पाकिस्तान के ननकाना साहिब में स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारे के बाहर स्थानीय लोगों द्वारा हमला करने और नारेबाज़ी की ख़बरों के बाद वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर फिर से चिंता जताई जाने लगी है। पाकिस्तान में पहले भी कई बार हिंदुओं, सिखों के जबरन धर्म परिवर्तन करवाने और अन्य तरह के अत्याचार करने की ख़बरें आती रही हैं। ननकाना साहिब गुरुद्वारे के बाहर हंगामा और नारेबाज़ी करने वाली भीड़ का नेतृत्व करने वाले युवक ने पिछले साल एक सिख लड़की से शादी की थी। तब इस तरह की ख़बरें आई थीं कि लड़की का अपहरण कर लिया गया था और उसे जबरन निकाह के लिए मजबूर किया गया था।
बीते साल मार्च में भी हिंदू समुदाय की दो नाबालिग लड़कियों का अपहरण करने और उनका धर्म परिवर्तन करवाने के मामले सामने आए थे। इन लड़कियों का जबरन निकाह करने के मामले भी सामने आए थे। सवाल यह है कि अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन और शादी करने के ये मामले पाकिस्तान में रुक क्यों नहीं रहे हैं? ऐसी ख़बरें बताती हैं कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति बेहद भयावह है।
एक स्थानीय मानवाधिकार ग्रुप साउथ एशिया पार्टनरशिप-पाकिस्तान के अनुसार पाकिस्तान में प्रत्येक साल क़रीब एक हज़ार लड़कियों को जबरन धर्म परिवर्तन कराकर मुसलिम बनाते हैं। इसमें से अधिकतर हिंदू लड़कियाँ होती हैं। पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के अनुसार ऐसी पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए क़रीब 5000 पाकिस्तानी हिंदू प्रत्येक साल देश छोड़कर भारत चले जाते हैं।
पाकिस्तान के ही एक मीडिया 'हेरल्ड' ने 'मूवमेंट ऑफ़ सॉलिडरिटी एंड पीस इन पाकिस्तान' की 2014 की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है। इसमें कहा गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन से उन्हें कभी न ख़त्म होने वाली हिंसा को सहना पड़ता है।
अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन और शादी से गुजरने वाली ऐसी पीड़ितों को बाद में सेक्सुअल हिंसा, दुष्कर्म, जबरन देह व्यापार में धकेले जाने, ख़रीद-फ़रोख्त और घरेलू हिंसा जैसी पीड़ा झेलनी पड़ती है।
दरअसल, पाकिस्तान में हिंदू और क्रिश्चियन का जबरन धर्म परिवर्तन आम बात है। कई ऐसी रिपोर्टें आयी हैं कि यह काम बड़े संगठित तरीक़े से होता है। अलग-अलग तरह से धर्म परिवर्तन कराने के मामले आते हैं।
अगवा कर जबरन धर्म परिवर्तन कराना
सबसे ज़्यादा मामले अगवा कर जबरन धर्म परिवर्तन कराकर शादी करने के मामले आते हैं। ऐसे मामलों में पुलिस आसानी से रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करती। कई ऐसी रिपोर्टें छपी हैं जिसमें कहा गया है कि लड़की को धमकाकर यह लिखवा लिया जाता है कि उसने अपनी मर्ज़ी से शादी की है। इसके बाद यह मामला कोर्ट में भी नहीं टिकता है।
आर्थिक सहायता का लालच देकर धर्मांतरण
थार क्षेत्र भारत की सीमा से सटा है और वहाँ बहुत ज़्यादा ग़रीबी है। शायद इसी का फ़ायदा उठाकर और दबाव डालते हुए परिजनों को आर्थिक सहायता का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है। डॉन अख़बार ने भी इसकी रिपोर्ट की है।
- हालाँकि अलग-अलग धर्मों के लड़के-लड़की की शादी होने पर भी ऐसा ही होता है, लेकिन ऐसे मामले ज़्यादा नहीं होते हैं। यदि लड़की हिंदू है तो उसे मुसलिम धर्म अपनाने की मजबूरी होती है। लड़का के हिंदू होने की स्थिति में भी कट्टरपंथी ताक़तों का इतना दबाव रहता है कि लड़के को ही मुसलिम धर्म अपनाना पड़ता है।
सामाजिक संगठन भी लाचार
पाकिस्तान में दशकों से अल्पसंख्यक हिन्दू उत्पीड़न सह रहे हैं। इसकी जब तब पाकिस्तान के ही अंग्रेज़ी अख़बार ‘डॉन’ से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक में रिपोर्टें छपती रही हैं। उनकी दशा सुधारने के लिए कुछ सामाजिक संगठन, मानवाधिकार आयोग जुटे रहे हैं, लेकिन कट्टरपंथी ताक़तों के आगे ये प्रयास नाकाफ़ी साबित हो जाते हैं।
पाक सरकार का प्रयास भी फेल
18 साल से कम उम्र के बच्चों के धर्म परिवर्तन पर रोक के लिए क़रीब दो साल पहले सिंध प्रांत में क़ानून बना था, लेकिन कभी लागू ही नहीं हुआ। कट्टरपंथी मुसलिम संगठनों ने इस क़ानून का विरोध किया और इसे इसलाम विरोधी तक करार दिया था। कुछ समय बाद ही इस क़ानून पर सिंध के गवर्नर ने वीटो कर दिया यानी उन्होंने उस क़ानून को निष्प्रभावी कर दिया। यह एक ऐसा मामला था जिसमें सरकार और सेना को भी कट्टरपंथी ग्रुपों के सामने झुकना बड़ा। हालाँकि यह कोई नयी बात नहीं है, दूसरे मामलों में भी सरकार दर सरकार कट्टरपंथियों का ज़्यादा विरोध नहीं झेल पाती है।
धर्म परिवर्तन के बाद 4 माह का कोर्स!
डॉन की 17 अगस्त 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, थार क्षेत्र में धर्म परिवर्तन कराये गये लोगों के लिए उमेर के पास छोर में एक सेट्लमेंट की व्यवस्था है। इसका नाम दिया गया है न्यू इसलामाबाद। जमीयत उलेमा-ए-इसलाम (फज़ल) मदरसा में धर्म परिवर्तन के लिए कलीमा पढ़ने के बाद आने वाले 'नये मुसलिमों' को न्यू इसलामाबाद में रखा जाता है और उन्हें एक कोर्स पूरा करना पड़ता है। इसमें उन्हें इसलाम के मायने समझाये जाते हैं। इस कोर्स के पूरा करने पर उन्हें सनद यानी सर्टिफ़िकेट भी दिया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, जमीयत उलेमा-ए-इसलाम (फज़ल) मदरसा के प्रमुख के रूप में जाने जाने वाले मुहम्मद याक़ूब कहते हैं कि एक बार में 40 परिवारों को ही न्यू इसलामाबाद में रखा जा सकता है। यहाँ सिर्फ़ धर्म परिवर्तन कर नये मुसलिम बनने वाले लोगों को ही रखा जाता है। एक बार जब वे कोर्स पूरा कर निकल जाते हैं तो फिर नये लोगों को रखा जाता है।
'डॉन' की रिपोर्ट के अनुसार, याक़ूब दावा करते हैं कि 15 साल में सिर्फ़ इस जगह पर ही क़रीब 9000 लोगों के धर्म परिवर्तन कराये गये हैं। पिछले साल ही 850 लोगों के धर्म परिवर्तन कराये गये।
धर्म परिवर्तन कराने की क्या है वजह?
डॉन की ही रिपोर्ट में सामाजिक संगठनों के हवाले से कहा गया है कि थार क्षेत्र में ग़रीब हिंदू परिवारों को लालच देकर बड़ी संख्या में मुसलिम बनाया जा रहा है। जमीयत उलेमा-ए-इसलाम (जेयूआई) मदरसा ने तो इसके लिए न्यू मुसलिम वेलफ़ेयर एसोसिएशन भी बना रखा है। यह संगठन धर्म परिवर्तन करने वालों को ईंट और मोर्टार वाले घर, घी आटा, सिलाई मशीन लड़कियों के लिए दहेज और खेती करने के लिए आसपास की ज़मीनें देता है।
- डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, नागरिक अधिकार समूह सवाल उठाते हैं कि जेयूआई के पास इतना फ़ंड कहाँ से आता है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, 'सबसे बड़ा कारण तो यह है कि पाकिस्तान का यह क्षेत्र भारत की सीमा से जुड़ा है और हिंदू कितना भी वफ़ादार हो जाएँ, सरकार संदेह की नज़र से ही देखेगी।’ उनका इशारा इस तरफ़ था कि यह सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है।
डॉन की रिपोर्ट में ऐसे ही संगठनों से जुड़े रमेश वंकवानी के हवाले से कहा गया है, ' जबरन धर्म परिवर्तन का मामला इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि हिंदू को इसलाम में धर्म परिवर्तन कराने को 'सवाब का काम' बताया जाता है और इसकी मिसाल दी जाती है। हमें कोई भी सुरक्षा नहीं दे रहा है, सरकार भी नहीं।'
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