वरिष्ठ नौकरशाह सीवी आनंद बोस को पश्चिम बंगाल का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल का पद जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद से खाली चल रहा था और इस साल जुलाई से मणिपुर के राज्यपाल गणेशन पश्चिम बंगाल का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे।
बोस के पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के बाद पहला सवाल यही मन में आता है कि क्या उनका भी राज्य की ममता बनर्जी सरकार के साथ वैसा ही टकराव होगा, जैसा पूर्व में केसरीनाथ त्रिपाठी और जगदीप धनखड़ का बंगाल का राज्यपाल रहते हुए सरकार के साथ हुआ था।
बोस ने अपनी नियुक्ति के बाद द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि राज्य सरकार के साथ उनके संबंध बेहतर रहेंगे। राज्यपाल रहते हुए जगदीप धनखड़ का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ हुए टकराव को लेकर सवाल पूछे जाने पर बोस ने अखबार से कहा कि वह केंद्र और राज्य सरकार के बीच मुद्दों को बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश करेंगे जिससे राज्य विकास के पथ पर आगे बढ़ सके।
बोस की नियुक्ति होने पर राज्य सरकार से उनके रिश्ते कैसे रहेंगे, इसे लेकर सवाल इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि हालिया दिनों में विपक्षी दलों की केरल और तमिलनाडु की सरकारों का वहां के राज्यपालों के साथ जबरदस्त टकराव देखने को मिला है। इससे पहले भी महाराष्ट्र से लेकर झारखंड और दिल्ली से लेकर पंजाब जैसे विपक्ष शासित राज्यों में वहां की सरकारों और राज्यपालों के बीच रिश्ते खराब रहे हैं और इसकी गूंज तमाम टीवी चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया में भी सुनाई दी है।
71 साल के बोस 1970 बैच के केरल कैडर के आईएएस अफसर हैं। वह केरल और केंद्र सरकार में कई विभागों में रहे हैं और वह 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे।
आइए, अब बात करते हैं कि केसरीनाथ त्रिपाठी और जगदीप धनखड़ जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तो उनके ममता सरकार के साथ रिश्ते कैसे थे।
मुख्यमंत्री ने राज्यपाल पर आरोप लगाया था कि वह उनकी सरकार को निशाना बना रहे हैं और केंद्र की बीजेपी सरकार के इशारे पर उनके कामकाज में दखल दे रहे हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य में जब बीजेपी और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा हुई थी तो त्रिपाठी ने कहा था कि राज्य में चुनाव स्वतंत्र ढंग से नहीं हुए हैं और पुलिस का इसमें जबरदस्त दखल रहा है।
जुलाई 2019 में त्रिपाठी का कार्यकाल पूरा होने के बाद जगदीप धनखड़ को राज्यपाल बनाया गया था। लेकिन राज्यपाल बनने के कुछ ही दिन के बाद धनखड़ का भी ममता सरकार के साथ टकराव शुरू हो गया था।
जून, 2021 में जगदीप धनखड़ ने ममता बनर्जी को लिखी एक चिट्ठी को सार्वजनिक कर दिया था। इसमें मुख्यमंत्री के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाए गए थे। चिट्ठी को सार्वजनिक किए जाने का मामला इसलिए बड़ा था क्योंकि राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच चिट्ठियों का आदान-प्रदान आम तौर पर बेहद गोपनीय होता है।
इस चिट्ठी में जगदीप धनखड़ ने लिखा था कि विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में राजनीतिक हिंसा हुई और इसके लिए उन्होंने सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि मुख्यमंत्री की चुप्पी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने इसके जवाब में कहा था कि यह चिट्ठी तथ्यों पर आधारित नहीं है। यह टकराव इतना ज्यादा बढ़ गया था कि तृणमूल कांग्रेस के नेता कल्याण बनर्जी ने राज्यपाल पर जोरदार हमला किया था और पार्टी के समर्थकों से राज्य के तमाम थानों में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने को कहा था।
जनवरी, 2022 में यह टकराव तब और बढ़ गया था जब जगदीप धनखड़ ने आरोप लगाया था कि बंगाल में राज्य सरकार द्वारा संचालित 25 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को उनकी सहमति के बिना नियुक्त किया गया था।
त्रिपाठी और जगदीप धनखड़ के साथ उनके पूरे कार्यकाल के दौरान ममता बनर्जी सरकार के रिश्ते ठीक नहीं रहे और अब जब नए राज्यपाल सीवी आनंद बोस अपना पदभार संभालने जा रहे हैं तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि अब राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच रिश्ते सुधरेंगे।
राज्यपाल राज्य के संवैधानिक मुखिया होते हैं, यहां इस बात को कहना जरूरी होगा कि कोई भी राज्यपाल अगर अपने सूबे की सरकार के किसी कामकाज में कोई ग़लती पाते हैं तो इस बारे में उन्हें सरकार का ध्यान आकर्षित करने का पूरा अधिकार है। सरकार को किसी मुद्दे पर अपने सुझाव या निर्देश देना भी राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है। लेकिन राज्यपालों को लेकर सवाल तब उठता है जब वे राज्य की सरकारों, विशेषकर विपक्ष शासित राज्य सरकारों के कामकाज पर एक सीमा से आगे जाकर सवाल खड़े करने लगते हैं।
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