इज़राइली अखबार हारेत्ज के मुताबिक न्यूज़ीलैंड सरकार ने इज़राइली नागरिकों के लिए वीज़ा नियमों में सख्ती करने का फैसला किया है। इस नए नियम के अनुसार, यदि कोई इज़राइली नागरिक न्यूज़ीलैंड आने की योजना बना रहा है और उसने इज़राइल की सेना में सेवा की है, तो उसे इसकी जानकारी देनी होगी। यह कदम न्यूज़ीलैंड सरकार द्वारा उठाया गया है ताकि देश की सुरक्षा और इमीग्रेशन नीतियों को मजबूत किया जा सके। इस फैसले का न्यूज़ीलैंड में रहने वाले फिलिस्तीन समर्थकों ने स्वागत किया है, जबकि इज़राइल और उसके समर्थकों ने इसे विवादास्पद बताया है।
“
इज़राइल के खिलाफ इस तरह का क़दम उठाने वाला न्यूज़ीलैंड पहला देश है। अभी तक किसी और देश ने इस तरह का साहस नहीं किया था। इससे पहले फिलिस्तीन में इज़राइली कब्जे के खिलाफ यूएन ने जब प्रस्ताव पास किया था तो उसका 26 अफ्रीकी देशों ने समर्थन किया था। आमतौर पर अधिकांश पश्चिमी देश इज़राइल का समर्थन करते हैं।
नए वीज़ा नियम क्या हैं
हारेत्ज के मुताबिक न्यूज़ीलैंड सरकार ने इज़राइली नागरिकों के लिए वीज़ा आवेदन प्रक्रिया में एक नया नियम जोड़ा है। इसके तहत, अगर कोई इज़राइली नागरिक न्यूज़ीलैंड आने के लिए वीज़ा आवेदन करता है और उसने इज़रायल की सेना में सेवा की है, तो उसे इसकी जानकारी देनी होगी। इस जानकारी का इस्तेमाल न्यूज़ीलैंड सरकार द्वारा आवेदक की बैकग्राउंड जांच के लिए किया जाएगा। यह नियम उन इज़रायली नागरिकों पर लागू होगा जो न्यूज़ीलैंड में पर्यटन, पढ़ाई या काम करने के मकसद से आना चाहते हैं।
न्यूज़ीलैंड सरकार का कहना है कि यह कदम देश की सुरक्षा और इमीग्रेशन नीतियों को मजबूत करने के लिए उठाया गया है। सरकार का मानना है कि सेना में सेवा कर चुके व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की जांच करना आवश्यक है ताकि यह तय किया जा सके कि वे न्यूज़ीलैंड की शांति और सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करेंगे।न्यूजीलैंड आव्रजन प्राधिकरण (आईएनजेड) के बयान के अनुसार, इज़राइलियों को एक "अतिरिक्त सूचना फॉर्म" पूरा करना होगा जिसमें उन लोगों के लिए दो खंड शामिल हैं जिन्होंने अपने गृह देश में सैन्य सेवा ली है।
नीति के पीछे के कारणः न्यूज़ीलैंड सरकार ने इस नीति को लागू करने के पीछे कई कारण बताए हैं। पहला कारण देश की सुरक्षा है। इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष के कारण इज़राइली सेना में सेवा कर चुके व्यक्तियों को लेकर न्यूज़ीलैंड सरकार चिंतित है। सरकार का मानना है कि ऐसे व्यक्ति संघर्ष से जुड़े हो सकते हैं और न्यूज़ीलैंड में आकर सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। यानी युद्ध में भाग लेने के कारण ऐसे इज़राइलियों की मानसिक स्थिति क्या पता ठीक न हो और वो न्यूज़ीलैंड में रहते हुए कोई अपराध न कर बैठें।
दूसरा कारण न्यूज़ीलैंड की इमीग्रेशन नीति को मजबूत करना है। न्यूज़ीलैंड एक शांतिप्रिय देश माना जाता है और वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि उसके यहां आने वाले लोग देश की शांति और सुरक्षा को बनाए रखें। इसके लिए सरकार ने इमीग्रेशन नियमों को सख्त बनाने का फैसला किया है।
वीज़ा नियमों में बदलाव की एक वजह अंतरराष्ट्रीय दबाव भी है। फिलिस्तीन समर्थकों और मानवाधिकार संगठनों ने लंबे समय से इज़राइली सेना की कार्रवाइयों की आलोचना की है। न्यूज़ीलैंड सरकार ने इस दबाव को महसूस किया होगा और इस नीति को लागू करने का फैसला किया होगा।
फिलिस्तीन समर्थकों की प्रतिक्रिया
न्यूज़ीलैंड के फिलिस्तीन समर्थकों ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका मानना है कि यह कदम इज़राइल की सेना की कार्रवाइयों के खिलाफ एक मजबूत संदेश है। फिलिस्तीन समर्थकों का कहना है कि इज़राइल की सेना ने फिलिस्तीनियों के खिलाफ हिंसा और अत्याचार किए हैं और ऐसे लोगों को न्यूज़ीलैंड में प्रवेश देना उचित नहीं है। फिलिस्तीन समर्थकों ने कहा कि यह कदम मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उठाया गया है। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि अन्य देश भी न्यूज़ीलैंड के इस कदम का अनुसरण करेंगे और इज़राइल की सेना की कार्रवाइयों के खिलाफ मजबूत रुख अपनाएंगे।
इज़राइल और उसके समर्थकों ने इस नीति को विवादास्पद बताया है। इज़राइल सरकार का कहना है कि यह नीति इज़राइली नागरिकों के साथ भेदभाव करती है और उन्हें न्यूज़ीलैंड में प्रवेश करने से रोकती है। इज़राइल के समर्थकों का मानना है कि यह नीति इज़राइल की सेना की छवि को धूमिल करने के लिए बनाई गई है। इज़राइल के समर्थकों ने कहा है कि इज़राइल की सेना एक प्रोफेशनल सेना है और उसका मुख्य उद्देश्य देश की सुरक्षा करना है। उन्होंने कहा कि सेना में सेवा करना इज़रायल के नागरिकों का कर्तव्य है और इसे एक नकारात्मक चीज के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
न्यूज़ीलैंड के इस फैसले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ देशों और मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम की सराहना की है और इसे मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक सकारात्मक कदम बताया है। वहीं, कुछ देशों ने इसे इज़राइल के साथ भेदभाव बताया है और कहा है कि यह नीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकती है।
अपनी राय बतायें