दिल्ली में हुई हिंसा क्या अचानक हो गई? नहीं, इसके लिये लंबे समय से तैयारी की जा रही थी। हिंदू जातियों विशेषकर जाटों के बीच इसलाम के ख़िलाफ़ प्रचार किया जा रहा है।
दिल्ली के दंगों में हज़ारों लोगों का सब कुछ तबाह हो गया। मुस्तफ़ाबाद का शिव विहार इलाक़ा मुसलमानों से खाली हो चुका है। बिना सुरक्षा के भरोसे के वे लोग कैसे वापस अपने घरों में जाएंगे?
ऑश्वित्ज़ एक क़त्लगाह का नाम है। ऑश्वित्ज़ में कैद और अनिवार्य हत्या की प्रतीक्षा कर रहे लोगों में से जो बचे रह गए थे उन्हें आज से 75 साल पहले, 27 जनवरी, 1945 को सोवियत संघ की लाल सेना ने मुक्त किया।
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ धरने पर बैठी औरतें घरों की चौखट लाँघकर आई हैं, इसलिए कि इस बार सरकार का हमला उनके वजूद पर हुआ है और इसे उन्होंने महसूस किया है।
जेएनयू में कौन थे ये गुंडे? क्या ये सत्ताधारी दल से जुड़े थे? क्या ये किसी छात्र संगठन के थे? वे इतने इत्मीमान से निकल कैसे गए? एक भी पकड़ा क्यों न जा सका?
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन क्यों है? क्या यह सिर्फ़ मुसलमान का मामला है? क्या मेरे सामने किसी और को बेइज़्ज़त किया जा रहा हो तो मुझे ख़ामोश रहना चाहिए? क्या उसके बाद भी में इंसान रह जाऊँगा?
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा के बाद पुलिस की कार्रवाई को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या पुलिस छात्रों को विरोध करने की सजा दे रही थी?
नागरिकता संशोधन विधेयक केंद्रीय सरकार के मंत्रिमंडल ने पारित कर दिया है। सरकार इसे क्यों लाना चाहती है? क्या धार्मिक आधार पर ऐसे भेदभाव की इजाज़त संविधान देता है?