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लगातार दो दिनों से विस्फोटों से लेबनान दहल उठा है। पूरी दुनिया ही इन विस्फोटों से आश्चर्यचकित है। सवाल कौंध रहा है कि आख़िर एक साथ संचार के साधन पेजर या वाकी टॉकी में विस्फोट इतने बड़े पैमाने पर कैसे हो सकते हैं? क्या इन उपकरणों में पहले से विस्फोक लगाए गए थे या फिर वायरस डालकर इन उपकरणों की लीथियम बैट्री को उड़ा दिया गया?
पेजर और वॉकी-टॉकी में विस्फोट कैसे हुए और इसको लेकर क्या-क्या थ्योरी चल रही है, इसको जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर इन विस्फोटों में क्या हुआ है। लेबनान में हिज़्बुल्लाह के गढ़ में बुधवार को वॉकी-टॉकी के फटने से 20 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हुए। इससे एक दिन पहले मंगलवार को पेजरों में विस्फोट से बारह लोग मारे गए और क़रीब 3000 लोग घायल हो गए।
मंगलवार को क्षेत्रीय सीसीटीवी फुटेज में किराने की दुकान और बाजार सहित विभिन्न स्थानों पर छोटे हैंडहेल्ड डिवाइस पेजर फटते हुए दिखाई दिए। सड़क पर वाहन चलाते और घरों में भी ये विस्फोट हुए। इसी तरह के विस्फोट बुधवार को वॉकी-टॉकी में भी हुए।
रॉयटर्स ने एक सुरक्षा सूत्र के हवाले से बताया कि हाथ में पकड़े जाने वाले रेडियो या वॉकी-टॉकी हिजबुल्लाह द्वारा पांच महीने पहले खरीदे गए थे, लगभग उसी समय जब पेजर खरीदे गए थे।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक पेजर में बैटरी के बगल में लगभग 1 से 2 औंस विस्फोटक सामग्री लगाई गई थी। मंगलवार को हुए विस्फोटों को संगठन के इतिहास में सबसे बड़ी सुरक्षा चूक करार दिया गया है। लेबनान के अधिकारियों ने दावा किया है कि इसराइल ने देश में आयात किए गए पेजर के साथ छेड़छाड़ की है। पेजर बनाने वाली कंपनी ने कहा है कि डिवाइस पर उसका ब्रांड तो था, लेकिन उन्हें बुडापेस्ट की एक कंपनी ने बनाया था।
हालाँकि विस्फोट कैसे हुए, इसकी सटीक जानकारी के लिए जाँच अभी भी जारी है, लेकिन कुछ सिद्धांत सामने आए हैं।
अधिकांश बहस इस विचार के इर्द-गिर्द केंद्रित है कि पेजर के साथ छेड़छाड़ की गई थी, जिससे उनकी बैटरियाँ ज़्यादा गर्म हो गईं और विस्फोट हो गया। लेबनान के दूरसंचार मंत्री जॉनी कॉर्म के अनुसार, यह ज़्यादा गर्म होना गड़बड़ी का संकेत देता है। हालाँकि, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ रॉबर्ट ग्राहम ने इस सिद्धांत को खारिज कर दिया। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने तर्क दिया कि बैटरी को जलाने से ज़्यादा कुछ करना असंभव है। इसके बजाय, उन्होंने कहीं ज़्यादा संभावित कारण बताया कि किसी ने उपकरणों में विस्फोटक डालने के लिए इन्हें बनाने वाले कारखानों को रिश्वत दी।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, ताइवान स्थित निर्माता गोल्ड अपोलो से हिजबुल्लाह द्वारा ऑर्डर किए गए 5000 पेजर के एक नए बैच में सुरक्षा चूक हुई। लेबनानी सुरक्षा सूत्रों ने भी कुछ ऐसा ही कहा है।
वॉकी-टॉकी को भी लगभग उसी समय खरीदा गया था। माना जाता है कि इसमें भी इसी तरह की छेड़छाड़ की गई। एनडीटीवी ने एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि इन उपकरणों पर ICOM का लेबल लगा है और कथित तौर पर ये जापान में बने हैं। माना जाता है कि उत्पादन स्तर पर इनके साथ छेड़छाड़ की गई है। हालाँकि जापानी कंपनी ने अपने यहाँ पर इन उपकरणों के बनाए जाने के दावे को खारिज किया है। इसने कहा है कि इसने 2014 में ही इन उपकरणों को बनाना बंद कर दिया है।
एक अन्य सिद्धांत सप्लाई चेन से छेड़छाड़ का है। सुरक्षा विशेषज्ञों का सुझाव है कि इसराइली खुफिया एजेंसियों ने हिजबुल्लाह तक पहुंचने से बहुत पहले ही इन उपकरणों तक पहुंच बना ली होगी। पेजर की पहचान गोल्ड अपोलो एआर-924 मॉडल के रूप में की गई थी, लेकिन आगे की जांच से पता चला कि इन्हें हंगरी में बीएसी कंसल्टिंग द्वारा निर्मित किया गया था। यह गोल्ड अपोलो ब्रांड का उपयोग करने के लिए लाइसेंसिंग अधिकार वाली कंपनी है। इससे यह संभावना बढ़ जाती है कि छेड़छाड़ निर्माण या वितरण चरणों के दौरान हुई, जिससे इसराइल को बिना पता लगाए विस्फोटक सामग्री लगाने का अवसर मिला।
हिजबुल्लाह ने कहा है कि ये उपकरण हाल ही में आयात किए गए शिपमेंट का हिस्सा थे, जिसका अर्थ है कि छेड़छाड़ लेबनान में पेजर पहुंचने से पहले हुई थी।
एक अन्य सिद्धांत यह है कि पेजर और वॉकी-टॉकी में सामान से छेड़छाड़ के बजाय इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल या रेडियो फ्रिक्वेंसी का उपयोग करके विस्फोट किया गया। साइबरस्पेस सोलारियम आयोग के एक सेवानिवृत्त एडमिरल और कार्यकारी निदेशक मार्क मोंटगोमरी ने ब्लूमबर्ग को बताया कि विस्फोट रेडियो फ्रिक्वेंसी या इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल द्वारा ट्रिगर किया गया हो सकता है।
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