इज़रायली एल अल के जहाज ने 31 अगस्त को जब तेल अबीब से अबू धाबी के लिए उड़ान भरी जिसमें जेअर्ड कशनर और इज़रायल व अमेरिका के बड़े अधिकारी और व्यवसाय जगत के लोग सवार थे तो लोगों ने अपने बैग की तसवीरें लीं और उन्हें ट्वीट किया। बैग पर लिखा था, 'द अब्राहम अकॉर्ड'।
धार्मिक सहिष्णुता
अमेरिका, अबू धाबी और तेल अबीब के बीच 31 को हुए इस त्रिपक्षीय क़रार के कई सांकेतिक महत्व हैं। अब्राहम को इसलाम में पैगंबर माना जाता है और उन्हें यहूदी और इसलाम धर्म में भी परिवार के पिता के रूप में सम्मान दिया जाता है। इस संधि को अब्राहम क़रार कह कर इन लोगों ने यह संकेत दिया है कि अब्राहम के ईसाई, यहूदी और मुसलमान वशंज सदियों के धार्मिक संघर्ष को ख़त्म करना चाहते हैं। इससे यह संकेत भी मिलता है कि कम से कम दिखावे के लिये ही सही, वे धार्मिक संघर्ष से सहिष्णुता की ओर बढ़ रहे हैं।
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पिछले कुछ वर्षों में खाड़ी के इलाक़े में सहिष्णुता बढ़ी है। यह वह इलाक़ा है जिसकी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कट्टरता की वजह से काफी आलोचना होती रही है और यह इन देशों के नियम-क़ानूनों में भी दिखता है।
खाड़ी के ये देश और ख़ास कर सऊदी अरब की अंतरराष्ट्रीय जगत में काफी खराब छवि है। कट्टर इसलाम, सामाजिक पुरातनपंथी, क्रूर सज़ा, असहिष्णुता, महिलाओं के अधिकार न होने और दूसरे कई कारणों से ये देश बदनाम रहे हैं।
ख़ैर, इसके संकेत मिल रहे हैं कि बदलाव होने वाला है और यह दो अलग-अलग रास्तों से आने वाला है। एक रास्ता धर्मों के बीच सद्भावना कायम करना है तो दूसरा, इसलाम के अंदर हर तरह की उग्र विचारधारा का विरोध करना है। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब के इसलामी मामलों के मंत्रालय ने राजधानी रियाद में मसजिदों की अधिकतम संख्या तय कर दी है और कहा है कि धार्मिक भाषणों का प्रसारण लाउडस्पीकरों पर न किया जाए और ऐसे भाषणों का वाल्यूम कम रखा जाए।
सहिष्णुता मंत्री
संयुक्त अरब अमीरात में राष्ट्रीय सहिष्णुता कायक्रम को लागू करने के लिए शेख नहयन बिन मुबारक अल नहयन को देश का पहला सहिष्णुता मंत्री बनाया गया। उस देश में 2019 में पोप का स्वागत किया गया। उसके बाद पहला हिन्दू मंदिर बना और पहला यहूदी पूजा स्थल सिनेगॉग बनाया गया। अबू धाबी का ऐसा पहला परिसर बनाया गया जिसमें मसजिद, गिरजाघर और सिनेगॉग हैें। राज्य ने दूसरे धर्मों के प्रति काफी उदार रवैया अपनाया उनके सांस्कृतिक समूहों और सामुदायिक केंद्रों को छूट दी गई।संयुक्त अरब अमीरात के नेता मुहम्मद बिन ज़ायद अल नहयन के नेतृत्व में उसकी कामयाबी के बाद सऊदी अरब के शहजादे मुहम्मद बिन सलमान ने भी अपने यहां परिवर्तन किए। संयुक्त अरब अमीरात से शिक्षा लेते हुए सऊदी अरब ने 2017 में महिलाओं को गाड़ी चलाने की इजाज़त दे दी और ताक़तवर कट्टरपंथी लॉबी की परवाह नहीं की। संगीत के कनसर्ट्स होने लगे हैं, सिनेमा हॉल खुल गए हैं और हाल फिलहाल मक्क़ा मदीना की पवित्र मसजिदों के प्रशासन में ऊँचे पदों पर 10 महिलाओं की नियुक्ति की घोषणा की है।
हज़ रद्द
कोरोना महामारी से पता चला कि धार्मिक मामलों में जिस तरह सऊदी अरब जैसा राजशाही काम करता है, वह बिल्कुल पहले से बदला हुआ है। रियाद ने जून में दुनिया के पूरे मुसलिम समुदाय के गुस्से का जोखिम उठा कर भी सालाना धार्मिक कार्यक्रम हज रद्द कर दिया। इससे मुसलिम समुदाय में कोरोना फैलाने वाला बहुत बड़ा कार्यक्रम टल गया। सऊदी अरब के पड़ोसी देश संयुक्त अरब अमीरात ने भी काफी संयम दिखाया, दुबई और अबू धाबी जैसे बड़े जगहों पर मसजिद और दूसरे धार्मिक स्थल बंद कर दिए और कोरोना संक्रमण में काफी कटौती हुई।ये अहम कदम हैं जो मानसिकता में बदलाव दिखाते हैं और वे रातोंरात नहीं हुए हैं। दो दशक पहले अल क़ायदा का 9/11 का आतंकवादी हमला ही वह बिन्दु था, जहां से यह शुरू हुआ।
विमान का अपहरण करने वालों में तीन उनके अपने ही संपन्न समाज की उपज थे, यह ऐसा तथ्य था जिसने उनकी आंखें खोल दीं। उन्होंने चुपचाप कट्टरपंथ के संकट का समाधान ढूंढना शुरू किया और यह सिर्फ़ अपनी सीमाओं के अंदर ही नहीं बल्कि बाहर भी किया और इसके लिए बड़े राजनीतिक फ़ैसले की ज़रूरत थी।
मुसलिम ब्रदरहुड
कट्टरपंथ और राजनीतिक इसलाम के ख़िलाफ़ संयुक्त अरब अमीरात की कार्रवाई आसान नहीं थी क्योंकि इसके अपने ही 7 अमीरातों में से कम से कम दो इस मुद्दे पर बेहद नरम रवैया रखते थे। इसके अलावा दुबई जैसे इलाक़े इस पर फले फूले थे कि वित्तीय लेनदेन के मामलों में उनसे कोई सवाल न पूछा जाए। लेकिन अबू धाबी ने पक्का इरादा कर लिया था और उसका नतीजा अब दिखने लगा था।अरब स्प्रिंग के बाद मिस्र में मुसलिम ब्रदरहुड की सरकार बन जाने से संयुक्त अरब अमीरात ने मिस्र के हज़ारों धर्म प्रचारकों को चुपचाप देश के बाहर कर दिया। ये वे लोग थे जिनका मुसलिम ब्रदरहुड से किसी तरह का जुड़ाव था। इसने मुसलिम ब्रदरहुड को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया और उससे जुड़े समूह अल इसलाह पर प्रतिबंध लगा दिया।
मसजिदों की संख्या तय
एक कदम आगे बढ़ कर शुक्रवार की नमाज के बाद दिए जाने वाले धार्मिक प्रवचनों पर नियंत्रण किया गया, पूरे देश में उनका एक मानक बनाया गया। इससे मुल्लाओं के हाथ से कट्टर और पुरातनपंथी या राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे छिन गए। संयुक्त अरब अमीरात ने हेदिया और सवाब जैसे केंद्र भी शुरू किए। हेदिया वह केंद्र होता है जहां कट्टरपंथ और दूसरे हिंसक विचारों के ख़िलाफ़ नीतियां बनाई जाती हैं। सवाब वह जगह है जहां अमेरिकी की मदद से इंटरनेट पर कट्टरपंथ को रोका जाता है। यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक इसलाम का विरोध करने, इसलामी कट्टरपंथ पर लगाम लगाने के बारे में भारत में कोई चर्चा ही नहीं होती है जबकि आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में यह अहम है।इस तरह की सामाजिक ‘री-डिजायनिंग’ से कई तरह की चुनौतियां आती हैं, यह इससे साफ़ है कि अबू धाबी में यहूदी राज्य इज़रायल का दूतावास खुलने वाला है। एक बड़ी चुनौती यह भी है कि तुर्की और क़तर जैसे क्षेत्रीय ताक़तें राजनीतिक (सुन्नी) इसलाम का झंडाबरदार बन कर सामने आती हैं।
तुुर्की और क़तर ने मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब से निकाल गए मुसलिम ब्रदरहुड के लोगों को अपने यहां पनाह दी है। दोहा ने हमास के नेता खालिद अल मसाल और मिस्र के तेज़ तर्रार नेता युसुफ़ अल क़रदवी को भी अपने यहां आश्रय दिया।
दरअसल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर और खाड़ी सहयोग परिषद के बीच मनमुटाव इसलिए बढ़ा कि रियाद और अबू धाबी को लगा कि कतर इन इसलामी समूहों को समर्थन दे रहा है और अल जज़ीरा टेलीविज़न चैनल के जरिए कट्टरपंथी इसलाम को बढ़ावा दे रहा है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत के पड़ोस में होने वाले ये परिवर्तन भारत के लिए बेहद अहम हैं। लगभग आधी सदी तक सऊदी अरब के वहाबी धर्म गुरु इसलामी विचारधारा के सबसे कट्टरपंथी सोच के केंद्र रहे। अब जबकि उसकी जगह अधिक सहिष्णु और प्रगतिशील रवैया अपनाया जा रहा है, दक्षिण एशिया के मुसलिम समुदायों पर इसका असर निश्चित रूप से पड़ेगा। संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी में सहिष्णुता की जीत पर काफी कुछ दाँव पर लगा हुआ है। ऐसे में भारत में असहिष्णुता उफान पर है।
(ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से साभार)
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