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प्रतीकात्मक तसवीर।

बंगाल- पाँचवाँ चरण: दलित, मुसलिम ही तय करेंगे कौन जीतेगा? 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पाँचवें चरण में शनिवार को छह ज़िलों की जिन 45 सीटों के लिए मतदान होना है उनमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और अबकी सत्ता की प्रमुख दावेदार के तौर पर उभरी बीजेपी के बीच काँटे की टक्कर है। इस चरण में जाति ही सबसे बड़ा मुद्दा बन कर उभरी है। इस दौर में जहाँ उत्तर बंगाल के तीन ज़िलों—दार्जिलिंग, कालिम्पोंग और जलपाईगुड़ी ज़िले की 13 सीटों पर बीजेपी मज़बूत नज़र आ रही है तो दक्षिण बंगाल के तीन ज़िलों—उत्तर 24-परगना, पूर्व बर्दवान और नदिया ज़िले की 32 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस। लेकिन इस दौर में चाय बागान मज़दूरों के अलावा मतुआ और अल्पसंख्यक समुदाय की भूमिका निर्णायक होगी।

राज्य की आबादी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की तादाद क़रीब 25 फ़ीसदी है और वे इन इलाक़ों में रहती हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के तमाम नेता ममता बनर्जी सरकार पर अनुसूचित जाति/जनजाति की उपेक्षा और अपमान करने का आरोप लगाते हुए इस तबक़े को अपने पाले में खींचने का प्रयास कर रहे हैं। खासकर दक्षिण बंगाल के ज़िलों में जहाँ तृणमूल कांग्रेस मज़बूत है, बीजेपी को जीत के लिए जातियों का ही सहारा है।

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राज्य के नौ से ज़्यादा ज़िलों में अनुसूचित जाति की आबादी 25 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है। उन नौ ज़िलों में विधानसभा की 127 सीटें हैं। इनके अलावा छह अन्य ज़िलों में, जहाँ 78 विधानसभा सीटें हैं, इस तबक़े की आबादी 15 से 20 फ़ीसदी के बीच है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 68 विधानसभा सीटों में से 33 पर बढ़त हासिल की थी। उनमें से 26 मतुआ बहुल इलाक़े में थी। इन आरक्षित सीटों में से 34 पर तृणमूल को बढ़त मिली थी।

वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से तुलना करने पर यह बात साफ़ हो जाती है कि इस तबक़े के वोटरों में बीजेपी के प्रति रुझान बढ़ा है। 

बीते विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने आरक्षित सीटों में से 60 पर कब्जा जमाया था। बाक़ी में से 10 लेफ्ट को मिली थी और आठ कांग्रेस को। तब उन इलाक़ों में बीजेपी का खाता तक नहीं खुला था।

अनुसूचित जाति के लोगों की आबादी के लिहाज से पश्चिम बंगाल देश में दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक़ राज्य में इनकी आबादी 23.51 फ़ीसदी थी। अनुसूचित जनजाति के लोगों की आबादी 5.8 फ़ीसदी है। इन दोनों तबक़ों के लिए विधानसभा की 84 सीटें आरक्षित हैं। उनमें से 68 अनुसूचित जाति के लोगों के लिए हैं।

tmc vs bjp in wb assembly election fifth phase polling - Satya Hindi

तृणमूल कांग्रेस का गढ़ समझे जाने वाले उत्तर और दक्षिण 24-परगना ज़िलों में मुसलमानों और दलितों की आबादी 70 से 80 फ़ीसदी के बीच है। मिसाल के तौर पर दक्षिण 24-परगना ज़िले के कैनिंग इलाक़े में अनुसूचित जाति के लोगों की आबादी 47 फ़ीसदी है और मुसलमानों की 37 फ़ीसदी। इसी ज़िले के मगरहाटा में यह आँकड़ा क्रमशः 34.6 और 50 फ़ीसदी है। इस ज़िले में मुसलमानों की तादाद कुल आबादी का 35.57 फ़ीसदी है और दलितों की 30.2 फ़ीसदी। पड़ोसी उत्तर 24-परगना ज़िले में यह क्रमशः 25.82 और 21.7 फ़ीसदी है।

वीडियो चर्च में देखिए, बंगाल में बीजेपी कैसे उभरी? 
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उत्तर 24-परगना और उससे सटे नदिया ज़िले में रहने वाले अनुसूचित जाति के लोगों में बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों की तादाद ज़्यादा है। इस जातिगत समीकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी के तमाम नेता ममता बनर्जी सरकार पर उनकी उपेक्षा के आरोप लगाते रहे हैं।

समाजशास्त्री श्रावणी बनर्जी कहती हैं, ‘बंगाल में जाति कभी चुनावें पर हावी नहीं रही थी। लेकिन इसका सामने आना ठीक ही है। चुनावी राजनीति में जातियों का उभार यहाँ एक नई परंपरा है। अब इससे किसे फ़ायदा होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।’

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प्रभाकर मणि तिवारी
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