफल रहे और सहमत शर्तों का उल्लंघन करते हुए कुछ वित्तीय उपाय शुरू किए।
बाद में, पाकिस्तान सरकार आईएमएफ की शर्तों पर सहमत हो गई क्योंकि
विदेशी मुद्रा भंडार खतरनाक रूप से निम्न स्तर तक कम होता जा रहा था। हालांकि पिछले दिनों
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी आईएमएफ की कड़ी शर्तों पर अपनी नाखुशी
जाहिर की थी।
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