वे भारतीय नहीं, भारतीय अमेरिकी हैं। उनकी अपनी समस्याएं हैं, अपनी पसंद हैं, अपने हित हैं, उनका वोटिंग पैटर्न उनसे प्रभावित होता है। उन पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनके मूल देश का प्रधानमंत्री क्या फतवा जारी करता है। भारत में भले ही मोदी अब भी सबसे लोकप्रिय नेता हों, अमेरिका में नहीं हैं। अमेरिका में रहने वाले भारतीय उनकी क्यों सुनें?
प्रमोद मल्लिक
तमाम राजनयिक मानदंडों और अंतरराष्ट्रीय परंपराओं को ताक पर रख कर नरेंद्र मोदी ने भले ही 'हाउडी मोडी' कार्यक्रम में डोनल्ड ट्रंप को वोट देने की अपील कर दी और कोरोना के ख़तरों को नज़रअंदाज करते हुए उनका भारत में भव्य स्वागत किया, भारतीय मूल के अमेरिकी वोटर उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हैं। भारतीय प्रधानमंत्री की अपील को अनसुनी करते हुए ज़्यादा भारतीय अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन को वोट दे सकते हैं।
दरअसल, इंडियन अमेरिकन एटीच्यूड सर्वे 2020 से पता चला है कि भारतीय मूल के अमेरिकी वोटरों में सिर्फ 22 प्रतिशत ही रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप को वोट दे सकते हैं। दूसरी ओर 70 प्रतिशत से ज़्यादा ऐसे मतदाताओं ने जो बाइडन को समर्थन देने का एलान किया है।
एक दूसरे अमेरिकी सर्वे 'यूगव' में पाया गया है कि भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं में से 72 प्रतिशत से अधिक ने जो बाइडन को वोट देने का मन बनाया है।
अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव है, जिसमें भारतीय मूल की कमला हैरिस जो बाइडन की रनिंग मेट हैं, यानी बाइडन के राष्ट्रपति बनने पर वह उपराष्ट्रपति बनेंगी।
'हाऊडी मोडी'!
तो क्या भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं ने भारतीय प्रधानमंत्री की अपील को अनुसना कर दिया है? यह सवाल बहुत ही स्वाभाविक है क्योंकि दोनों नेताओं ने एक दूसरे से नज़दीकी दिखाने, एक दूसरे की नीतियों पर बहुत हद तक चलने और एक-दूसरे के प्रति निजी दोस्ती दिखाने की एक नहीं, कई बार कोशिशें की हैं। इन कोशिशों में राजनयिक परंपराओं का उल्लंघन हुआ है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मानदंडों का भी।
सितंबर 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में आयोजित 'हाऊडी मोडी' कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने वहाँ मौजूद अमेरिकी मूल के भारतीयों से ट्रंप को वोट डालने की अपील कर दी।
यह एक ऐसा कार्यक्रम था, जिसमें रिपब्लिकन ही नहीं, डेमोक्रेट्स सांसद भी मौजूद थे और सबने एक साथ भारतीय प्रधानमंत्री का स्वागत किया था।
'अबकी बार ट्रंप सरकार!'
लेकिन मोदी ने अपने भाषण में नारा लगाते हुए कहा, 'अबकी बार ट्रंप सरकार!' बात यहीं नहीं रुकी। मोदी ने कहा कि यदि इस बार भी ट्रंप चुनाव जीतते हैं और दुबारा राष्ट्रपति बनते हैं तो यह भारत के लिए अच्छा होगा।
ट्रंप ने इस कार्यक्रम का फ़ायदा उठाने की कोशिश की और 'हाऊडी मोडी' को देख ऐसा लगता था मानो वह किसी चुनाव रैली में बोल रहे हैं। उन्होंने विस्तार से बताया किस तरह उनके राष्ट्रपति बनने के बाद से टेक्सस में बेरोज़गारी अब तक के न्यूनतम स्तर पर है। उन्होंने यह भी कहा कि टैक्स कटौती की वजह से कारोबार में विस्तार हुआ है।
टेक्सस में हुए इस कार्यक्रम में किसे कितना फ़ायदा हुआ, देखें, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष की राय।
ट्रंप को फ़ायदा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा कि वह और उनका प्रशासन अमेरिका का दोस्त है, उनके सत्ता में रहने के दौरान भारतीयों ने जितना अमेरिका में निवेश किया है, उसके पहले कभी नहीं किया था। उनके कार्यकाल में भारतीयों ने हज़ारों नौकरियाँ पैदा की हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ था।
ट्रंप ने यह भी कहा कि उनका प्रशासन भारत का सबसे अच्छा दोस्त है और भारत उस पर भरोसा कर सकता है। ट्रंप ने भारतीय कंपनी पेट्रोनेट के अमेरिका में 2.50 अरब डॉलर निवेश करने के फैसले का भी श्रेय ले लिया और बताया कि उनकी वजह से ही यह सब हुआ है।
नमस्ते ट्रंप!
लेकिन बात यहीं नहीं रुकी। जिस समय कोरोना दस्तक दे चुका था, अमेरिका में उस पर बहुत हो हल्ला मच चुका था, यूरोप के कई देशों ने एहतियात बरतना शुरू कर दिया था और एशियाई देश वियतनाम ने लॉकडाउन लगा दिया था, नरेंद्र मोदी ने इनकी परवाह न करते हुए डोनल्ड ट्रंप को न सिर्फ भारत में स्वागत किया, बल्कि गुजरात के मोटेरा क्रिकेट स्टे़डियम में 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम किया। इस कार्यक्रम में ट्रंप प्रशासन पूरे लाव- लश्कर के साथ था और स्टेडियम में 'एक लाख' लोगों की भीड़ उनका स्वागत किया था। नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम 24 फरवरी को हुआ था।
भारत में 24 फरवरी को कोरोना के महज दो एक्टिव मामले थे, जबकि अमेरिका में कोरोना का 50वां मरीज मिला था और यह मामला ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ के रूप में चिन्हित हुआ था। भारत तब दिल्ली दंगों की आग में झुलस रहा था। यहां माना ही नहीं गया कि कभी ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ हो सकता है।
‘नमस्ते ट्रंप’ के लगभग 10 दिन बाद से यानी 3 मार्च से भारत में कोरोना का असर दिखने लगा था। इसी दिन ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी की ओर से सीमित तरीक़े से होली मनाने की घोषणा हो गयी। आवश्यकता पड़ने पर ही घर से निकलने की ताकीद की जाने लगी। आँकड़े बढ़ने लगे। होली के दिन 10 मार्च को भारत में 63 मामले थे और अमेरिका में 994।
अमेरिकी चुनाव में भारत!
इसके बावजूद 'यूगव' और इंडियन अमेरिकन एटीच्यूड सर्वे 2020 बताते हैं कि भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाता ट्रंप के बजाय जो बाइडन को तरजीह देंगे।
अमेरिका में भारतीय मूल के तकरबीन 20 लाख मतदाता हैं, यानी कुल इलेक्टोरल रोल का लगभग 1 प्रतिशत। इसके बावजूद जॉर्ज बुश- बिल क्लिंटन से लेकर डोनल्ड ट्रंप- जो बाइडन तक, हर बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भारतीय मतदाताओं को रिझाने की कोशिश करते हैं।
अमेरिकी भारतीय मूल के लोगों को अपनी प्रचार टीम में शामिल करते हैं, उनसे चंदा लेते हैं और जीतने पर उन्हें अपने प्रशासन में छोटा-मोटा काम भी देते हैं। इस बार भी भारतीय अमेरिकियों ने 'विक्ट्री फ़ॉर बाइडन फंड' में 33 लाख डॉलर का चंदा दिया है।
कमला हैरिस
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, कमला हैरिस की वजह से भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाता पेनसिलवेनिया, फ़्लोरिडा और मिशिगन जैसे बैटलग्राउंड स्टेट में अहम भूमिका में होंगे।
डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए चंदा एकत्रित करने वाली टीम में शामिल रमेश कपूर ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा,
“
'भारतीय मूल के अमेरिकियों के इस रुझान की वजह सिर्फ कमला हैरिस नहीं हैं। आप्रवासियों की लगातार आलोचनाओं और उन्हें लगभग धमकाने की नीति की वजह से भारतीय अमेरिकी डोनल्ड ट्रंप से ख़फ़ा हैं। लोग याद करते हैं कि किस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति ने 2019 में उन्हें 'अपने घर' लौट जाने को कहा था।'
रमेश कपूर, डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य
ट्रंप से नाराज़गी क्यों?
भारतीय हितों की रक्षा करने के लिए बने समूह 'इंडियास्पोरा' के संस्थापक एम. आर. रंगस्वामी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, “यह सच है कि ट्रंप ने भारत और भारतीय अमेरिकियों पर ध्यान दिया, हाऊडी मोडी कार्यक्रम करवाया, भारत की यात्रा की, पर सवाल यह है कि क्या यह कमला हैरिस फैक्टर पर भारी पड़ेगा?"
क्लेअरमों मैककेना कॉलेज के राज भूतोड़िया कैलिफोर्निया में रहते हैं और उन्होंने भारतीय मूल के रो खन्ना के हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव्स चुनाव में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया था। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा,
“
'व्यापार के मुद्दों पर ट्रंप के रवैए से भारतीय अमेरिकी नाराज़ हैं। इसके अलावा एचवनबी वीज़ा के नियम-क़ानून में किए गए बदलावों से भी इन लोगों में गुस्सा है। इस स्कीम में सबसे ज़्यादा वीज़ा भारतीयों को ही मिलता रहा है।'
राज भूतोड़िया, डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य
सवाल है, भारतीय मूल के अमेरिकी क्या वाकई मोदी की बात अनसुनी कर देंगे या कोई चमत्कार होगा। पर्यवेक्षकों का कहना है कि वे भारतीय नहीं, भारतीय अमेरिकी हैं। उनकी अपनी समस्याएं हैं, अपनी पसंद हैं, अपने हित हैं, उनका वोटिंग पैटर्न उनसे प्रभावित होता। उन पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनके मूल देश का प्रधानमंत्री क्या कहते हैं। भारत में भले ही मोदी अब भी सबसे लोकप्रिय नेता हों, अमेरिका में नहीं हैं। अमेरिका में रहने वाले भारतीय उनकी क्यों सुनें?
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प्रमोद मल्लिक
लेखक पत्रकार हैं, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखते रहते हैं। और पढ़ें »
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