कृषि क़ानून और किसान आन्दोलन पर क्यों सरकार ढिठाई से बिना पलक झपकाए उस सदन में झूठ बोल रही है, जहाँ संसद को गुमराह करना जनप्रतिनिधियों के विशेषाधिकार का हनन है?
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर जब ममता बनर्जी बोलने खड़ी हुईं तो श्रोताओं के बीच से ’जय श्री राम’ के नारे लगाए जाने लगे। वहाँ मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन हुल्लड़बाजों को नहीं रोका।
मार्टिन नीमोलर राष्ट्रवादी होने के साथ-साथ यहूदी-विरोधी भी थे। उन्होंने हिटलर का उत्साहपूर्वक स्वागत किया था। पर बाद में उन्हें अपराधबोध हुआ कि यहूदियों के नरसंहार के पीछे उन जैसे लोगों की चुप्पी भी थी। पढ़ें अपूर्वानंद का लेख।
पिछले 6 वर्षों में न तो राष्ट्र ध्वज और न राष्ट्रगीत के मायने इस देश में सबके लिए एक रह गए हैं। एक पूरी आबादी को अपमानित करने के हथियार के तौर पर इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी वजह बता रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
वर्षारंभ पर एक नई अवधारणा का उपहार भारतीयों को दिया गया: ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’। बताया गया कि हिंदू ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’ होते हैं। यानी हिंदू होने का अर्थ ही ‘पैट्रीअट’ होना है।
2020 का सूर्य अस्ताचलगामी है। इस साल को कैसे याद करेंगे? वर्ष भारत के लिए आरंभ हुआ था उम्मीद की काँपती हुई लौ की गरमाहट के साथ और विदा ले रहा है फिर से आशा के दीप की ऊष्मा देते हुए।
किसान आंदोलन पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रास्ता किसानों ने नहीं आपने, यानी आपकी पुलिस ने रोका है। कहा कि सरकार किसानों पर कोई ज़बर्दस्ती नहीं करेगी। आंदोलन भी जारी रहने दिया जाएगा।
सिंघू और टिकरी की सीमा को पार कर दिल्ली आने से रोक दिए गए पंजाब और हरियाणा के यात्रियों के बीच से लौटते हुए सोचता रहा। इनसे पूछा जा रहा है कि इस राह पर तुम्हीं अकेले क्यों? बिहार, बंगाल के किसान क्यों नहीं?
नये कृषि क़ानूनों का किसान विरोध कर रहे हैं। असहमति की आवाज़ और मुक्ति की ऐसी ही एक सामूहिक प्रार्थना अभी दिल्ली की सीमाओं पर की जा रही है। उसमें शामिल होकर अपनी मुक्ति की तलाश भी की जा सकती है।
लेडी श्रीराम कॉलेज की एक छात्रा ने तेलंगाना में आत्महत्या कर ली। उनका परिवार पहले से ही कर्ज में डूबा था इस वजह से ऐश्वर्या ऑनलाइन पढ़ाई करने में सक्षम नहीं थीं। शिक्षा व्यवस्था में आख़िर गड़बड़ी कहाँ है?
बाइडन ने कहा कि जो हारे हैं वे भी अमेरिकी हैं। किसी और मौके पर यह सब कुछ बहुत ही घिसा-पिटा लगता लेकिन चुनाव नतीजों के बाद इस वक्तव्य को सुनते हुए रोने वालों की संख्या कम न थी।
पैगंबर मुहम्मद कार्टून विवाद से यह सवाल खड़ा होता है कि क्या किसी भी कीमत पर व्यक्तिगत या निजी स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए, क्या इसमें ज़िम्मेदारी का अहसास नहीं होना चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद यह सवाल उठा रहे हैं।