चीन ने पहली बार पाक-अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान के हिस्से के रूप नहीं दिखाया है। सरकार-नियंत्रित चाइना ग्लबोल टेलिविज़न नेटवर्क (सीजीटीएन) ने मंगलवार को अपनी एक ख़बर में ऊपर लगे नक़्शे को दिखाया। इसमें पूरे पीओके को पाकिस्तान के नक़्शे से बाहर दिखाया गया है। यह हिस्सा इस नक़्शे में सफेद रंग में दिखाया गया है। यह काफ़ी महत्वपूर्ण इसलिए है कि सीजीटीएन सरकारी मीडिया है, पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में है और उसके ख़र्च से चलता है। इसे चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विचारों को आगे बढ़ाने वाले उपकरण के रूप में देखा जाता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह ख़बर चीन की सरकारी लाइन है।
भारत के आधिकारिक नक़्शे में पूरे कश्मीर को दिखाया जाता है। इसमें पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बलतिस्तान, पाकिस्तान ने चीन को जो हिस्सा सौंप दिया वह हिस्सा और चीन के नियंत्रण वाले अक्साई चिन को भारत में ही दिखाया जाता है। इसे ऊपर लगे नक़्शे से समझा जा सकता है।
पीओके को पाकिस्तान के नक़्शे से बाहर दिखाने वाले इस नक़्शे के ज़रिए बीजिंग ने जहाँ इस्लामाबाद को अपने कड़े रुख का संकेत दे दिया है, वहीं उसने दिल्ली को भी ख़ुश करने की कोशिश की है। वह सीपीईसी पर भारत को मनाने की कोशिश कर रहा है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पाक-अधिकृत कश्मीर होते हुए बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाएगा। यह चीन के शिनच्यांग प्रांत को सीधे ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा। चीन इस बंदरगाह का इस्तेमाल कर अपने उत्पाद केंद्रीय एशिया के अलावा यूरोप और अफ़्रीका के देशों तक भेज सकता है।
इसके अलावा यह रक्षा के लिहाज़ से बहुत अहम है क्योंकि बिल्कुल भारत के पास होगा। युद्ध की स्थिति में ग्वादर पर अपना विमानवाहक जहाज़ लगा कर वह भारत के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। चीन यहाँ से पूरे हिन्द महासागर पर भी नज़र रख सकेगा।
60 अरब डॉलर
चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है यह आर्थिक गलियारा। इस पर चीन लगभग 60 अरब डॉलर ख़र्च करेगा। लेकिन भारत इस गलियारे का ज़बरदस्त विरोध करता आया है। दिल्ली का कहना है कि यह गलियारा इसकी सार्वभौमिकता को नकारता है और इसकी एकता-अखंडता पर सवालिया निशान लगाता है। उसका तर्क है कि यह रास्ता उस इलाक़े से होकर गुजरता है जो इसका हिस्सा है और पाकिस्तान ने उस पर जबरन कब्जा कर रखा है।चीन पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानता है तो पाकिस्तान का भी नहीं। वह इसे विवादित मानता आया है। इसी कारण वह जम्मू-कश्मीर के लोगों को 'स्टेपल' किया हुआ वीज़ा देता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बीजिंग इसका जवाब नहीं दे पाता है कि वह किसी विवादित इलाक़े में अपना निर्माण कार्य कैसे कर सकता है, कैसे बड़ा निवेश कर सकता है। वह भारत को मनाने के लिए कई बार कह चुका है गलियारा राजनीतिक या भौगोलिक सीमा नहीं बताता है। भारत चाहे तो इसका मुफ़्त इस्तेमाल कर ले।
पाक से ख़फ़ा चीन
सीजीटीएन की इस ख़बर को हाल ही में पाकिस्तान के कराची स्थित चीनी कॉसुलेट पर हुए हमले से उपजे गुस्से के रूप में देखा जा सकता है। बीते हफ़्ते हुए इस आत्मघाती हमले में चार लोग मारे गए थे, हालाँकि उनमें चीन का कोई नहीं था। अलगाववादी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने इसकी ज़िम्मेदारी ली थी।निशाने पर चीन
दरअसल इसके पहले भी आर्थिक गलियारे के लिए काम कर रहे चीनी कर्मचारियों पर हमले हुए थे, कुछ लोग मारे भी गए थे। एक बार चीनी कर्मचारियों को ले जा रही बस का अपहरण कर लिया गया था।पीओके में चीनी सैनिक
चीन ने इससे निपटने के लिए पीओके में अपने कुछ सैनिकों को तैनात कर रखा है, जिस पर भारत ने ज़बरदस्त विरोध जताया था। चीनी टुकड़ी की मौजूदगी के बावजूद चीनी नागरिक निशाने पर हैं। उन्हें निशाने पर लेने वाले सिर्फ बलूच अलगाववादी ही नहीं है, बलतिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के लोग भी हैं। गिलगिट के लोग भी चीन को नापसंद करते है। चीन पाकिस्तान को संदेश देना चाहता है कि वह इन लोगों को क़ाबू में रखे।चीन पाकिस्तान ही नही, भारत को भी संदेश देना चाहता है। वह भारत की नाराज़गी को कम करना चाहता है। वह चाहता है कि भारत भले बीआरआई में शामिल न हो, सीपीईसी का इस्तेमाल न करे, कम से कम उसका विरोध तो न करे। भारत के विरोध से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बीजिंग की फ़जीहत हो रही है।
इसके पहले ही बीआरआई से कई देश ख़फ़ा हैं और इसे चीनी विस्तारवाद के रूप में देख रहे हैं। भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रुख थोड़ा नरम कर ले तो बीजिंग राहत की सांस लेगा। बहरहाल, इसकी पूरी संभावना है कि पाकिस्तान जल्द ही अपना कोई आला अफ़सर चीन भेज सफ़ाई दे और उसे आश्वस्त करे कि स्थिति उसके नियंत्रण में है और वह इन ताक़तों पर क़ाबू कर लेगा।
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