loader

कश्मीर पर अलग-थलग पाकिस्तान, किसी का समर्थन नहीं

कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पूरी दुनिया में मोटे तौर पर अलग-थलग पड़ गया है। उसने इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा तो बना दिया, पर कोई देश खुल कर इसके पक्ष में नहीं आ रहा है। ज़्यादातर लोग कश्मीर को दोतरफा विवाद बता रहे हैं और इसलामाबाद को सलाह दे रहे हैं कि वह इसे आपसी बातचीत से सुलझ ले।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुटरेस ने भारत और पाकिस्तान से अपील की है कि वे ‘अधिकतम संयम’ रखें और ऐसा कोई कदम न उठाएँ, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़े। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि दोनों देशों के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते के तहत आपसी बातचीत से इसे निपटाया जा सकता है। बता दें कि शिमला समझौते में कश्मीर को दोतरफा मसला बताते हुए इसे आपसी बातचीत से शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए कहा गया है। 

सम्बंधित खबरें
अनुच्छेद 370 में बदलाव करने और अनुच्छेद 35 'ए' को ख़त्म करने के भारत के फ़ैसले को एकतरफा बताते हुए पाकिस्तान ने विश्व मंच पर इसे उठाने की कोशिश की है। पाकिस्तान के बार बार ऐसा कहने के बाद गुटरेस के प्रवक्ता स्टेफ़नी दुजारिच ने संयुक्त राष्ट्र का पक्ष सामने रखा।
दुजारिच ने कहा, ‘1972 के शिमला समझौते के तहत कश्मीर को दोतरफा मसला माना गया है। यह सहमति बनी है कि दोनों देश आपसी बातचीत से इसका निपटारा करेंगे।' 

महासचिव भारत और पाकिस्तान के बीच की स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं और दोनों देशों से यह कह रहे हैं कि वे ऐसा कोई कदम न उठाएँ जिससे तनाव और बढ़े। वे शिमला समझौते के तहत मामले को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाएँ।


स्टेफ़नी दुजारिच, संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता

दुजारिच ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और सुरक्षा परिषद में पारित प्रस्तावों का ख्याल रखा जाए। उन्होंने विस्तार से कुछ नहीं कहा, पर समझा जाता है कि वह उस प्रस्ताव की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं, जिसमें भारत और पाकिस्तान से सेना वापस बुलाने और भारत से जनमत संग्रह कराने को कहा गया है। प्रवक्ता ने कहा कि महासचिव भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के संपर्क में बने हुए हैं और वहाँ तैनात संयुक्त राष्ट्र मिशन से भी संपर्क में हैं। 

अमेरिका ने झाड़ा पल्ला

दूसरी ओर, अमेरिका ने इस पूरे मुद्दे से ही पल्ला झाड़ लिया है। उसका मानना है कि यह दोनों के बीच का मामला है, वे सुलझाएँ। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता मॉर्गन ओर्टेगस ने कहा, 'कश्मीर पर अमेरिका की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। कश्मीर द्विपक्षीय विवाद है और भारत-पाकिस्तान आपसी बातचीत के ज़रिए इसे सुलझा लें। अमेरिका दोनों देशों के बीच बातचीत को पूरा सहयोग देगा।' 
कुछ दिन पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कश्मीर पर बातचीत में मध्यस्थता करने की पेशकश कर भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। उन्होंने यह भी कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री ने उन्हें मध्यस्थता करने को कहा है।
भारत ने इसका ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया था और कहा था कि यह मामला द्विपक्षीय है और इसमें तीसरे पक्ष या मध्यस्थता की कोई गुंजाइश नहीं है। इसके मद्देनज़र ही वाशिंगटन यह कह रहा है कि उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। 

ओआईसी में मतभेद

मुसलिम देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इसलामिक कंट्रीज़ यानी ओआईसी में इस मुद्दे पर गहरे मतभेद उभर कर सामने आए हैं। संयुक्त अरब अमीरात और मालदीव ने इसे भारत का अंदरूनी मामला क़रार देकर एक तरह से दिल्ली की हाँ में हाँ मिलाई है। पर सऊदी अरब और मलेशिया ने कश्मीर की स्थिति पर चिंता जताई है और दोनों देशों से कहा है कि वे ऐसे कुछ न करें जिससे तनाव बढ़े।
संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर कोई औपचारिक प्रस्ताव न पेश हो जाए, भारत के राजनयिकों ने इसकी कोशिशें शुरू कर दी हैं। पाकिस्तान को रोकने के लिए सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों के प्रतिनिधियों से संपर्क किया जा रहा है और उन्हें भारत के रवैए से सहमत कराने का प्रयास किया जा रहा है। पाकिस्तान ने यह कह रखा है कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मुद्दे एक बार फिर उठाएगा। 
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने स्थायी सदस्य देशों के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात कर बताया है कि किन स्थितियों में भारत ने अनुच्छेद 370 में बदलाव किए हैं और यह क्यों ज़रूरी था। 
भारत ने सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को यह याद दिलाया है कि उसके प्रस्ताव पर पाकिस्तान ने ग़ौर नहीं किया है और उसे लागू करने की कोई कोशिश नहीं की है।
जिस समय जो देश सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य हैं, उनमें इन्डोनेशिया कश्मीर के मुद्दे पर किसी तरह के कड़े रवैए के ख़िलाफ़ है और बातचीत के पक्ष में है। दक्षिण अफ़्रीका रंगभेद की नीति पर भारत के लगातार समर्थन की वजह से शुरू से ही इसके साथ रहा है और संयुक्त राष्ट्र में भारत का समर्थन करता रहा है। आइवरी कोस्ट पहली बार परिषद में पहुँचा है और वह भी भारत की मदद से, लिहाज़ा वह भी भारत के साथ है। इससे यह साफ़ है कि सुरक्षा परिषद में भारत की स्थिति मजबूत है। पर उसे यह देखना होगा कि यह मुद्दा उठे ही नहीं और मतदान की नौबत ही नहीं आए। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें