इज़रायल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की कुर्सी चली गई है और उनकी जगह पर नफ्ताली बेनैट नए प्रधानमंत्री चुने गए हैं। नेतन्याहू बीते कई दिनों से सियासी मुश्किलों से घिरे हुए थे और उनकी कुर्सी जाना तय माना जा रहा था। नेतन्याहू इस पद पर 12 साल तक काबिज रहे। वह इस पद पर सबसे लंबे समय तक रहने वाले इज़रायल के पहले नेता हैं।
71 साल के नेतन्याहू अब विपक्ष में बैठेंगे हालांकि उन्होंने दम भरा है कि वह जल्द ही सत्ता में लौटेंगे। इज़रायल की संसद ने रविवार को नफ्ताली बेनैट को नई सरकार बनाने की इजाजत दे दी है। इस दौरान संसद में नेतन्याहू के समर्थकों ने बेनैट के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की और उन्हें झूठा बताया।
नेतन्याहू के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के कुछ मामलों में जांच चल रही है हालांकि उनका कहना है कि उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं किया है।
49 साल के बेनैट देश के पूर्व रक्षा मंत्री रहे हैं और वह काफी अमीर राजनेता हैं। इज़रायल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि इस नए गठबंधन में 21 फ़ीसदी अरब लोग भी हैं, जो इस देश में अल्पसंख्यक हैं।
नेतन्याहू के ख़िलाफ़ नफ्ताली बेनैट के नेतृत्व में बने गठबंधन में बेनैट की यामीना पार्टी के अलावा यायर लापिडो की यश अतिदी पार्टी भी है। इनके गठबंधन में कुछ और दल भी शामिल हैं। इस गठबंधन को कमज़ोर बहुमत मिला है और इसने 60-59 के आंकड़े से विश्वास मत जीता है। इज़रायल की संसद में 120 सदस्य हैं।
फ़लस्तीनियों का मसला
देखना होगा कि नई सरकार का फ़लस्तीनियों के लिए क्या रूख़ रहता है। हालांकि फ़लस्तीनियों का मानना है कि बेनैट भी नेतन्याहू की तरह अपने दक्षिणपंथी एजेंडे पर काम करेंगे। बेनैट को कट्टर राष्ट्रवादी माना जाता है जबकि लापिडो मध्यमार्गी नेता हैं। ऐसे में देखना होगा कि दोनों मिलकर किस तरह और कब तक सरकार चला पाते हैं।
गठबंधन के लिए जो समझौता हुआ है, उसके तहत बेनैट 2023 तक इस पद पर बने रहेंगे और उसके बाद यायर लापिडो इस पद को संभालेंगे। अगर यह गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाता तो इज़रायल एक बार फिर राजनीतिक मुसीबत का शिकार होता क्योंकि वहां चुनाव कराने पड़ते। बीते दो साल में वहां चार बार चुनाव कराए जा चुके हैं।
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