डायमंड हार्बर का चुनाव इस बार फंस गया है। टीएमसी इसे आदर्श लोकसभा सीट बताती है, वहीं भाजपा ने इसे 'हिंसा की प्रयोगशाला' कहा है। सीपीएम भी यही आरोप टीएमसी पर लगाती है। आम चुनाव 2024 के अब तक छह चरण पूरे हो चुके हैं लेकिन हिंसा की सबसे ज्यादा खबरें बंगाल से आई हैं। इनके मुकाबले यूपी और बिहार में उतनी हिंसा नहीं हुई। पहले यूपी और बिहार चुनावी हिंसा में सबसे आगे होते थे।
टीएमसी प्रत्याशी पर एक तरह से 2019 के मुकाबले ज्यादा वोट पाने की चुनौती है। अगर 2024 में अभिषेक ज्यादा वोटों से जीत दर्ज करते हैं तो पार्टी में उनकी स्थिति और भी मजबूत होगी। क्योंकि तापस रॉय, अर्जुन सिंह और शुवेंदु अधिकारी के भाजपा में जाने की वजह से टीएमसी का सांगठनिक ढांचा लड़खड़ा गया है। तापस रॉय, अर्जुन और शुवेंदु अपनी संगठन खड़ा करने की क्षमता के लिए टीएमसी में मशहूर थे।
डायमंड हार्बर टीएमसी का रणनीतिक गढ़ माना जाता है। क्योंकि विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक अभिषेक बनर्जी ही सारी रणनीति का तानाबाना बुनते हैं। इसीलिए इस सीट पर दांव ऊंचा है। अगर भाजपा यह सीट जीतती है तो इससे टीएमसी की आतंरिक राजनीति भी प्रभावित होगी। लेकिन अगर टीएमसी जीतती है तो अभिषेक बनर्जी का ममता बनर्जी का उत्तराधिकारी बनने के दावे पर पक्की मुहर लग जाएगी। अभिषेक जीते तो राज्य की राजनीति भी इस स्थिति से प्रभावित होगी। इसीलिए भाजपा ने डायमंड हार्बर में पूरी ताकत झोंक दी है। इसीलिए अभिषेक ने इधर अपनी रैलियों में कहना शुरू किया है कि इस बार जनता उन्हें पिछले दो आम चुनावों (2014-2019) के मुकाबले ज्यादा वोटों से हराए।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि डायमंड हार्बर में अभिषेक बनर्जी की तीसरी जीत न सिर्फ यहां टीएमसी के दबदबे को मजबूती देगी बल्कि पार्टी के अंदर भी उनका कद बढ़ा देगी। उन्हें टीएमसी के अंदर से चुनौती देने वालों का मुंह बंद करा देगी।
टीएमसी के नेता यह स्वीकार करते हैं कि अभिषेक राजनीतिक रणनीति बनाने में माहिर हैं और वो इलाके में आसानी से समर्थन जुटा लेते हैं। उनकी इस क्षमता पर कहीं कोई संदेह नहीं है। हालाँकि 2021 में जब ममता ने उन्हें पार्टी का महासचिव पद सौंपा तो वरिष्ठ नेताओं ने इसे पसंद नहीं किया और पार्टी में मनमुटाव बढ़ गया। लेकिन अभिषेक ने धीरे-धीरे हालात को अपने पक्ष में किया और आज पार्टी के वरिष्ठ नेता उनका समर्थन करते देखे जा सकते हैं।
टीएमसी यहां विकास के नारे के साथ चुनाव मैदान में है। महेशतला के टीएमसी विधायक दुलाल दास का कहना है कि "अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में डायमंड हार्बर ने जबरदस्त तरक्की और विकास देखा है। बेहतर सड़कों और स्वास्थ्य सुविधाओं से लेकर बेहतर शैक्षिक अवसरों तक, हमारा काम खुद बोलता है। हमारे नेता ने इसे एक मॉडल लोकसभा क्षेत्र बनाने की कसम खाई थी।" .
अभिषेक को जब ममता ने पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में उतारा तो पार्टी के नेताओं में हलचल मच गई। वो इस बात से डर गए कि अब अभिषेक पार्टी पर कब्जा कर लेंगे। अभिषेक ने 2014 में डायमंड हार्बर लोकसभा सीट 40 फीसदी से अधिक वोटों के अंतर से जीती। इसके बाद तो अभिषेक ने पीछे मुड़कर देा नहीं। अब पार्टी उनके इशारे पर चलती है और काम करती है।
अभिषेक ने 2019 के लोकसभा चुनाव और फिर 2021 के विधानसभा चुनाव में तहलका मचा दिया। 2019 में डायमंड हार्बर सीट अभिषेक ने बीजेपी को 3.2 लाख वोटों के भारी अंतर से हराकर जीती। 2021 के विधानसभा चुनावों में सभी सात विधानसभा सीटों पर टीएमसी का कब्जा हो गया। ये छोटी सफलताएं नहीं हैं। ममता बनर्जी ने भी अभिषेक को एक मजबूत संगठनकर्ता स्वीकार किया। इसके बाद 2023 के ग्रामीण चुनाव में तो टीएमसी एकतरफा जीती और पार्टी अभिषेक के आगे नतमस्तक हो गई।
भाजपा प्रत्याशी अभिजीत दास ने कहा, "टीएमसी जबरदस्ती और अलोकतांत्रिक तरीके अपनाकर विकास का प्रचार कर रही हैं। जिस तरह से मतदाताओं को डराया जा रहा है वह लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है। यह विकास का मॉडल नहीं बल्कि हिंसा की प्रयोगशाला है।"
डायमंड हार्बर 2004 तक लेफ्ट का गढ़ रहा। यह इलाका 2009 में टीएमसी ने छीन लिया। फिर 2014 और न 2019 में टीएमसी पीछे नहीं हटी। पिछली दो बार से अभिषेक ही चुनाव लड़ते रहे हैं। 2019 में, सीट से खुद को सांसद के रूप में पंजीकृत करने के पांच साल बाद, बनर्जी ने 56 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करके अपनी सफलता को आगे बढ़ाया, जिससे भाजपा 33.5 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही।
डायमंड हार्बर में लगभग 55 प्रतिशत हिंदु और 35 प्रतिशत मुसलमान हैं । जिसमें अनुसूचित जाति 20.63 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) मात्र 0.18 प्रतिशत है। इस सीट का 49 फीसदी मतदाता ही भाजपा की तमाम योजनाओं पर विश्वास करता है। लेकिन 2024 के सातवें चरण में साफ हो जाएगा कि भाजपा के प्रति हमदर्दी करने वाले कितने हैं और टीएमसी का साथ देने वाले कितने हैं।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के बावजूद, सत्ताधारी सरकार द्वारा भय का माहौल व्याप्त है। स्थानीय लोगों का कहना है कि "वे शुरू से ही टीएमसी समर्थक रहे हूैं, लेकिन अब मैंने खुद को इससे अलग कर लिया है। पिछले कुछ चुनावों से मैं अपना वोट नहीं डालता हूं।"
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