‘तोड़ दिया।’, हमारे मित्र के दो शब्द। इलाहाबाद में मोहम्मद जावेद अहमद का घर तोड़ दिया गया। लेकिन यह तथ्य नहीं है। जो तोड़ा गया, वह जावेद साहब का घर नहीं था। वह परवीन फातिमा का घर था। उनकी पत्नी का। उसमें वे रहते थे, उनकी बेटियाँ आफ़रीन और सुमैया भी रहती थीं।
मकान की मिल्कियत उनकी न थी। लेकिन प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने नोटिस जावेद साहब के नाम जारी किया। यह बताना फिजूल है कि नोटिस रात को जारी किया गया और उसमें फर्जी तौर पर पिछली तारीखों का जिक्र किया गया जब जावेद साहब को उसकी कानूनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए और उसके अभाव में उसे ध्वस्त करने की चेतावनी दी गई थी।
एक ऐसे मकान को बुलडोज़र और जेसीबी मशीन से तोड़ा डाला गया जिसका हर तरह का टैक्स लगातार भरा जा रहा था। वह जो उस जमीन पर बना था जो परवीन फातिमा की पैतृक संपत्ति थी।
इलाहाबाद की पुलिस कह रही है कि यह कार्रवाई उसकी नहीं है। प्रशासन कह रहा है कि उसकी नहीं है। यह तो प्रयागराज विकास प्राधिकरण की कार्रवाई है जिसमें वे मात्र व्यवस्था बनाए रखने के लिए मौजूद हैं। यह झूठ है, यह तो एक दिन पहले के शहर के पुलिस प्रमुख एक बयान से ही जाहिर हो जाता है।
एक शहर के प्रशासन का प्रमुख और पुलिस प्रमुख एक मकान को ढहाने की निगरानी करने को पूरे वक्त तक मौजूद रहें। उस समय उनके मकान को ढहाते हुए उनके चेहरे पर जो इत्मीनान और जीत का आनंद है, वह छिपाए नहीं छिपता।
सच यह है और उसके लिए किसी विश्लेषण की जरूरत नहीं कि मोहम्मद जावेद अपनी पत्नी के जिस घर में रहते थे, वह सिर्फ इलाहाबाद के नहीं, पूरे देश के मुसलमानों को चेतावनी देने के लिए तोड़ा गया है। अगर हम शहर की एक प्रतिष्ठित शख्सियत के साथ यह कर सकते हैं तो बाकी की क्या बिसात!
लेकिन जो कहा जा रहा है और जिसे बहुत लोग सुन और समझ पा रहे हैं, उसे पत्रकार नाओमी बारतन ने भी सुना।
उन्होंने लिखा कि ऐसा महसूस होता है कि वे कह रहे हैं कि तुम कभी भी सुरक्षित नहीं रहोगे। कभी घर न खरीदो (और न बनाओ) क्योंकि हम उसे तोड़ देंगे। अपने घरवालों से मोहब्बत न करो क्योंकि हम उन्हें ले जाएंगे। अपनी आज़ादी से खुश न हो जाओ क्योंकि जेल तुम्हारा इंतजार कर रही है। मत सोचो कि तुम्हारी कोई इज्जत है क्योंकि हम तुम्हें पीटते हुए वीडियो बनाएंगे और तुम्हें सबके सामने रहम की भीख मांगने को मजबूर करेंगे। कोई रोजगार न करो, वह तुमसे छीन लिया जाएगा। अपनी पसंद के कपड़े न पहनो, हम तुम्हें पीटेंगे। कोई नाम न रखो, हम तुम्हें पीटेंगे। अपनी इबादत न करो, हम तुम्हें पीटेंगे। अपने अल्लाह से मोहब्बत न करो, हम तुम्हारे बच्चों को गोली मार देंगे।
लेकिन जो नाओमी ने सुना वह सिर्फ मुसलमान सुन पा रहे हैं। हिंदुओं में अधिकतर को अभी भी यह लग रहा है कि यह जायज कार्रवाई है कि ‘हिंसक’ मुसलमानों को सबक सिखाने को यह करना ही पड़ेगा।
कुछ यह भी मानते हैं कि शायद यह ठीक नहीं लेकिन इसे वे समय की जरूरत मानते हैं। कुछ यह कहते हैं कि हो सकता है, ये सब हिंसा की साजिश कर रहे हों और मकान भले कानूनी तौर पर मोहम्मद जावेद का नहीं लेकिन क्या पत्नी को पति के अपराध के लिए जिम्मेदारी से बरी किया जा सकता है?
गुजरात में भी तोड़े गए मकान
अफसोस यह है कि ज्यादातर हिंदू इससे विचलित नहीं हैं। हममें से भी अधिकतर हैरान हैं और कह रह रहे हैं कि यह अकल्पनीय है। ज़हीर जानमोहम्मद याद दिलाते हैं कि नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बने साल भी नहीं गुजरा था कि अहमदाबाद के मुसलमान बहुल जुहापुरा में मुसलमानों के कई मकान ध्वस्त कर दिए गए थे। उन्होंने इसके बारे में ‘हिंदू’ अखबार में लिखा भी था।
फिर उन सबने, हमारे महाजनों ने, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को भारत का सौभाग्य बतलाया था और आज चकित यह दृश्य देखकर सिर हिला रहे हैं, क्यों उन सबने उसे या तो देखा नहीं या देखते हुए भी अनदेखा किया जो ज़हीर देख ही नहीं रहे थे, उसे हमारे और उनके लिए रिकॉर्ड कर रहे थे, लिख रहे थे?
वह सिर्फ नरेंद्र मोदी की शासन शैली न थी। भारतीय जनता पार्टी के बाकी नेताओं की भी थी। ज़हीर जानमोहम्मद ने आनंदीबेन पटेल के मुख्यमंत्री-काल में जुहापुरा में मुसलमानों के मकानों को सुनियोजित तरीके से ढहाने की विस्तृत रिपोर्ट लिखी थी। यह आज से 8 साल पहले ही रिपोर्ट है।
आनंदीबेन जुहापुरा में महिलाओं की भलाई की योजनाओं की घोषणा करने आई थीं। आफ़रीन फातिमा की तरह ही एक मुसलमान लड़की मुख्यमंत्री से पूछना चाहती थी कि क्या ‘इम्पैक्ट फीस’ देने पर उसके पिता का मकान नहीं ध्वस्त किया जाएगा। उसके चाचा का मकान ढहाया जा चुका था। मुख्यमंत्री के साथ मौजूद अधिकारियों ने उसे दुरदुरा दिया। वे यहाँ सिर्फ औरतों के विषय पर बात करने आई थीं और इन प्रश्नों के लिए उनके पास वक्त नहीं था।
कुछ घंटे बाद उन्होंने जुहापुरा में औरतों के लिए एक स्वास्थ्य केंद्र और एक स्कूल की योजना की घोषणा की। शबनम शेख इससे प्रभावित नहीं हुई और उन्होंने कहा, “अगर हमारा घर ही नहीं रहा तो इन वायदों का हमारे लिए क्या मतलब?”
जुहापुरा में जब आठ मकान तोड़े जा रहे थे, शबनम के पिता मंसूर शेख ने पूछा, “यह आप सिर्फ मुसलमानों के मकानों के साथ कर रहे हैं। आप हमसे टैक्स क्यों लेते हैं...?” उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
ज़हीर ने आगे फतेहवाड़ी में मकानों को तोड़े जाने की कार्रवाई का वर्णन किया है।
मकान से वंचित करना
मंसूर शेख ने कहा ,“वे हमारी कमर तोड़ रहे हैं।” ज़हीर से बात करते हुए सेंटर फॉर डेवलपमेंट के संस्थापक रफी मलेक ने कहा कि हम यह नहीं कह सकते गुजरात चूँकि दंगा मुक्त कर दिया गया है, यहाँ कोई समस्या नहीं है। एक अलग किस्म की हिंसा यहाँ हो रही है और वह है मुसलमानों को कानूनी तरीके से अच्छे मकान से वंचित किया जाना।
गुजरात में बुलडोजर का इस्तेमाल बिना किसी हिंसा के नियमित रूप से मुसलमानों को लगातार बेघर करने के लिए किया जाता रहा जैसा ज़हीर की ‘हिंदू’ की रिपोर्ट से जाहिर है।
अब जो पूरे भारत में हो रहा है, वह उसी प्रशासन शैली का विस्तार है। इस शासन में मुसलमानों का जीवन अनिश्चित रहेगा। वे कभी भी निश्चिंत नहीं हो पाएंगे कि अगली रात वे अपने बिस्तर पर, अपनी छत के नीचे सो पाएंगे।
नाओमी ने लिखा कि जो मुसलमानों के साथ किया जा रहा है, उसके लिए हम असंवैधानिक, गैर कानूनी, भेदभावपूर्ण नीति जैसे भारी-भरकम शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेकिन इन सबका एक बहुत सीधा और सादा अर्थ है, “इस देश में तुम्हारी भूमिका हमारे मज़े और फायदे के लिए सिर्फ ज़ुल्म सहने और मारे जाने की है। इसकी आदत डाल लो।”
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