कोरोना दुनिया भर में फिर तेज़ी से फैल रहा है। पहले से कहीं ज़्यादा। इसलिए पहले से कहीं ज़्यादा सख़्ती है। दिल्ली में ही मास्क नहीं पहनने पर पहले 500 रुपये जुर्माना था, अब बढ़ाकर 2000 रुपये कर दिया गया है। सीमाएँ सील की जा रही हैं। दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में स्कूल-कॉलेज तो बंद किए ही गए हैं, नियम यह किया गया है कि एक परिवार से एक दिन में एक ही आदमी बाहर निकल सकता है उसके लिए भी वाजिब कारण बताना होगा। यह दुनिया भर में सबसे सख़्त लॉकडाउन में से एक है। न्यूयॉर्क में स्कूल-कॉलेज बंद किए जा रहे हैं। अमेरिका में हर रोज़ क़रीब पौने दो लाख केस आ रहे हैं। कई यूरोपीय देशों में तो फिर से लॉकडाउन लगाया ही गया है। जर्मनी में ऐसा सख़्त क़ानून बनाया गया है कि उसके विरोध में लोग सड़कों पर आ गये हैं और हंगामा मचा हुआ है।
कई देशों में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आ गई है और दुनिया भर में संक्रमण कितनी तेज़ी से फैल रही है इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि हर रोज़ 6 लाख से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले आ रहे हैं। हालाँकि, दूसरी लहर सभी देशों में नहीं आई है, लेकिन जहाँ-जहाँ भी संक्रमण तेज़ी से फैला है वहाँ-वहाँ पहले से काफ़ी तेज़ी से और काफ़ी ख़तरनाक भी है। इसकी मिसाल अमेरिका और यूरोप ही हैं। और यह कितना ख़तरनाक और डरावना हो सकता है इसकी मिसाल ऑस्ट्रेलिया में उठाए गए सख़्त क़दमों से भी मिल सकती है।
दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में गुरुवार को लॉकडाउन की घोषणा की गई है। यह कितना सख़्त लॉकडाउन है, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि बाहर कसरत करना और कुत्तों को टहलाना भी प्रतिबंधित है। छह दिनों के लिए एक परिवार से सिर्फ़ एक व्यक्ति को ही प्रतिदिन बाहर जाने की अनुमति होगी और इसके लिए भी अधिकारियों को वाजिब कारण बताना होगा। स्कूल, यूनिवर्सिटी, कैफ़े, रेस्तराँ बंद रहेंगे। इसके अलावा शादियाँ भी प्रतिबंधित की गई हैं। मास्क को ज़रूरी किया गया है। राज्य के प्रीमियर स्टीवन मार्शल ने इन क़दमों के उठाए जाने के बारे में कहा, 'हम सख़्ती चाहते हैं, पहले से पहले करना चाहते हैं, लेकिन जितनी जल्दी हो सके इससे बाहर निकलना चाहते हैं।'
ऑस्ट्रेलिया में साल के शुरुआती महीनों में कोरोना काफ़ी तेज़ी से फैला था और कम्युनिटी ट्रांसमिशन को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया था। लेकिन स्थिति नियंत्रण में होने पर अनलॉक कर दिया गया था।
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यूरोपीय देश जर्मनी में भी काफ़ी सख़्ती की गई है। लेकिन यह सख़्ती इतनी ज़्यादा है कि लोगों को यह रास नहीं आ रही है। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल कोरोना के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने के पक्षधर रही हैं और कोरोना नियंत्रण के लिए उनकी तारीफ़ भी होती रही है। लेकिन इस बार पाबंदियों को सख़्ती से लागू करने की वजह से लोग भड़क गए और प्रदर्शन करने सड़कों पर उतर गए।
जर्मनी में पहले से मौजूद संक्रामक रोग सुरक्षा क़ानून में फेरबदल किया जा रहा है। नए उपायों के तहत सरकार सामाजिक संपर्क पर पाबंदी लगाने, मास्क पहनने के नियम बनाने, सार्वजनिक रूप से शराब पीने, दुकानों को बंद करने और खेल आयोजनों पर रोक लगाने में सक्षम होगी। इसी के ख़िलाफ़ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।
निन्नयाड नाम के ट्विटर यूज़र ने लिखा है, 'जर्मनी की राजधानी बर्लिन में आज बड़ा प्रदर्शन हुआ क्योंकि मर्केल सरकार कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए एक ऐसा क़ानून ला रही है जो नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन करता है।' उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा है कि आम लोग सिर्फ़ लोकतंत्र चाहते हैं।'
Ordinary people family’s just want democracy all ages.
— ninnyd 🇬🇧❤️🇺🇸 KBF~Waiting4TheRevelotion (@ninnyd101) November 18, 2020
Germany protests today. pic.twitter.com/06oKIRlb4g
प्रदर्शन में हज़ारों लोग शामिल हुए। डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट में बर्लिन पुलिस के हवाले से कहा गया है कि क़रीब 190 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया। हिंसा में 9 पुलिस अधिकारी घालय हुए।
यूरोप में भी संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है। फ़्रांस, रूस, स्पेन, इंग्लैंड, इटली, जर्मनी, पोलैंड और यूक्रेन जैसे देशों में हर रोज़ 10 हज़ार से लेकर 35 हज़ार संक्रमण के मामले आ रहे हैं। पूरे यूरोप में हर रोज़ दो लाख से ज़्यादा संक्रमण के मामले आ रहे हैं। कई देशों में लॉकडाउन लगाया गया है और स्कूल-कॉलेज से लेकर बार-रेस्तराँ बंद किए जा रहे हैं।
न्यूयॉर्क में स्कूल बंद
अमेरिका में तो फ़िलहाल इतनी ख़राब स्थिति है कि दुनिया के किसी भी देश में ऐसी स्थिति नहीं है। एक दिन पहले ही 1.75 लाख संक्रमण के मामले आए हैं। न्यूयॉर्क शहर में स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि पब्लिक स्कूलों को गुरुवार से फिर से बंद कर दिया गया है। अमेरिका ऐसा पहला देश है जहाँ हर रोज़ कोरोना संक्रमण के मामले 1 लाख से ज़्यादा आ रहे हैं। अमेरिका पहला ऐसा देश है जहाँ एक करोड़ से ज़्यादा संक्रमण के मामले आए। अमेरिका ऐसा पहला देश है जहाँ ढाई लाख से ज़्यादा मौतें हुई हैं।
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