ज़िहादी आतंकवाद के बाद क्या अब दुनिया को श्वेत नस्लवाद का ख़तरा भी लंबे समय तक सताएगा? न्यूज़ीलैंड में मसजिदों पर किया गया हमला कम से कम इसी ओर इशारा करता है। हमलावरों की नमाज़ पढ़ने वालों से किसी तरीक़े की कोई दुश्मनी नहीं थी, फिर भी उनको निशाना बनाया गया। इस हमले में क़रीब 50 लोगों की मौत हो चुकी है और दर्ज़नों लोग घायल हैं।
इस हमले का सबसे क्रूर और पीड़ादायक पहलू यह है कि आतंकवाद के इतिहास में शायद यह पहला ऐसा वाक़या था जब हमलावर गोलियों से लोगों को भून रहे थे और इसकी लगातार लाइव स्ट्रीमिंग भी कर रहे थे। यानी वह इंटरनेट के ज़रिये दुनिया को यह दिखा रहे थे कि वे क्या कर रहे थे। यह ख़ौफनाक घटना न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में घटी है।
एक हमलावर ने इस शूटिंग को सोशल मीडिया पर क़रीब 17 मिनट तक लाइव किया। इसमें हमलावर ने ख़ुद को कार से निकलने से लेकर मसजिद में घुसने, अंधाधुंध फ़ायरिंग कर लोगों की हत्या करने और लोगों के चीखने-चिल्लाने तक को लाइव किया।
यह कोई छोटा-मोटा हमला नहीं है, न्यूज़ीलैंड में अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। शुक्रवार की नमाज के दिन क्राइस्टचर्च की दो अलग-अलग मसजिदों में अंधाधुंध फ़ायरिंग में क़रीब 50 लोगों की मौत हो गयी। पुलिस ने इस घटना के बाद 4 लोगों को हिरासत में लिया है, जिसमें से तीन पुरुष और एक महिला हैं। इन हमलावरों में से एक ऑस्ट्रेलियाई मूल का नागरिक है। ऑस्ट्रेलिया की पुलिस ने उस हमलावर की पहचान 28 वर्षीय एक ह्वाइट ब्रेंटन टरंट के रूप में की है। ट्विटर, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर उसके एकाउंट को हटा दिया गया है और उस लाइव स्ट्रीमिंग वाले वीडियो को भी इंटरनेट से हटाया जा रहा है।
हमले से पहले मेनिफ़ेस्टो जारी
हमलावर ब्रेंटन टरंट ने इंटरनेटर पर 74 पेज का एक भारी-भरकम ‘मेनिफ़ेस्टो’ जारी किया है। ‘मेनिफ़ेस्टो’ में कहा गया है कि हमलावरों ने दो साल से इसकी तैयारी की और तीन महीने पहले निशाने को तय किया। इसमें यह भी बताया गया है कि विस्फ़ोटक की जगह फ़ायरिंग से हमले को इसलिए चुना गया ताकि मीडिया का ध्यान खींचा जा सके और अमेरिका में विभाजनकारी बहस को और हवा मिल सके। ‘मेनिफ़ेस्टो’ में साफ़-साफ़ लिखा है कि उन्होंने न्यूज़ीलैंड को इसलिए चुना कि यह संदेश जाए कि हमला करने वाले दुनिया के हर कोने तक पहुँच रखते हैं।Christchurch attacker manifesto says planned for 2 years, target selected 3 months ago, chose firearms not explosives to attract media attention & fuel divisive debate in US. (Am not posting links to doc).
— Jason Burke (@burke_jason) March 15, 2019
Chose NZ to highlight ‘that invaders are in all our lands’
- ब्रेंटन टरंट ने ‘मेनिफ़ेस्टो’ में कहा है कि वह न्यूज़ीलैंड सिर्फ़ हमले की साज़िश रचने और दूसरे हमलावरों को प्रशिक्षण करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में आया था। उसने दावा किया कि वह किसी संगठन से नहीं है, लेकिन उसकी राष्ट्रवादी समूहों से बातचीत होती रही है और उसने उन्हें चंदा भी दिया है। हालाँकि उसने यह भी कहा कि न तो कोई ग्रुप इस हमले से जुड़ा है और न ही किसी ने ऐसा करने के लिए आदेश दिया है।
हमलावर श्वेत नस्लवाद से ग्रसित?
हमलावर मेनिफ़ेस्टो में इसका ज़िक्र करता है कि उसने श्वेत नस्लवादी समूहों को चंदा दिया और अमेरिकन मास शूटर उसके आदर्श हैं। उसने 'श्वेत नस्लवादियों' द्वारा प्रयोग किये जाने वाले '14 शब्दों' के नारे का ज़िक्र किया है।
श्वेत नस्लवादी इस नारे 'We must secure the existence of our people and a future for white children' यानी 'हमें हमारे लोगों का अस्तित्व और श्वेत बच्चों का भविष्य अवश्य सुरक्षित करना चाहिए' का अक्सर प्रयोग करते हैं।
श्वेत नस्लवादी ख़ुद को मानते हैं सबसे बेहतरीन नस्ल
अमेरिका में कू क्ल्क्स क्लैन, स्किन हेड्स जैसे कई श्वेत नस्लवादी संगठन लंबे समय से सक्रिय हैं जिनका मानना है कि श्वेत दुनिया की सबसे बेहतरीन नस्ल है और उन्हें दूसरे रंग के लोगों के ऊपर शासन करने का अधिकार है। जर्मनी का हिटलरवादी संगठन नाज़ी पार्टी भी इसी तरीक़े की विचारधारा में यक़ीन करती थी और जर्मनी का चांसलर बनने के बाद उसने यहूदियों का क़त्ल कराया, यह सर्वविदित है। हालाँकि हिटलर की हार और उसकी आत्महत्या के बाद श्वेत नस्लवादी कभी पूरी तरीक़े से अपना सिर नहीं उठा पाये। लेकिन रह-रहकर, ख़ासकर अमेरिका में, वे छिटपुट हिंसक वारदातें करते रहे हैं। इनके छोटे और मज़बूत संगठन भी हैं। हालाँकि अमेरिकी समाज ने इन्हें कभी नैतिक मान्यता नहीं दी है। इधर इंटरनेट के जमाने में एक बार फिर वे काफ़ी सक्रिय हैं।क्या श्वेत समाज ख़तरे में है?
श्वेत नस्लवादी प्रवासियों और दूसरे रंग के लोगों की जमकर विरोध करते हैं और इनको लगता है कि अमेरिका जैसे देशों में अश्वेत और एशियाई मूल के लोगों के आने से श्वेत समाज ख़तरे में पड़ सकता है। वे इंटरनेट के माध्यम से अपने संगठन का विस्तार करने में लगे हैं।- इनके एक नेता डेविक ड्यूक का मानना है कि इंटरनेट के माध्यम से वे नस्लवाद की ऐसी ज्योति जलाएँगे जिससे पूरी दुनिया काँप उठेगी। रिचर्ड हैसन जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिये ये लोग अपनी बात को ज़्यादा लोगों तक फैला रहे हैं और फ़ंड भी इकट्ठा कर रहे हैं।
न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा एर्डर्न ने भी हमला करने वाले शूटर को कुछ ऐसा ही अतिवादी, दक्षिणपंथी और हिंसक आतंकी क़रार दिया है।
न्यूजीलैंड की सबसे ख़राब घटना
बता दें कि हमलावरों ने शहर की दो मसजिदों को चुना और उस दिन हमला किया जब शुक्रवार की नमाज़ अदा की जाती है। इस दिन काफ़ी भीड़ होती है।
बांग्लादेश के क्रिकेट खिलाड़ी बाल-बाल बचे
क्राइस्टचर्च में टेस्ट मैच खेलने पहुँची बांग्लादेश क्रिकेट टीम के खिलाड़ी इस हमले में बाल-बाल बच गये। बांग्लादेश के खिलाड़ी तमीम इक़बाल ने भी इस घटना का अनुभव ट्विटर पर बताया। उन्होंने ट्वीट किया, 'गोलीबारी में पूरी टीम बाल-बाल बच गई। काफ़ी डरावना अनुभव था।' बताया जा रहा है कि घटना के बाद बांग्लादेश के खिलाड़ी किसी तरह मसजिद से सुरक्षित निकलने में सफल रहे। न्यूज़ीलैंड की ब्लैक कैप्स टीम के साथ बांग्लादेश टीम का खेला जाने वाला यह मैच रद्द कर दिया गया है।Entire team got saved from active shooters!!! Frightening experience and please keep us in your prayers #christchurchMosqueAttack
— Tamim Iqbal Khan (@TamimOfficial28) March 15, 2019
ज़िहादी आतंकवाद और श्वेत नस्लवाद
हम आपको बता दें कि सोवियत संघ के ढहने के बाद से दुनिया ज़िहादी आतंकवाद से काफ़ी थर्रायी हुई है। अल क़ायदा और इसलामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों ने आतंक को एक नया आयाम दिया है। पिछले दिनों ये संगठन काफ़ी कमज़ोर हुए हैं। लेकिन न्यूज़ीलैंड की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि हिंसा में विश्वास रखने वाले और धर्म के नाम पर लोगों में भेद करने वाले लोग अभी भी ज़िंदा हैं। ऐसा लगता है कि ज़िहादी आतंकवाद भले ही कमज़ोर हो गया हो, लेकिन श्वेत नस्लवाद एक नए सिरे से अपना सर उठाने की कोशिश कर रहा है।
अपनी राय बतायें