उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल से कहीं बड़ा राज्य है। यूपी की कानून व्यवस्था किसी से छिपी नहीं है। दोनों ही राज्यों में सात चरणों में चुनाव हो रहे हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग ने पिछले महीने चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले तमाम राज्यों में केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती को अंतिम रूप देकर घोषणा की। पश्चिम बंगाल के लिए उसने जहां 92 कंपनियां भेजने की घोषणा की, वहीं भाजपा शासित उत्तर प्रदेश के लिए सिर्फ 250 कंपनियां भेजने की घोषणा की। यहां तक हिंसाग्रस्त जम्मू कश्मीर, लद्दाख के लिए 635 कंपनियां भेजने की बात कही गई। बंगाल में 9200 जवानों की तैनाती क्या बताती है।
पश्चिम बंगाल में पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को है। चुनाव आयोग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से सौ कंपनियां और मांगी हैं। चुनाव आयोग के निर्देश पर 2700 हजार जवान पहले चरण के मतदान की निगरानी करेंगे। जबकि पहले चरण में पश्चिम बंगाल में मात्र तीन लोकसभा सीटों जलपाईगुड़ी, कूच बिहार और अलीपुर द्वार पर मतदान हो रहा है। चुनाव आयोग का साफ निर्देश है कि इन तीनों ही सीटों पर मतदान वाले दिन राज्य पुलिस के जवानों की तैनाती नहीं होगी। पूरा चुनाव केंद्रीय बलों की देखरेख में होगा। इतनी भारी तैनाती के बावजूद भाजपा नेता शिवेंदु अधिकारी को विश्वास नहीं है और वे चुनाव आयोग से ज्यादा केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग कर रहे हैं।
द टेलीग्राफ के मुताबिक केंद्रीय बलों की 177 कंपनियां पहले से ही बंगाल में तैनात हैं, पहले चरण के मतदान से पहले राज्य में केंद्रीय बल की 347 कंपनियां होंगी और इससे चुनाव आयोग को तीनों लोकसभाओं में फैले सभी 5,814 बूथों पर केंद्रीय बल के जवानों को तैनात करने की अनुमति मिल जाएगी।
आयोग के सूत्रों ने कहा कि पहले चरण के मतदान के लिए केंद्रीय बल की 330 कंपनियों का इस्तेमाल किया जाएगा। कुल मिलाकर, बूथों की सुरक्षा के लिए 270 कंपनियों की जरूरत होगी और 60 कंपनियों को त्वरित प्रतिक्रिया टीमों (क्यूआरटी) और संवेदनशील बूथों पर तैनात किया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि अतिरिक्त 170 कंपनियां दो चरणों में बंगाल पहुंचेंगी. सबसे पहले, केंद्रीय बलों की 100 कंपनियां बुधवार तक और 70 कंपनियां 15 अप्रैल के बाद राज्य में पहुंचने की संभावना है। सूत्रों ने यह भी कहा कि भाजपा नेता शुवेंदु अधिकारी ने अतिरिक्त बलों के लिए केंद्र पर दबाव डाला है।
बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान भी भाजपा ने केंद्रीय बलों की तैनाती राज्य में कराई थी। बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी ने इसे अदालत में चुनौती दी थी लेकिन अंत में अदालत ने यही फैसला दिया कि पंचायत चुनाव में केंद्रीय बल तैनात रहेंगे। बहरहाल, पंचायत और निकाय चुनाव में टीएमसी ने ग्रामीण इलाकों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि शहरी क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में भाजपा का प्रदर्शन ठीकठाक रहा। इसके मुकाबले यूपी के पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव में प्रदेश की पुलिस के अलावा किसी बल की तैनाती नहीं की गई। जबकि यूपी पंचायत चुनाव में काफी खून खराबा हुआ था। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में 920 कंपनियों की तैनाती अब तक हुए चुनाव में ऐतिहासिक है।
तृणमूल ने केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा पर केंद्रीय बलों की तैनाती करवाकर चुनाव लूटने का आरोप लगाया है। उसका कहना है कि चुनाव के पहले से ही उसके नेताओं को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। टीएमसी के सांसद डेरेक ओ'ब्रायन, सागरिका घोष और डोला सेन सहित वरिष्ठ तृणमूल नेताओं ने जब सोमवार रात केंद्रीय चुनाव आयोग के दफ्तर पर प्रदर्शन किया तो दिल्ली पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। तृणमूल ने चुनाव आयोग से चुनाव के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।
2019 के चुनाव में, भाजपा ने बंगाल में 18 सीटें और टीएमसी को 22 सीटें मिली थीं। भाजपा की नजर इस बार 30 सीटों पर है। जबकि टीएमसी की पूरी कोशिश है कि भाजपा 9-10 सीटों तक ही सिमट जाए।
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