ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल को लेकर बीजेपी नेताओं द्वारा की गई मांग की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि बीजेपी के एक मंत्री ने बंगाल को विभाजित करने के लिए बयान दिया है, जबकि ऐसा करना भारत को विभाजित करने के समान होगा। ममता का यह बयान तब आया है जब बीजेपी नेताओं के दो अलग-अलग बयान आए हैं।
एक बयान है भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का जिसमें उन्होंने कहा है कि कुछ हिस्से बंगाल से अलग होने चाहिए। दूसरा बयान है बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार का जिसमें उन्होंने बंगाल के कुछ हिस्से को पूर्वोत्तर में शामिल करने की मांग की है। इन्हीं बयानों को लेकर ममता ने नीति आयोग की बैठक में भाग लेने से पहले अब प्रतिक्रिया दी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह 27 जुलाई को दिल्ली में नीति आयोग की बैठक में भाग लेंगी, लेकिन केवल अपना विरोध दर्ज कराने के लिए।
बता दें कि बुधवार को दिल्ली से जारी एक बयान में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री और बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा था, 'मैंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और उन्हें एक प्रेजेंटेशन सौंपा, जिसमें उत्तर बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के बीच समानताओं पर प्रकाश डाला गया। मैंने उनसे अनुरोध किया कि पश्चिम बंगाल के एक हिस्से उत्तर बंगाल को पूर्वोत्तर में शामिल किया जाए।'
उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री उचित समय में इस प्रस्ताव पर फ़ैसला लेंगे। अगर उत्तर बंगाल को पूर्वोत्तर में शामिल किया जाता है, तो उसे केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ मिलेगा। इससे और विकास होगा। मुझे नहीं लगता है कि राज्य सरकार को कोई आपत्ति होगी और वह सहयोग करेगी।'
यह पहली बार है कि बीजेपी नेताओं ने केंद्र सरकार के स्तर पर इस तरह की मांग की है। 2021 में तत्कालीन अलीपुरद्वार के सांसद जॉन बारला ने क्षेत्र के विकास के लिए उत्तर बंगाल से एक अलग राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग उठाई। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्षों से राज्य सरकारों ने इस क्षेत्र के लोगों की उपेक्षा की है, उन्हें कभी भी वह ध्यान नहीं दिया जिसकी उन्हें आवश्यकता थी। उसी वर्ष भीषण गर्मी के बीच स्कूलों में जल्दी गर्मी की छुट्टी के राज्य सरकार के आदेश का हवाला देते हुए, तत्कालीन सिलीगुड़ी के विधायक शंकर घोष ने राज्य के दर्जे की मांग उठाई और कहा कि उत्तर बंगाल में स्कूलों को बंद करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में सुखद मौसम का अनुभव हो रहा है।
बहरहाल बीजेपी नेताओं के बयान पर दिल्ली रवाना होने से पहले मीडिया से बात करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि नीति आयोग ने बैठक से सात दिन पहले लिखित भाषण देने को कहा था, जिसके बाद बजट पेश किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा, 'बजट में बंगाल और अन्य विपक्षी शासित राज्यों को पूरी तरह से वंचित रखा गया और उनके साथ सौतेला व्यवहार किया गया।' उन्होंने कहा कि यह भेदभाव और राजनीतिक पक्षपात बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
ममता ने कहा कि बंगाल आर्थिक, भौगोलिक और राजनीतिक नाकेबंदी का सामना कर रहा है, जबकि मंत्री और भाजपा नेता राज्य को विभाजित करने की साजिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'जब संसद की कार्यवाही चल रही है, तो एक मंत्री बंगाल को विभाजित करने के लिए बयान दे रहे हैं। और अब विभिन्न स्रोतों से विभिन्न पार्टी के सदस्य अलग-अलग तरह के बयान दे रहे हैं - बिहार, झारखंड, असम और बंगाल को विभाजित करने के लिए। हम इस रवैये की कड़ी निंदा करते हैं। बंगाल को विभाजित करने का मतलब है हमारे देश भारत को विभाजित करना। हम इसका समर्थन नहीं करते हैं'।
बीजेपी नेताओं की ऐसी मांग क्यों?
बता दें कि अपने केंद्रीय नेताओं के जोरदार प्रचार अभियान के बावजूद भाजपा 2021 के विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल जीतने में विफल रही, और 294 सदस्यीय विधानसभा में 77 सीटों पर सिमट गई। चुनावी हार के बाद भाजपा नेताओं ने लोकसभा चुनावों के लिए अपनी उम्मीदों को जीवित रखने के लिए उत्तर बंगाल में अलग राज्य की मांग की वकालत शुरू कर दी। नेताओं का मानना था कि ऐसी मांगें उठाने से उन्हें संसदीय चुनावों में बढ़त मिल सकती है।
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