कश्मीर अभी फ़ौजी गिरफ़्त में है। आधिकारिक सूचना विभाग ने दुनिया के लिए वीडियो जारी किया है: देख लो! कश्मीर में सब कुछ ठीक है। क्या सच में सबकुछ ठीक है? बड़ी तादाद में सेना क्यों तैनात है?
मंगलेश डबराल ने क्यों लिखा कि हिंदी में कविता, कहानी, उपन्यास बहुत लिखे जा रहे हैं, लेकिन सच यह है कि इन सबकी मृत्यु हो चुकी है...इस भाषा में लिखने की मुझे बहुत ग्लानि है?
हाफ़िज़ अहमद की 'मैं एक मियाँ हूँ' कविता को पढ़कर क्या आप पुलिस स्टेशन के लिए रवाना हो जाएँगे? हाफ़िज़ को इन पंक्तियों को लिखने के लिए सज़ा क्यों मिल रही है?
इंसान होने का मतलब क्या है? क्या दकियानूसी विचार को आढ़े रहना या नये और तार्किक विचारों को अपनाना? यदि हम पृथ्वी को चपटी ही मानते रहते तो क्या हम इंसानों की तरक़्क़ी इतनी हो पाती? जानने की उत्सुकता के बिना इंसान कहाँ तक पहुँच पाता?
जब संसद में सरकार का कोई मंत्री कहे कि ‘वन्दे मातरम’ न कहने वाले को भारत में रहने का हक़ नहीं है, तो उसे संसद में और बाहर जवाब देना ही पड़ेगा कि क्या भारत में रहने की शर्त ‘वन्दे मातरम’ का जाप या नारा है?
उत्तर प्रदेश सरकार के निजी विश्वविद्यालयों के संबंध में नए अध्यादेश के आने के बाद सवाल यह उठ रहा है कि क्या भारत में राष्ट्रवाद प्रमाणन बोर्ड की स्थापना की जानी चाहिए?
बीजेपी नेताओं की ओर से बयानों के माध्यम से यह आग्रह किया जा रहा है कि गोडसे के साथ न्यायपूर्ण विचार होना चाहिए। गाँधी की हत्या में गाँधी की ज़िम्मेदारी तय की जानी चाहिए।
राहुल गाँधी की इसलिए तो प्रशंसा की ही जानी चाहिए कि उन्होंने बिना हिचकिचाहट के निर्द्वंद्व होकर सैम पित्रोदा के 1984 की सिख विरोधी हिंसा पर दिए गए बयान की सख़्त आलोचना की। 1984 की याद हिंदुओं के लिए भी आत्म परीक्षण का अवसर है।