भारतीय विश्वविद्यालयों में भारत-पाकिस्तान के लोकप्रिय लेखकों मंटो, फैज अहमद पर प्रतिबंध लगाने की अप्रत्यक्ष कोशिश क्या इशारा कर रही है। प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार-चिन्तक अपूर्वानंद इसके पीछे कुछ और देख रहे हैं। आप भी जानिएः
भारत और ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट मैच था तो इसमें प्रधानमंत्री मोदी और ऑस्ट्रेलियाई पीएम का कार्यक्रम क्यों रखा गया? दिन खिलाड़ियों का और खेल का था। तो फिर राजनेता क्या अपनी छवि चमकाने पहुँचे थे?
कांग्रेस पार्टी आखिर किस दुविधा का शिकार है। संवैधानिक संस्थाओं को बचाने की मुहिम को लेकर उसकी सोच और एक्शन में विरोधाभास क्यों है। जिन तमाम महान संसदीय परंपराओं को उसने बनाया है, उसे बचाना उसकी ही जिम्मेदारी है। जानिए लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद और क्या कहना चाहते हैंः
हिन्दी के जाने-माने कवि अशोक वाजपेयी ने रेख्ता और अर्थ कल्चरल फेस्ट के कार्यक्रम में कविता से पढ़ने से मना कर दिया। क्योंकि रेख्ता ने उनसे राजनीतिक कविताएं नहीं पढ़ने को कहा था। क्या अशोक वाजपेयी ने ऐसा करके ठीक किया, लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद ने इसी का जायजा इस लेख में लिया है।
भारत में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा पर नजर डालिए। मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा और उनकी हत्या की एक राजकीय संस्कृति विकसित हुई। प्रसिद्ध विचारकर और लेखक अपने स्तंभ वक्त बेवक्त में बता रहे हैं मोनू मानेसर उस संस्कृति का हिस्सा है। पढ़िए यह विचारोत्तेजक लेखः
भारत में पहले दौर के पूंजीपतियों और मौजूदा दौर के पूंजीपतियों का महीन अंतर समझा रहे हैं पत्रकार और लेखक अपूर्वानंद। उनके मुताबिक पहले दौर के पूंजीपति राष्ट्र निर्माण में भी भूमिका निभाते रहे हैं। नया दौर सेठ तंत्र विकसित कर रहा है, जो सिर्फ अपने मुनाफे के बारे में सोचता है।
असम में बाल विवाह रोकने के नाम पर पुलिस ने तरीब ढाई हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। आरोप है कि यह कार्रवाई समुदाय विशेष पर की जा रही है। दूसरी तरफ एक सामाजिक समस्या का हल असम की बीजेपी सरकार पुलिसिया कार्रवाई में तलाश हो रही है जो तमाम सवाल खड़े करता है।
आज 30 जनवरी है यानी महात्मा गांधी का शहीद दिवस। गांधी की शहादत पर बहस आज भी जारी है। खैर अब तो गोडसे का महिमा मंडन करने वालों की एक पूरी जमात तैयार हो चुकी है। इस लेख में लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद ने गांधी को अपने नजरिए से समझने की कोशिश की है।
गुजरात के दंगों की गुप्त ब्रिटिश जांच और उस पर बनी बीबीसी की डॉक्युमेंट्री पर भले ही भारत में बैन लग गया हो लेकिन इस बहाने गुजरात दंगों को लेकर वो तमाम सवाल फिर से उभर आए हैं जो उस समय उठे थे...और आज भी उठ रहे हैं।
बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने जब कहा कि 'रामचरितमानस' की कुछ पंक्तियाँ समाज में घृणा फैलाती हैं तो इस पर विवाद क्यों है? पढ़िए, अपूर्वानंद की क़लम से, आख़िर इसमें सच क्या है।
यूजीसी ने भारत में श्रेष्ठ विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर खोलने की घोषणा की है। लेकिन जो सरकार राष्ट्र निर्माण के लिए हॉर्वर्ड से ज़्यादा हार्ड वर्क का महत्व जनता को बतलाती है, क्या वह वाकई ज्ञान के श्रेष्ठ केंद्रों को भारत में लाना चाहती है?
भारत जोड़ो यात्रा अपने आखिरी चरण में कश्मीर की ओर बढ़ने वाली है। क्या इस यात्रा ने लोगों को यह साहस दिया है कि फासीवाद के खिलाफ आवाज उठाई जा सकती है और उससे लड़ा जा सकता है?
बरेली के एक स्कूल में अल्लामा इक़बाल की दुआ होने पर शिक्षकों वज़ीरुद्दीन और नाहिद सिद्दीक़ी पर कार्रवाई की गई। विश्व हिंदू परिषद और हिंदुत्ववादियों को इस दुआ से परेशानी थी। क्या वे बुराई से बचने और नेक राह पर चलने की प्रेरणा को आपत्तिजनक मानते हैं?
शाहरुख़ ख़ान ने कोलकाता के अन्तर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में दिमाग़ी और भावनात्मक संकरेपन की बात की। उन्होंने हम जिंदा हैं, कहकर यह बताने की कोशिश की कि हमें नकारात्मकता से लड़ते हुए खुद को सकारात्मक बनाना होगा।