यदि आप कोरोना मरीजों के इलाज के लिए मलेरिया वाली दवा क्लोरोक्वीन को सही मानते हैं तो एक नये शोध से आपको तगड़ा झटका लगेगा। कोरोना मरीजों के लिए क्लोरोक्वीन दिल के लिए घातक है। यह छोटे स्तर पर किए गए नये शोध में दावा किया गया है। क्लोरोक्वीन का ज़्यादा डोज देने से कोरोना के मरीजों के दिल की धड़कन अनियमित और तेज़ होने की रिपोर्ट आई और कई मामलों में यह जानलेवा भी साबित हुई है। क्लोरोक्वीन वही दवा है जिसकी माँग दुनिया भर के देश भारत से कर रहे हैं और इसी दवा के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को धमकी तक दे दी थी।
वैसे, इस शोध के आने से पहले ही अमेरिकी डॉक्टर, वैज्ञानिक और यहाँ तक कि अमेरिका के टॉप स्वास्थ्य अधिकारी क्लोरोक्वीन दवा का विरोध कर रहे हैं। इसके बावजूद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दवाओं का स्टॉक करने में जुटे हुए हैं और कोरोना मरीजों के इलाज में इस दवा का धड़ल्ले से इस्तेमाल करने को कह रहे हैं। वह भी तब जब किसी प्रयोगशाला में यह प्रमाणित नहीं हुआ है कि कोरोना का इलाज इस दवा से संभव है।
पिछले हफ़्ते ही जब ट्रंप प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने आए थे तो उन्होंने कहा था कि 'मैं डॉक्टर नहीं हूँ' और इसके बावजूद उन्होंने कहा था, 'अगर यह (दवा) काम करती है, तो यह शर्म की बात होगी कि हमने इसे जल्दी इस्तेमाल नहीं किया'।
भारत से क्लोरोक्वीन दवा आपूर्ति को लेकर जब ट्रंप की धमकी दिए जाने का मामला आया था तब ऐसी रिपोर्ट आई थी कि कम से कम 30 देशों ने क्लोरोक्वीन दवा सप्लाई करने के लिए भारत से आग्रह किया था। कई देशों में भारत से इस दवा की सप्लाई भी की गई। इसमें ब्राज़ील भी शामिल है।
अब इसी ब्राज़ील में क्लोरोक्वीन दवा के असर को लेकर ताज़ा शोध किया गया है। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, इस अध्ययन में उन 81 मरीजों को शामिल किया गया जो हॉस्पिटल में भर्ती थे। मनौस शहर में हुए इस शोध को ब्राज़ील के अमेजॉन्स स्टेट ने कराया। शोध में शामिल क़रीब आधे मरीजों को 450 मिलीग्राम क्लोरोक्वीन दवा हर रोज़ दो बार पाँच दिनों तक दी गई। बाक़ी के मरीजों को 600 मिलीग्राम दवा 10 दिनों तक देना तय किया गया।
तीन दिन के अंदर ही शोधकर्ताओं ने देखा कि अधिक डोज लेने वाले मरीजों में दिल की धड़कन अनियमित और असामान्य हो गई। छठे दिन के इलाज तक ऐसे 11 मरीजों की मौत हो गई। इसके बाद तुरंत ही ज़्यादा डोज देने वाले इस शोध को बंद कर दिया गया।
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, टोरंटो विश्वविद्यालय में क्लिनिकल फार्माकोलॉजी के विभागाध्यक्ष और एक हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. डेविड जुर्लिंक ने कहा, 'मेरे लिए इस अध्ययन से एक उपयोगी जानकारी मिलती है, जो यह है कि क्लोरोक्वीन डोज बढ़ाने से ईसीजी में इतनी असामान्यता आ जाती है कि इससे एकाएक मौत भी हो सकती है।'
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि ट्रायल के तौर पर जिन मरीजों को कम डोज में दवा दी गई वे इतनी कम संख्या में थे कि कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों पर क्लोरोक्वीन के असर के बारे में किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सकता है।
हालाँकि इसके बावजूद संक्रमक रोगों के डॉक्टर और दवा सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि इस अध्ययन से वह सबूत पुख्ता हुआ है कि क्लोरोक्वीन या हाइड्रोऑक्साइक्लोरोक्वीन कुछ मरीजों को काफ़ी नुक़सान पहुँचाता है।
बता दें कि अभी तक यह कहीं भी प्रमाणित नहीं हुआ है कि हाइड्रोऑक्साइक्लोरोक्वीन कोरोना के इलाज में काम करता है। हालाँकि चीन में कुछ डॉक्टरों ने कहा था कि अपेक्षाकृत कोरोना के सामान्य मरीज को जल्दी ठीक होने में इस दवा से सहायता मिली थी पर उनके इस दावे को अभी तक क्लिनिकल ट्रायल में पुष्ट नहीं किया जा सका है। अंदेशा तो यही जताया जाता रहा है कि मलेरिया वाली इस दवा का मरीजों पर कहीं कोई ग़लत प्रभाव न पड़े। और अब ब्राज़ील में छोटे स्तर पर ही शोध में क्लोरोक्वीन दवा के ग़लत असर पर पड़ने की रिपोर्ट आई है।
उम्मीद है डोनाल्ड ट्रंप जैसे दुनिया भर के नेता क्लोरोक्वीन दवा के प्रति अपनी सनक को त्यागेंगे और यह डॉक्टरों और विशेषज्ञों पर छोड़ देंगे कि वे कोरोना मरीज का इलाज कैसे करते हैं। साथ ही उम्मीद है कि नेता इस दवा की आड़ में कोरोना से लड़ने की तैयारी में अपनी कमज़ोरी को नहीं छुपाएँगे और वे एक नेता के तौर पर वह काम करेंगे जो उन्हें करना चाहिए।
अपनी राय बतायें