अफ़ग़ानिस्तान में सरकार के गठन का एलान शुक्रवार को होने की बात कही जा रही थी लेकिन तालिबान ने इसे टाल दिया है। तालिबान की ओर से कहा गया है कि अब शनिवार को इसका एलान किया जाएगा।
उधर, सत्ता की कमान मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर के हाथ में होने की ख़बरें आई हैं। तालिबान के जो चार बड़े नेता हैं, उनमें मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर का दूसरा नंबर है। जबकि पहले नंबर पर तालिबान का प्रमुख मुल्ला हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा है।
मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर तालिबान की राजनीतिक शाखा का प्रमुख है। बरादर ने मुल्ला उमर के साथ मिलकर तालिबान की नींव रखी थी और वह तालिबान का प्रमुख भी रह चुका है। बरादर को 2010 में पाकिस्तान के सुरक्षा बलों ने कराची में पकड़ लिया था और 2018 में उसे छोड़ा गया था।
तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला मोहम्मद याक़ूब और तालिबानी नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तेनकज़ई भी सरकार में अहम पदों पर होंगे।
अफ़ग़ानिस्तान की सरकार से हटकर बात करें तो तालिबान में तीसरे नंबर पर नाम आता है सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का। सिराजुद्दीन हक़्क़ानी नेटवर्क का प्रमुख है और तालिबान का उपनेता है। इसके बाद नंबर आता है मुल्ला याक़ूब का। मुल्ला याक़ूब तालिबान मिलिट्री कमीशन का प्रमुख है।
भले ही सरकार की कमान मुल्ला बरादर के हाथों में आई हो लेकिन तालिबान और इसकी सरकार में कामकाज हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा की मर्जी से ही चलेगा। अखुंदज़ादा इसलामी क़ानून के विद्वान हैं। कहा जाता है कि उनमें तालिबान के अलग-अलग गुटों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करने की काबिलियत है।
2016 में तालिबान के तत्कालीन प्रमुख मुल्ला मंसूर अख़्तर के अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने के बाद हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा की तालिबान प्रमुख के पद पर ताजपोशी हुई थी।
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अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान ने तेज़ी से आगे बढ़ना शुरू किया था और तमाम शहरों को जीतने के बाद काबुल पर भी कब्जा कर लिया था। बीते कई दिनों से तालिबान के नेता सरकार गठन की कोशिशों में जुटे थे। इस दौरान तालिबान ने अपना बदला हुआ रूख़ दिखाया है और कहा है कि वह दुनिया के सभी देशों से बेहतर रिश्ते चाहता है।
उसने महिलाओं को भी हक़ देने की बात कही है लेकिन कहा है कि उन्हें इसलामिक नियमों का पालन करना होगा।
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