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महिला दिवस पर विशेष : हज़ारों औरतें क्यों उतरी हैं पाकिस्तान की सड़कों पर?

पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी और मर्दवादी मुल्क़ में लाखों महिलाएं सड़कों पर है, हाथ में तख़्तियां ली हुईं, मुट्ठियाँ भींचती हुई, नारे लगाती हुईं, नाचती-गाती हुईं, महिला विरोधी क़ानूनों को बदलने की माँग करती हुईं, पुरुषों को चुनौती देती हुईं।
यह उस समाज में हो रहा है, जहाँ कंदील बलूच जैसी लोकप्रिय गायिका को मौत के घाट उनके भाई इसलिए उतार दिया है कि वह सार्वजनिक रूप से गाना गाती थीं, यह उस पाकिस्तान में जो रहा है, जहाँ स्कूल जाने की ज़िद करने वाली मलाला युसुफ़ज़ई को गोली मार दी गई। 

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और हाँ! यह उस महान लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी भारत के पड़ोस में ही हो रहा है, जहाँ देश की राजधानी में दो महीने से अधिक समय से एक क़ानून को हटाने की माँग कर रही महिलाओं को ‘बिकाऊ’ साबित करने में मीडिया जुट जाता है, जहाँ संसद से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बैठी इन महिलाओं से मिलने के लिए न विपक्ष के किसी सांसद के पास समय है न ही, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा बुलंद करने वाले प्रधानमंत्री के पास।

पाकिस्तान की बेटियाँ!

लेकिन कराची, लाहौर, इसलामाबाद, पेशावर और दूर दराज़ में रह रही इन बेटियों को किसी के सहारे की ज़रूरत नहीं है। इसलिए उन्होंने अपना समूह बनाया है, अपना सोशल मीडिया अकाउंट बनाया है और पूरे आन्दोलन को वे ख़ुद संचालित कर रही हैं। 

चार्टर ऑफ़ डिमांड्स

महिलाओं के इस आन्दोलन का नाम है ‘औरत मार्च’। इनके चार्टर ऑफ़ डिमांड्स में 9 माँगे हैं : स्कूल, घर, काम करने की जगह और संस्थानों में यौन उत्पीड़न और हिंसा पर रोक, न्यायपूर्ण अर्थव्यवस्था जिसमें किसी का शोषण न हो, बच्चे पैदा करने का अधिकार सुनिश्चित करना, पर्यावरण सुरक्षा, शहरों में रहने का अधिकार यानी अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों को उजाड़ना रोका जाए और सबको बिजली, खाना पकाने का गैस, शिक्षा, साफ पानी मिले, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और ज़बरन धर्म परिवर्तन पर पूरी तरह से रोक, महिलाओं, ट्रांसजेंडरों और समलैंगिकों को राजनीति में बराबरी का हक़, मीडिया में सभी नस्लोंं को बराबरी का प्रतिनिधित्व और विकलांगों को बराबरी का अधिकार। 

इसके साथ ही अंग्रेज़ी वर्णमाला के ए से ज़ेड तक सभी अक्षरों से जुड़े पोस्टर तैयार किए गए हैं, जिनमें महिलाओं के शोषण का विरोध किया गया है और उनसे जुड़ी बातें कही गई हैं।
पाकिस्तान में औरत मार्च की शुरुआत साल 2018 में हुई जब कई शहरों में महिला दिवस के मौक़े पर आठ मार्च को महिलाओं ने जुलूस निकाला और अपने अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद की।

कैसे हुई शुरुआत?

पाकिस्तान में औरत मार्च का ख़याल तब आया जब कुछ महिलाओं ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कराची के एक पार्क में जुटने की योजना बनाई। इसका मक़सद हिंसा और उत्पीड़न से आज़ादी की माँग उठाना था।
इसका आयोजन बीते साल यानी 2019 में भी हुआ। लेकिन बीते साल जिन महिलाओं ने इसमें हिस्सा लिया उन्हें काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी, ऑनलाइन उन्हें ट्रोल किया गया और उन पर ज़ोरदार हमला बोला गया। आरोप है कि कुछ महिलाओं को बलात्कार और हत्या की धमकियाँ भी मिली हैं। 

धार्मिक और दक्षिणपंथी समूहों का मानना है कि यह मार्च इसलाम के ख़िलाफ़ है। दूसरी ओर, उदारवादी गुटों का भी कहना है कि मार्च की आवाज़ बुलंद करने वाली महिलाएं उत्तेजक दृष्टिकोण रखती हैं।

समर्थन बढ़ा

अगले साल यह एक बड़ा आंदोलन बन गया और इसमें ट्रांसजेंडर भी शामिल हो गए। ये सब महिलाओं की सुरक्षा के लिए बेहतर क़ानून लाने, मौजूदा क़ानूनों को लागू करने, जागरूकता बढ़ाने और नज़रिया बदलने की माँग कर रही हैं।
अभिनेत्री महिरा ने औरत मार्च का समर्थन किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि वह इसका समर्थन करती हैं, लेकिन आयोजकों को भड़काऊ पोस्टर और प्लैकार्ड इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।
औरत मार्च सिर्फ़ औरत तक सीमित नहीं है, इसे समर्थन करने के लिए बड़ी तादाद में पुरुष सामने आ रहे हैं। पाकिस्तान बार कौंसिल ने प्रेस बयान जारी कर मार्च का समर्थन किया है और कहा है कि सभी माँगे पूरी तरह क़ानूनी रूप से वैध है। 

International Women's Day : Pakistani women on streets demanding rights - Satya Hindi
राजनीतिक दलों ने खुल कर इस मार्च का समर्थन नहीं किया है और शायद इससे इस मार्च की ताक़त बढ़ी है और इसे नया आयाम भी दिया है।
राजनीतिक दलों ने यह तो इस डर से इसका समर्थन नहीं किया है कि वह कट्टरपंथी ताक़तों को नाराज़ करना नहीं चाहते, लेकिन इससे हुआ यह कि आन्दोलन का ग़ैर-राजनीतिक स्वरूप बचा रहा, जिससे इससे समाज के सभी वर्गों की महिलाएं जुड़ सकीं।

विरोध

लेकिन कट्टरपंथी तबका इसके ख़िलाफ़ खुल कर आ गया है। लाल मसजिद से जुड़े तत्वों ने खुले तौर पर इसका विरोध किया है और इसे बेशर्मी बताया है। लाहौर में कई जगहों पर औरतों द्वारा पुरुषों की बनाई तसवीर को ‘पोर्नोग्राफ़िक’ तक क़रार दिया। उन्होंने खुले आम मार्च को धमकी दी है। 

‘मेरा जिस्म, मेरी मर्ज़ी’

औरत मार्च के साथ ही एक और अभियान इस आन्दोलन के साथ चल रहा है और वह है ‘मेरा जिस्म, मेरी मर्ज़ी’। इस अभियान का सारा ज़ोर यह बताने पर है कि महिलाओं की देह पर उनका हक़ है और इस पर किसी तरह का किसी बहाने किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है।
इस अभियान का विरोध यह कह कर किया जा रहा है कि अशालीनता, अश्लील है और समाज को तोड़ने वाला है। इसे पश्चिमी और यहूदीवादी साजिश तक करार दिया जा रहा है। जमीअत-उलेमा-ए-इसलाम के अध्यक्ष मौलाना फ़जलुर रहमान ने कहा कि यह अशालीनता है और यहूदीवादी साजिश है।
टेलीविज़न चैनलों पर चल रही बहसों में कई लोगों ने तो ऑन एअर कह दिया है कि महिलाओं का जिस्म उनका नहीं है, मर्दों का है। एक ने कह दिया, ‘तेरा जिस्म तेरा है क्या बीवी? थूकता हूँ तेरे जिस्म पर!’

ज़मीन से कटा है आन्दोलन!

लेकिन इसके समर्थन में भी लोग आ रहे हैं और यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इसका अर्थ अश्लीलता नहीं बल्कि यह कहना है कि औरतों की देह पर उनका हक है।
इस आन्दोलन को समाज के पढ़े-लिखे, बुद्धिजीवी, प्रबुद्ध वर्ग का समर्थन हासिल है, छात्र इसके साथ हैं। पर समाज का बहुत बड़ा तबका इसके ख़िलाफ है, जो इसे ‘पश्चिम की साजिश’ मानता है, जिसके बहकावे में ‘कुछ सिरफिरी महिलाएं’ आ गई हैं।
पाकिस्तान की औरतों के मार्च का विरोध वहां के कट्टरपंथी कर रहे हैं तो भारत में शाहीन बाग का विरोध यहां के कट्टरपंथी कर ही रहे हैं। पाकिस्तान का राजनीतिक दल चुप है तो भारत में भी शाहीन बाग पर तमाम राजनीतिक दलों की चुप्पी बरक़रार है।
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प्रमोद मल्लिक
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