चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की आड़ में बीजिंग इस्लामाबाद को सैन्य सहायता मुहैया करा रहा है। वह उसके लिए लड़ाकू जेट बना रहा है, अंतरिक्ष युद्ध के उपकरण दे रहा है, ख़फ़िया सैटेलाइट सेवा दे रहा है और दूसरे तरह के सैनिक साजो सामान से उसे लैस कर रहा है। ये सारी चीजें पाकिस्तान की ज़मीन पर हो रही हैं और सीपीईसी योजना के तहत ही हो रही हैं।
अमरीकी अख़बार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की ख़बर पर यक़ीन किया जाए तो चीन पाकिस्तान में उसके लिए लड़ाकू जैट तैयार कर रहा है। ख़फ़िया सेवा में काम आने वाली चीनी सैटेलाइट सेवा बीदू की सुविधाएं भी पाकिस्तान को मिल रही हैं। इसके तहत नौसेना के जहाज़, सेना की गतिविधियाँ और दूसरी चीजों की सटीक निगरानी की जा सकती है। चीन ने यह सुविधा सिर्फ़ पाकिस्तान को दी है। पहले उसने पाकिस्तान को जीपीएस सिस्टम दिया था, लेकिन उसे अमरीकी ख़फ़िया एजेंसियाँ ट्रैक कर ले रही थीं। उसके बाद उसे बीदू के तहत लाया गया है।
बीजिंग ने पाकिस्तान को आधुनिक पारंपरिक हथियार और दूसरे साजो सामान भी देना शुरू कर दिया है। लेकिन यह सब कुछ आर्थिक गलियारे के तहत हो रहा है। बताया यह जाता है कि गलियारे पर ये पैसे ख़र्च हो रहे हैं, पर उन पैसे से ही हथियार भी दिए जा रहे हैं।
चीनी लड़ाकू जहाज़ मिलने से पाकिस्ता वायु सेना की ताक़त बढ़ जाएगी, भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है।
आर्थिक गलियारे की योजना के तहत ही अरब सागर के तट पर बसे ग्वादर में बंदरगाह बनाया जा रहा है। युद्ध या तनाव की स्थिति में इसका भी सैनिक इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां चीनी विमान वाहक जहाज़ की तैनाती भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकती है।
चीन अब तक कहता आया है कि आर्थिक गलियारा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए है, और इससे सबको फ़ायदा होगा। अब उस पर आरोप लगना तय है कि वह इसकी आड़ में इलाक़े का सामरिक समीकरण बिगाड़ कर अपनी गोटियाँ फिट कर रहा है।
चीन कहता आया है कि सीपीईसी पूरी तरह से आर्थिक परियोजना है, जिसका मक़सद व्यापार के लिए नया रास्ता तैयार करना है और बंदरगाह तक अपना माल पहुँचाना है। इस पूरी परियोजना पर लगभग 62 अरब डॉलर ख़र्च होंगे। भारत शुरू से ही आर्थिक गलियारे का विरोध करता आया है। इसका कहना है कि यह देश की संप्रभुता के ख़िलाफ़ है क्योंकि गलियारा उन इलाक़ों से गुजरता है जो इसका है, लेकिन पाकिस्तान ने ग़लत तरीके से कब्जा कर रखा है। इस इलाक़े को चीन भी विवादित क्षेत्र ही मानता है।
आर्थिक गलियारा परियोजना में चीन 62 अरब डॉलर निवेश कर रहा है।
अमरीका ने चीन को दिए जाने वाली मदद में यह कह कर कटौती कर दी थी कि वह आतंकवाद से लड़ाई को लेकर गंभीर नही है और पूरी तरह से मदद नहीं कर रहा है। समझा जाता है कि इसके बाद ही चीन ने पाकिस्तान को सैनिक सहायता की पेशकश की है। सीपीईसी का रास्ता इसलिए चुना गया कि उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाएगा। इसके अलावा आर्थिक गलियारे पर पाकिस्तान के जो लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगे थे या अधिक ख़र्च की शिकायत करने लगे थे, उनका मुँह बंद हो जाएगा।
यदि चीन वाक़ई पाकिस्तान को सैनिक साजो सामान सीपीईसी के बहाने दे रहा है तो दूसरे देश भी इसे शक की निगाहों से देखेंगे और इसकी 'बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' परियोजना का ज़बरदस्त विरोध होना तय है।
चीन के इस क़दम से दक्षिण पूर्व एशिया की रणनीति और क्षेत्रीय राजनीति पर असर पड़ना लाज़िमी है। पाकिस्तान ने अब तक के साथी रहे अमरीका को झटक कर ‘सुख-दुख के दोस्त’ चीन पर ज़्यादा भरोसा करने का फ़ैसला कर लिया है। यह भी साफ़ हो गया है कि बीजिंग पाकिस्तान पर पहले से अधिक ध्यान दे रहा है और उसके ज़्यादा क़रीब आ रहा है। उसने यह संकेत भी दे दिया है कि भारत की उसे बहुत अधिक परवाह नहीं है। दिल्ली की यह आशंका सही साबित हो रही है कि चीन उसे घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है और आर्थिक गलियारा तो सिर्फ़ एक बहाना है।
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