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ईस्टर रविवार के ही दिन क्यों हुए श्रीलंका में चर्चों पर हमले?

श्रीलंका में ठीक ईस्टर रविवार को प्रार्थना करते, उत्सव मनाते और ईश्वर को धन्यवाद अदा करते हुए निर्दोष श्रद्धालुओं पर जानलेवा हमलों का क्या अर्थ है? और वह भी उस देश में जहाँ इस तरह के सांप्रदायिक हमलों का इतिहास नहीं रहा है। ईसाइयों के साथ भेदभाव और मुसलमानों या बौद्धों के साथ छिटपुट झड़पों के अलावा कोई बहुत बड़ी वारदात कम से कम हाल फ़िलहाल नहीं हुई है। अलगाववादी आंदोलन और गृहयुद्ध के ख़ात्मे के बाद यह पहला हमला है, जब इतनी बड़ी तादाद में लोग मारे गए हैं। लेकिन पहले समझना होगा कि यह हमला ठीक ईस्टर रविवार को ही क्यों किया गया? इस दिन का क्या महत्व है?
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क्या होता है ईस्टर रविवार?

ईस्टर रविवार वह दिन है, जब ईसाइयों के पवित्र ग्रंथ बाइबल के न्यू टेस्टामेंट के अनुसार क्रॉस पर चढ़ाए जाने और दफ़नाए जाने के बाद ईसा मसीह जीवित हो उठे थे। इसके मुताबिक, जब दफ़नाए जाने के तीसरे दिन ईसा मसीह के शिष्य प्रार्थना करने उनकी क़ब्र पर गए तो पाया कि वह क़ब्र खुली पड़ी है, खाली है और उसके अंदर कोई शरीर नहीं है। उसी समय वहाँ एक देवदूत प्रकट हुए, जिन्होंने कहा कि ईश्वर के पुत्र सशरीर अपने परम पिता के पास जा चुके हैं। ईसा मसीह को शुक्रवार को क्रॉस पर लटका दिया गया था, जिसे गुड फ्राइडे के रूप में याद करते हैं। इसलिए ईस्टर हमेशा रविवार को ही पड़ता है। कुछ देशों में सोमवार को सरकारी छुट्टी होती है क्योंकि रविवार को तो वैसे भी छुट्टी रहती ही है। लेकिन उत्सव रविवार को ही मनाया जाता है।
लंबे और कठिन 40 दिनों के उपवास के बात ईस्टर आता है। इस उपवास को लेन्ट कहते हैं। लेन्ट के दौरान रूढ़िवादी ईसाई मांसाहार और शराब से परहेज करते हैं, एक समय ही भोजन करते हैं, सात्विक जीवन बिताते हैं और प्रार्थना करते हैं। लेन्ट शनिवार को ख़त्म होता है और रविवार को सुबह की प्रार्थना के साथ ही उत्सव शुरू हो जाता है।
लेन्ट की शुरुआत ईसा मसीह के जीवन से ही हुई थी। उन्होंने अपनी आसन्न मृत्यु को भाँप लिया था, अपने शिष्यों के साथ 40 दिन तक प्रार्थना की थी, उपवास किया था। इसके बाद अंतिम भोजन यानी ‘द लास्ट सपर’ के बाद ही रोमन सिपाहियों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया था।
Easter Sunday church attack in Sri Lanja - Satya Hindi

लेन्ट

लेकिन लेन्ट इसके भी पहले से होता रहा है। बाइबल के ओल्ड टेस्टामेंट के मुताबिक़, अत्याचारी शासन से बचने के लिए मूसा यानी मोजेज़ अपने लोगों के साथ मिस्र से निकल दूसरी जगह चले गए थे। इसके बाद होने वाले उत्सव को ‘पासओवर’ का उत्सव कहते है। यह पासओवर का उत्सव उसी दिन होता है, जिस दिन लेन्ट ख़त्म होता है, यानी ईस्टर मनाया जाता है। पासओवर के उत्सव में एक भेड़ की बलि दी जाती है। इसे ईश्वर के प्रति समर्पण के रूप में याद किया जाता है।
ईसाई धर्म के मुताबिक़, जब ईसा मसीह को क्रॉस पर लटका दिया गया तो यह कहा गया कि परम पिता का यह बेटा उस भेड़ के समान है। उसने अपनी क़ुर्बानी दी है ताकि वह आने वाली नस्लों के पापों का प्रायश्चित कर सके। परम पिता के बेटे ने अपना ख़ून बहा कर दूसरों के पापों को धोया है। ईस्टर का त्योहार इसलिए भी पवित्र है कि वह दूसरे के पापों को धोने के लिए ईसा मसीह के अपना ख़ून बहाने का प्रतीक है।

ईस्टर अंडे

इसके साथ ही ईस्टर का त्योहार पुनर्जीवन से जुड़ा हुआ है। इसलिए ईस्टर के मौके पर ख़ास ईस्टर एग यानी ईस्टर अंडों का महत्व है। इसकी शुरुआत मेसोपोटामिया यानी आज के इराक़ से हुई। अंडों को लाल रंग से रंगना ईसा के ख़ून बहाने का प्रतीक है और अंडे के शेल खाली पड़ी क़ब्र के प्रतीक हैं। इसी तरह जिस तरह अंडे से नए जीवन की शुरुआत होती है, यह माना जाता है कि ईस्टर नए जीवन का प्रतीक है।  
Easter Sunday church attack in Sri Lanja - Satya Hindi
इससे यह तो साफ़ है कि यह हमला बिल्कुल उत्सव के माहौल में ज़हर घोलने के लिए किया गया था।
श्रीलंका में ईसाइयों की तादाद 7.4 प्रतिशत है, जिनमें 6.1 प्रतिशत रोमन कैथोलिक और 1.3 प्रतिशत प्रोटेस्टेंट हैं। इतनी छोटी आबादी को निशाने पर क्यों लिया गया? उनसे किसी को क्या अदावत हो सकती है, यह सवाल लाज़िमी है। वे न तो तमिल टाइगर्स के आंदोलन के साथ थे और न ही उसके ख़िलाफ़। उन्हें देशी विदेशी ताक़तों से भी कोई मतलब नहीं रहा है। सेना, सरकार और दूसरे निकायों में भी उनकी कोई धमाकेदार मौजूदगी नहीं रही है कि कोई तबक़ा उनसे ईर्ष्या करे। फिर ईस्टर को रक्तरंजित क्यों किया गया? यह ऐसा सवाल है, जिसका उत्तर कम से कम इस समय किसी के पास नहीं है।
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क़मर वहीद नक़वी
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