एक महीने से अधिक हो गया, छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सिलगेर में पूरे बस्तर से हजारों आदिवासी इकठ्ठा हो रहे हैं। वे सिलगेर में सीआरपीएफ़ का कैंप लगाए जाने का विरोध कर रहे हैं।
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के एक बयान पर चर्चा चल रही है। उन्होंने असम के (बांग्लाभाषी) मुसलमानों को सलाह दी कि वे परिवार नियोजन अपनाएँ और जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग करें।
श्मशान खाली हैं और कब्रों की खुदाई करनेवालों के हाथों को कुछ आराम है। हस्पतालों में भी बिस्तर अब मिल जाएँगे। तो क्या हम इसे प्राकृतिक चक्र मानकर बैठ जाएँ? कितने लोग इस बीच गुज़र गए, उनके बारे में सोचने की जहमत कौन ले?
अब स्पष्ट है कि देश को हर तरफ और हर मुमकिन तरीके से अराजकता में धकेला जा रहा है। इसका सबसे ताजा उदाहरण है पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को दिल्ली रिपोर्ट करने का निर्देश।
न्याय और न्यायाभास। न्यायाभास से बेहतर और सटीक होगा- इन्साफ़ का धोखा। यानी आपको जान पड़े कि इंसाफ मिल रहा है और वह कभी हाथ न आए। जो सिद्दीक़ कप्पन के साथ किया गया, उसे इन्साफ़ का मज़ाक ही कहेंगे।
कोरोना से लड़ने में सरकार क्यों नाकाम है, उसने क्यों पहले से तैयारी नहीं की, ये सवाल हैं। लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सरकार चुनते वक्त किसी ख़ास समुदाय के प्रति नफ़रत नहीं थी? सवाल उठा रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
पश्चिम बंगाल के श्यामपुकुर विधान सभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार संदीपन बिस्वास चुनाव प्रचार करते हुए वाम दलों के नेताओं के घर गए और उनसे अपने पक्ष में मतदान की प्रार्थना की।
अन्ना हज़ारे के आंदोलन में लोकपाल क़ानून जिस तरह बना उससे सरकार को बिना चर्चा क़ानून बनाने के रास्ते मिले। बहुमत से क़ानून बन जाता है। विचार-विमर्श की क्या ज़रूरत?
फिर छत्तीसगढ़ से सीआरपीएफ़ के जवानों के मारे जाने की ख़बर आ रही है। लिखते वक़्त 22 जवानों की मौत का पता चला है। संख्या बढ़ सकती है। ये सब माओवादी विरोधी अभियान में हिस्सा ले रहे थे।
अनुयायी एक अकेले बच्चे पर मंदिर के प्रांगण में हिंसा कर सकते हैं, उसके गाली गलौज कर सकते हैं क्योंकि वह पानी पीने वहाँ आ गया था। उसे क्या पता था कि यहाँ हृदय घृणा से जलकर राख हो चुके हैं।