चरमपंथी संगठन हमास और इज़रायल के बीच चल रहा संघर्ष रुक गया है। 11 दिनों तक चले इस संघर्ष में बड़ी संख्या में फ़लस्तीन के लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी तो इज़रायल के भी कुछ लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा।
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के ऑफ़िस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सिक्योरिटी कैबिनेट की गुरूवार देर रात हुई बैठक के बाद संघर्ष विराम का फ़ैसला लिया गया और वह इजिप्ट की ओर से लाए गए प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार करते हैं। इज़रायल के रक्षा विभाग के अफ़सरों ने दावा किया है कि उन्हें इस बार ‘बड़ी सफ़लता’ मिली है।
फ़लस्तीन का झंडा लहराया
इसके बाद हमास ने भी एक बयान जारी कर संघर्ष विराम की घोषणा की और कहा कि गुरूवार रात 2 बजे से इसे अमल में लाया जाएगा। इसके बाद ग़ज़ा पट्टी में हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए और संघर्ष विराम होने का जश्न मनाया। उन्होंने फ़लस्तीन का झंडा लहराया और विक्ट्री का निशान दिखाकर अपनी जीत होने की बात कही। इस बार के संघर्ष में फ़लस्तीन के 232 लोग मारे गए, इसमें 65 बच्चे भी शामिल थे।
न्यूज़ एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक़, हमास के एक अफ़सर ने कहा कि संघर्ष विराम की घोषणा का मतलब है कि नेतन्याहू की हार हुई है और फ़लस्तीन के लोगों की जीत हुई है।
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मार्च के दौरान हुई थी भिड़ंत
कई दशकों से चले आ रहे फ़लस्तीन-इज़रायल संघर्ष की शुरुआत हाल ही में तब हुई थी जब येरूशलम में अल-अक्सा मसजिद के पास इज़रायल के यहूदियों ने एक मार्च निकाला था। ये मार्च उस जीत का जश्न था जो इज़रायल को 1967 में मिली थी। 1967 में इज़रायल ने येरूशलम के कई हिस्सों पर अपना कब्जा जमा लिया था और वे हिस्से अभी तक इज़रायल के ही कब्जे में हैं। इस मार्च के दौरान फ़लस्तीनी चरमपंथियों और यहूदियों के बीच में झड़प हुईं और इसके बाद हिंसा भड़क उठी।
फ़लस्तीनी चरमपंथियों को जवाब देने के लिए इज़रायली सुरक्षाबलों ने रबर बुलेट का इस्तेमाल किया, जिसमें कई चरमपंथी घायल हुए और फिर स्थिति लगातार खराब होती चली गई। इसके बाद हमास की ओर से इज़रायल पर रॉकेट दागे गए तो इज़रायल ने भी ग़ज़ा पट्टी में जमकर बमबारी की।
फ़लस्तीन-इज़रायल के संघर्ष के बीच इसलामिक देशों ने इज़रायल को आड़े हाथों लिया था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट कर इस विवाद के लिए इज़रायल को दोषी ठहराया था। इसके अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने भी इज़रायल की आलोचना की थी।
अब जब संघर्ष विराम हो चुका है तो माना जाना चाहिए कि दोनों पक्ष इसे मानेंगे। क्योंकि इस संघर्ष की क़ीमत आम नागरिकों को चुकानी पड़ती है। साथ ही आर्थिक नुक़सान भी होता है।
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