क्या अपनी उदारवादी संस्कृति और समन्वयवादी संस्कारों के लिए मशहूर पश्चिम बंगाल में भी उग्र हिन्दुत्व सिर उठा रहा है? गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक पश्चिम बंगाल में भी गाय चुराने के शक में किसी की पीट-पीट कर हत्या की जा सकती है? जिस राज्य में गोवध पर क़ानूनी रोक नहीं लगी हो, वहाँ गाय की वजह से सरेआम हत्या हो सकती है?
पीट-पीट कर हत्या
इन सवालों ने पश्चिम बंगाल को परेशान कर रखा है। राज्य के दक्षिणी ज़िले कूचबिहार में दो लोगों को चोरी की गाय ट्रक पर चढ़ा कर ले जाने के शक में कुछ लोगों ने घेरा, रोका और बुरी तरह पीटा। पुलिस ने इसकी पुष्टि कर दी है। स्थानीय कोतवाली थाना की पुलिस ने अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि गुरुवार के तड़के माथाभांगा के रहने वाले प्रकाश दास और बाबुल मित्रा ट्रक से जा रहे थे, उनके ट्रक पर गाय लदी हुई थी।
उन्हें स्थानीय लोगों की भीड़ ने रोका, खींच पर ट्रक से उतारा, गायों को भगा दिया और उन्हें बुरी तरह पीटने लगे। लाठी-डंडे और पत्थर से उन्हें इतनी बुरी तरह पीटा गया कि वे लहू-लुहान होकर वहीं गिर पड़े। पुलिस मौके पर पहुँची तो हमलावर भाग गए। नाजुक स्थिति में प्रकाश दास और बाबुल मित्रा को कूचबिहार सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उनकी मौत हो गई।
कूचबिहार के पुलिस सुपरिटेंडेंट संतोष निंबलकर ने वारदात की पुष्टि करते हुए कहा है कि 13 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। जगह-जगह छापे मारे जा रहे हैं। इलाक़े में पुलिस तैनात कर दिया गया है।
पश्चिम बंगाल में पीट-पीट कर मार डालने की यह पहली घटना नहीं है। पर यह बहुत पहले से नहीं चली आ रही है। बीते कुछ सालों से इस तरह की वारदात हो रही है। गाय ले जाने, चुराने या गाय काटने के शक में लोगों को पीटने की वारदात इन दिनों बढ़ी है।
वारदात रोकने के लिए बना क़ानून
राज्य विधानसभा ने अगस्त में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार डालने की वारदात रोकने के लिए वेस्ट बंगाल (प्रीवेन्शन ऑफ़ लिन्चिंग) एक्ट, 2019 पारित किया। इस विधेयक में प्रावधान है कि इस तरह की वारदात के दोषियों को उम्रक़ैद तक की सज़ा हो सकती है, आर्थिक दंड का भी प्रावधान है। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सरकार ने यह विधेयक विधानसभा में पेश किया तो विपक्ष की कांग्रेस और भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने इसका समर्थन किया। भारतीय जनता पार्टी ने न तो इसका समर्थन किया न ही विरोध। उसने यह ज़रूर कहा था कि इस क़ानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों से निपटने में किया जाएगा।
लेकिन इस विधेयक के पारित होने के एक हफ़्ते बाद ही राज्य के अलग-अलग इलाक़ों में भीड़ द्वारा लोगों को पीटने की तीन वारदात हुईं। आसनसोल, कूचबिहार और उत्तर दिनाजपुर में ये घटनाएँ हुईं। इन तीनों ही वारदात में बच्चा चुराने के आरोप में भीड़ ने लोगों को पीटा था, स्थानीय लोगों ने पीड़ितों को बचाया था और पुलिस मौके पर पहुँच गई थी। किसी की मौत नहीं हुई थी।
लेकिन हालिया घटना पहले की इन तीनों घटनाओं से अलग इस मामले में है कि इसके साथ गाय चुराने का मामला जुड़ा हुआ है। पश्चिम बंगाल में गाय कभी मुद्दा नहीं बना और इस पर कभी किसी तरह के दंगे या सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ने की वारदात का रिकार्ड नहीं है।
गाय के नाम पर हत्या!
इसके साथ ही यह भी सच है कि अब पश्चिम बंगाल भी इससे अछूता नहीं रहा। राज्य के उत्तर दिनाजपुर में 22 जून 2018 को तीन लोगों को उग्र भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। धूलागच इलाक़े में हुई इस वारदात के तीनों पीड़ित मुसलमान थे और उन पर गाय चुराने का आरोप था।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, साल 2018 में 24 लोगों को उग्र भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। इनमें सबसे ज़्यादा घटना झारखंड की थी।
तो क्या अब पश्चिम बंगाल में भी सामाजिक ताना-बाना बिखरने लगा है और मजहब के आधार पर किसी को निशाना बनाया जा रहा है, यह सवाल पूछा जाना लाज़िमी है। यह इसलिए भी अहम है कि राज्य में अगले साल ही विधानसभा चुनाव हैं और बीजेपी खुलेआम हिन्दुत्व का मुद्दा उठा रही है। पार्टी के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष ने खुलेआम एनआरसी लागू करने की माँग की है और कहा है कि बांग्लादेश से आए मुसलमानों को खदेड़ दिया जाएगा। ऐसे वातावरण में गाय के नाम पर किसी को पीटा जाना वाक़ई चिंता की बात है।
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