आज से ठीक 20 साल पहले 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित ट्विन टॉवर्स और रक्षा विभाग के मुख्यालय पेन्टागन पर हुए आतंकवादी हमलों ने पूरी दुनिया पर गहरा और दूरगामी असर छोड़ा।
इस हमले के बाद इसलामी आतंकवाद का चेहरा तो सामने आया ही, 'पैक्स अमेरिकाना' यानी देश के बाहर निकल कर दूसरी जगहों पर अमेरिका के छाने और हस्तक्षेप करने की नीति भी एक बार फिर खुल कर सामने आ गई।
इसलिए यह याद किया जाना ज़रूरी है कि उस दिन आखिर हुआ क्या था? क्या उस हमले का नतीजा अमेरिका तक ही सीमित रहा या वह दूर एशिया तक पहुँचा और उसकी चपेट में भारत और पाकिस्तान जैसे देश भी आए।
क्या हुआ था?
आतंकवादी संगठन अल क़ायदा के लोगों ने दो अमेरिकी यात्री विमानों का अपहरण कर उन्हें न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड टॉवर की दो गगनचुंबी इमारतों से टकरा दिया था। इसमें हज़ारों लोगों की मौत हुई थी।
पहला विमान स्थानीय समय के मुताबिक आठ बजकर 46 मिनट में उत्तरी टॉवर से टकराया, जबकि दूसरा विमान नौ बजकर तीन मिनट पर दक्षिणी टॉवर से टकराया।
इससे दोनों इमारतों में आग लग गई। ऊपर की मंज़िलों में लोग फंस गए थे और पूरा शहर धुएं से भर गया था। दो घंटों के अंदर 110 मंज़िली इमारत पूरी तरह से ढह गई और मलबे में तब्दील हो गई।
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चार विमानों से हमले
आतंकवादियों ने एक तीसरे विमान का भी अपहरण किया जो नौ बज कर 37 मिनट पर वॉशिंगटन डीसी से थोड़ी दूर स्थित अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन से टकराया।
अल क़ायदा आतंकवादियों ने एक चौथे विमान का अपहरण किया, जिससे वे वॉशिंगटन डीसी की कैपिटल बिल्डिंग पर हमला करने वाले थे, पर वह विमान दस बज कर तीन मिनट में पेन्सेल्विनिया के मैदानों में क्रैश कर गया।
कितने मरे?
अमेरिका का कहना है कि इन हमलों में कुल 2,977 लोगों की मौत हुई थी, इनमें से अधिकांश लोगों की मौत न्यूयॉर्क में हुई थी। इसके अलावा 19 आतंकवादी भी मारे गए थे।
इन चार विमानों में कुल 246 यात्री और चालक दल के सदस्य सवार थे, सब मारे गए।
वर्ल्ड ट्रेड टॉवर की दोनों इमारतों के गिरने से 2,606 लोगों की मौत हुई। इसके अलावा पेंटागन में हुए हमले में 125 लोगों की मौत हुई थी।
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वर्ल्ड ट्रेड टॉवर से जब पहला विमान टकराया था इमारत में करीब 17,400 लोग मौजूद थे, जो अलग-अलग कंपनियों में काम कर रहे थे।
उत्तरी टॉवर में जहाँ विमान टकराया था, उससे ऊपर मौजूद कोई शख़्स जीवित नहीं बचा। दक्षिणी टॉवर में जहां विमान टकराया, उससे ऊपर की मंज़िलों में केवल 18 लोग जीवित बच गए। मारे गए लोगों में 77 देशों के नागरिक शामिल थे। इसके अलावा न्यूयॉर्क सिटी में मलबे की चपेट में आने से भी 441 लोगों की मौत हुई थी।
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किसने किया था यह काम?
आतंकवादी गुट अल क़ायदा ने इन हमलों को अंजाम दिया था।
लेकिन अल क़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन ने इसके लिए अमेरिका और मित्र देशों को ही ज़िम्मेदार ठहराया था।
अल क़ायदा के 19 हमलावरों ने इस हादसे को अंजाम दिया था। तीन समूह में पांच-पांच हमलावर थे जबकि चौथी टीम में चार हमलावर शामिल थे।
इन 19 में 15 चरमपंथी सऊदी अरब से थे, जबकि दो संयुक्त अरब अमीरात के सदस्य थे। एक-एक चरमपंथी मिस्र और लेबनान से आत्मघाती दस्ते में शामिल था।
यह अमेरिका पर तो हमला था ही, वहाँ की राजनीति में एक तरह का भूचाल भी था। तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अल क़ायदा और ओसामा बिन लादेन को ख़त्म करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सेना भेज दी।
जिस समय अमेरिकी व नेटो सैनिक अफ़ग़ानिस्तान पहुँचे, वहां तालिबान का राज था। अल क़ायदा मजबूत था। आज 20 साल बाद भी काबुल पर तालिबान का राज है, ओसामा बिन लादेन मारा जा चुका है। अल क़ायदा कमजोर पड़ चुका है, पर इसलामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस ने अमेरिका के निकलते-निकलते उसके सैनिकों पर हमला कर और लगभग पौने दो सौ लोगों को मार कर जता दिया कि वह वहां है और मजबूत है।
सवाल है, 20 साल बाद अमेरिका को क्या हासिल हुआ?
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