पश्चिम बंगाल में बीते दिनों मारे गए बंधु प्रकाश पाल को बीजेपी-आरएसएस अपना कार्यकर्ता बता रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने सत्तारूढ़ दल तृणमूल पर आरोप लगाया है कि वह विपक्ष ख़ास कर बीजेपी से जुड़े लोगों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतार रही है ताकि कोई उसका विरोध न करे। पर मृतक की माँ ने इस दावे को झूठा करार देते हुए कहा है कि उनका बेट कभी बीजेपी या आरएसएस से जुड़ा हुआ नहीं रहा। मुर्शिदाबाद ज़िला बीजेपी कमेटी के सदस्य मनोज सरकार ने राज्य बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के दावे के उलट माना है कि बंधु प्रकाश पाल कभी किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं रहे। इससे यह तो साफ़ है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में इस मामले में झूठ बोल रही है और एक हत्याकांड पर राजनीति कर रही है।
सवाल यह उठता है कि क्या किसी की मौत का सियासी फ़ायदा उठाया जाना चाहिए? क्या हमारे राजनेता दोषियों को सज़ा और पीड़ितों को न्याय दिलाने के बदले मौत पर राजनीति करते हैं? क्या वे इतने संवेदनहीन हो चुके हैं कि कुछ वोटों की ख़ातिर किसी की मौत पर भी अपनी राजनीतिक गोटियाँ फिट करने की जुगत में रहते हैं। क्या मृत्यु जैसी शोकपूर्ण और अपूरणीय क्षति का इस्तेमाल वोटों की राजनीति के लिए होना चाहिए? क्या राजनीतिक की बिसात पर किसी की मृत्यु बस एक चाल भर है?
बीते दिनों पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले के जियागंज थाने के तहत एक गाँव में बंधु प्रकाश पाल, उनकी गर्भवती पत्नी और छह साल की लाशें उनके घर से बरामद हुईं। पुलिस ने इस मामले में चार लोगों को हिरासत में लिया, दो को शुरुआती पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। पुलिस ने जाँच तो शुरू कर दी है, पर उसे अब तक कोई बहुत अहम सुराग हाथ नहीं लगा है।
इस मौत पर राजनीति की शुरुआत बीजेपी ने की। बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्र ने एक वीडियो जारी कर कहा, 'इसने मेरी अंतरात्मा को हिलाकर रख दिया है... एक आरएसएस कार्यकर्ता श्री बंधुप्रकाश पाल, उनकी आठ महीने की गर्भवती पत्नी तथा उनके बच्चे को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में क्रूरता से काट डाला गया।'
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बीजेपी के इस राष्ट्रीय प्रवक्ता ने इस पर उदारवादियों को निशाने पर लिया और सवाल उठाया कि इस घटना पर वे क्यों नहीं कुछ बोलते। इसके पहले मॉब लिन्चिंग पर 49 लोगों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर चिंता जताई थी। संबित पात्र ने सवाल उठाया कि ये लोग अब कहाँ हैं और क्यों नहीं मुँह खोलते। उन्होंने वीडियो में कहा,
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उदारवादियों की ओर से एक शब्द भी नहीं कहा गया... 49 उदारवादियों की तरफ से ममता को एक खत भी नहीं... इस तरह कुछ खास घटनाओं पर ही प्रतिक्रिया दिए जाने से मुझे घिन आती है।
संबित पात्रा, राष्ट्रीय प्रवक्ता, बीजेपी
आरएसएस के पश्चिम बंगाल के सचिव जिष्णु बसु ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि बंधु प्रकाश पाल संघ के कार्यकर्ता थे और हाल ही में एक 'साप्ताहिक मिलन' (बैठक) से जुड़े रहे थे।
लेकिन बंधु प्रकाश पाल की माँ और ममेरे भाई ने साफ़ कहा है कि पाल कभी भी किसी भी राजनीतिक दल या आरएसएस से जुड़े हुए नहीं रहे। उनकी माँ ने कहा, 'वह बिल्कुल कोरे काग़ज़ की तरह था। किसने कह दिया कि वह बीजेपी का सदस्य था? वह कभी भी न तो बीजेपी का सदस्य रहा और न ही तृणमूल का। वह कभी आरएसएस से जुड़ा हुआ नहीं था। ये सब झूठ फैलाया जा रहा है।'
इसी तरह पाल के ममेरे भाई बंधु कृष्ण घोष ने बहुत ही तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उन्होंने सत्तारूढ़ तृणमूल से भी कहा कि वह इस हत्याकांड को बीजेपी से न जोड़े और हत्यारों को जल्द से जल्द पकड़ने की कोशिश करे।
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दिलीप घोष ने कहा है कि मेरा भाई बीजेपी परिवार का था। वह झूठ बोल रहे हैं। मैं उसे बचपन से जानता हूँ, वह मेरा फुफेरा भाई तो था ही, मेरा सबसे अच्छा दोस्त भी था। मैं उससे जब कभी राजनीति की बाते छेड़ता था, वह वहाँ से उठ कर चला जाता था।
बंधु कृष्ण घोष, मृतक बंधु प्रकाश पाल का ममेरा भाई
उन्होंने इसके साथ ही तृणमूल कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया। बीजेपी ने कहा था कि बंधु प्रकाश की हत्या बीजेपी के आंतरिक कलह के कारण हुई है। इसका विरोध करते हुए घोष ने कहा, 'तृणमूल कांग्रेस यह कहना बंद करे कि बीजेपी की आंतरिक कलह के कारण मेरे भाई की हत्या हुई है। वह सत्तारूढ़ दल है और उसे सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस मेरे भाई, उसकी बीबी और बेटे की हत्या करने वालों को जल्द गिरफ़्तार करे। इसे किसी को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।'
बीजेपी के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष भले ही कहें कि बंधु प्रकाश उनकी पार्टी का सदस्य था, मृतक के पड़ोसी और बीजेपी ज़िला कमेटी के सदस्य मनोज सरकार उनकी बातों का खंडन करते हैं। उन्होंने कहा :
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बंधु प्रकाश हमसे बात तभी करते थे जब वह बाज़ार या स्कूल जा रहे होते थे। हमने उन्हें राजनीति पर बात करते या कभी किसी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं पाया।
मनोज सरकार, सदस्य, बीजेपी ज़िला कमेटी
इस राजनीति का एक दूसरा छोर कांग्रेस पार्टी से भी जुड़ता है। पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष और संसद में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इस हत्याकांड के बाद केंद्र सरकार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर ही देना चाहिए। पूरे देश में बीजेपी का विरोध करने वाली कांग्रेस पार्टी राज्य में क्यों बीजेपी के साथ खड़ी दिखती है, इसका कारण भी समझ में आसानी से आ जाता है।
कांग्रेस पार्टी भले ही सांप्रदायिकता का विरोध करे और बीजेपी के ख़िलाफ़ रहे, पर राज्य में वह किसी कीमत पर सत्तारूढ़ दल के साथ दिखना नहीं चाहती। वह सरकार का विरोध करने वाली और जूझारू विपक्ष की छवि के साथ ही चुनाव में उतरना चाहती है ताकि सत्ताविरोधी वोट उसे मिले। हालांकि उसे इसमें बीजेपी से ही लड़ना होगा और उसके वोट शेयर में सेंध लगानी होगी, पर एक रणनीतिक चाल के तहत वह अभी बीजेपी का साथ दे सकती है।
पश्चिम बंगाल सरकार पर बार-बार मुसलिम तुष्टिकीरण का आरोप लगाने वाली बीजेपी राज्य की बिगड़ती क़ानून व्यवस्था को भी मुद्दा बना कर तृणमूल कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर सकती है। अब जबकि पाल की माँ ने ही कह दिया है कि बंधु प्रकाश कभी भी आरएसएस या बीजेपी से जुड़े नहीं रहे, बीजेपी रक्षात्मक मुद्रा में है। पर इससे यह तो साफ़ हो ही गया है कि दोनों दल अपनी अपनी जुगाड़ में लगे हुए हैं।
इन सबके बीच यह मुद्दा गायब है कि हत्या की जाँच कहाँ तक पहुँची। ख़बर यह है कि हत्या की जगह से एक जूता मिला, जो हत्यारे का हो सकता है। मौके पर गए पुलिस दल के साथ कोई खोजी कुत्ता रहा होता तो वह इस जूते के आधार पर किसी सुराग की तलाश कर सकता था। पर इसे तो बीजेपी या कांग्रेस भी मुद्दा नहीं बना रही है।
इस बार के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने 16 सीटें जीत कर सबको चौंका दिया। यह उसका अब तक का रिकार्ड है। इससे उत्साहित बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगी है और कोई मुद्दा हाथ से जाने नहीं दे रही तो यह स्वाभाविक ही है। बीजेपी पर ध्रुवीकरण का आरोप नया नहीं है। वह पश्चिम बंगाल में भी कर रही है तो क्या ताज्जुब है। पर मृतक के परिजनों ने ही पार्टी की बातों का खंडन कर और उसके राज्य अध्यक्ष पर झूठ बोलने का आरोप लगा कर उसे बैकफुट पर ज़रूर धकेल दिया है।
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