दुनिया भर में पिछले कुछ सालों में प्रवासियों के ख़िलाफ़ माहौल बना है। प्रवासियों के लिए स्वर्ग माने जाने वाला अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रहा है। इस माहौल का फ़ायदा उठा डोनाल्ड ट्रंप अप्रत्याशित रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए। ट्रंप ने प्रवासियों की अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने का वादा किया था। अब इसी दीवार के लिए उन्होंने इमरजेंसी लगा दी है। 1976 में बने नेशनल इमरजेंसी एक्ट नामक क़ानून के तहत यह 59वीं बार है जब अमेरिका में किसी राष्ट्रपति ने इमरजेंसी लगाई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने दीवार खड़ी करने के वास्ते सरकारी खजाने के इस्तेमाल के लिए इमरजेंसी लगाई है। सीनेट से उन्हे मंज़ूरी नहीं मिल रही थी और कांग्रेस में उनके विरोधी डेमोक्रेट्स उनके प्रस्ताव की धज्जियाँ उड़ा रहे थे।
1976 में वॉटरगेट कांड के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष अधिकारों को सीमित करने के लिए नेशनल इमरजेंसी एक्ट बना था। हालाँकि इसमें नेशनल इमरजेंसी क्या है, यह परिभाषित नहीं है। लेकिन इसके अनुसार, व्हाइट हाउस को क़ानूनी वैधता परिभाषित करना ज़रूरी है और घोषणा के छह महीने के भीतर अमेरिकी कांग्रेस में इसकी समीक्षा ज़रूरी है।
अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर लगी स्टील की बाड़
2016 के राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान ट्रम्प ने अभेद्य दीवार बनाने का एलान किया था। तब ट्रंप ने कहा था कि इस दीवार को बनाने का पैसा मैक्सिको से वसूला जाएगा।
प्रेसीडेंट बनने के बाद ट्रम्प ने पाया कि न सिर्फ मैक्सिको से इसकी क़ीमत वसूलना नामुमकिन है, बल्कि अमेरिकी सीनेट और कांग्रेस से पैसे की मंज़ूरी मिलनी भी मुश्किल होगी। काफ़ी ज़द्दोजहद के बाद जब मंज़ूरी नहीं मिली तो अब ट्रंप ने ब्रह्मास्त्र चला है।
क़ानूनन अमरीकी कांग्रेस में डेमोक्रेटिक पार्टी की स्पीकर नैंसी पेलोसी के पास यह अधिकार है कि वह रिपब्लिकन बाहुल्य सीनेट को आदेश दें कि वह इस घोषणा पर मतदान के ज़रिए अपना फ़ैसला सुनाए। अगर सीनेट में ट्रम्प इस प्रस्ताव पर हार गए तो इसकी राजनैतिक क़ीमत खुद उनके लिए और उनकी रिपब्लिकन पार्टी के लिए 2020 के प्रेसिडेंशियल चुनाव में बेहद मंहगी होगी। इसी 30 जनवरी से दो फरवरी के बीच सीएनएन की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार राष्ट्रपति ट्रम्प के इमरजेंसी के प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 31% लोग थे, जबकि 66% लोग इसके ख़िलाफ़ थे।
प्रस्तावित दीवार की प्रोटो टाइप
कई रिपब्लिकन सांसद इस मुद्दे पर ट्रम्प की खुलकर आलोचना करते सामने आ चुके हैं। बीते साल के अंत में क़रीब आठ हज़ार सरकारी कर्मचारियों के वेतन भत्ते रोक देने के फ़ैसले के राजनैतिक नुक़सान से परेशान रिपबलिकन नेतागण इस नये अलोकप्रिय क़दम को हज़म करने की स्थिति में नहीं हैं। ट्रम्प के लगातार अलोकप्रिय होते जाने का भान भी उन्हे है।
मायने से रिपब्लिकन सेनेटर सूसन कॉलिन्स ने इसे 'राष्ट्रपति की ग़लती' बताया। वाशिंगटन पोस्ट के संपादक मंडल ने कहा 'इस घोषणा के ज़रिए ट्रम्प अपने कार्यकाल के साम्राज्यवादी चरण में दाख़िल हो गये हैं'! #FakeTrumpEmergency, हैशटैग शुक्रवार को अमेरिका में ट्विटर के पाँच शीर्ष ट्रेंडिंग में से एक बना रहा।
26 अमरीकी राज्यों में सदस्यता वाली डेमोक्रेटिक अटार्नी एसोशिएशन ने इस फ़ैसले को क़ानूनी चुनौती देने का ऐलान कर दिया है। ट्रम्प इसके पहले हवाई से वर्जीनिया तक की अदालतों में अपनी दूसरी आपातकालिक घोषणा पर बड़ी मात खा चुके हैं, जिसमें उन्होने मुसलमानों की यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था।
ख़ैर, सत्ता में आने के चंद महीनों बाद ही ट्रंप मैक्सिको की सीमा पर दो सौ मील लंबी दीवार खड़ी करने की तैयारी में जुट गए थे। ओटे मेसा बार्डर पर, जहाँ काफ़ी गतिविधि बनी रहती है, उनके कई प्रोटो टाइप तैयार हो रहे थे। स्थानीय नागरिकों को सितंबर 2017 में एक दिन करीब तीस फ़ीट ऊँचाई वाले कंक्रीट ढाँचे कई जगह आसमान की ओर मुँह उठाए खड़े मिले। करीब आठ तरह के प्रोटोटाइप अधिकारियों की समीक्षा के लिये तैयार थे। वैसे मैक्सिको की अमरीका से लगी सीमा 654 मील की है, जिस पर काँटेदार स्टील की फेंसिंग पहले से मौजूद है और बार्डर की देखरेख करने वाली पुलिस पेट्रोलिंग करती रहती है। इसमें से दो सौ मील को ट्रम्प वह हिस्सा मानते हैं जहां दीवार बनाने की ज़रूरत है, क्योंकि यहीं से ज़्यादातर अनधिकृत लोग घुस आते हैं।
पहले दो सौ मील लंबी इस दीवार का बजट करीब साढ़े 5.7 बिलियन डॉलर आँका गया था, जिसे अब करीब आठ बिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया गया है। इस मद में कुल 1.375 बिलियन डॉलर अमेरिकी कांग्रेस ने कुछ शर्तों के साथ सिर्फ 55 मील लंबी दीवार के लिये स्वीकृत की थी, तभी से ट्रंप और कांग्रेस के बीच खींचतान चल रही है।अब इमरजेंसी लगाने के बाद ट्रम्प रक्षा विभाग के निर्माण बजट को दीवार बनाने में खर्च करना चाहते हैं।
फ़िलहाल, स्पीकर नैन्सी पेलोसी और सीनेट के माइनारिटी लीडर चक शूमर के साझा बयान और अदालती मुक़दमों की वजह से उनकी राह आसान नहीं दिखती है।
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