loader

भारत में इंसाफ़ की खोज...क्या अब राष्ट्रद्रोह है मी लॉर्ड?

हिंदू अगर मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा करते हैं तो वह राष्ट्रवादी उत्साह की अभिव्यक्ति है।हिंदुत्ववादियों को या हिंदुओं को अधिकार है कि वे मुसलमानों पर हिंसा करें।मुसलमानों को वह हिंसा बर्दाश्त करनी चाहिए, किसी तरह का प्रतिरोध नहीं करना चाहिए।अगर वे प्रतिरोध करते हैं और उसमें हिंसा होती है तो वह हिंसा अपने आप ही दहशतगर्द, राष्ट्रविरोधी कृत्य बन जाती है। 
जो इस हिंसा में शामिल हैं उनकी किसी भी तरह की क़ानूनी या दूसरे क़िस्म की मदद करना भी राष्ट्रविरोधी या दहशतगर्द कृत्य है। इस हिंसा के तथ्यों को पता करने की कोई भी गतिविधि भी राष्ट्रविरोधी कृत्य है। ये निष्कर्ष 7 साल पहले  गणतंत्र दिवस के दिन  उत्तर प्रदेश के  कासगंज में हुई हिंसा में एक हिंदू पंकज गुप्ता के मारे जाने के मामले में लखनऊ की एक अदालत के फ़ैसले से निकाले जा सकते हैं।
ताजा ख़बरें
अदालत ने पंकज गुप्ता की मौत को पूर्व नियोजित, राष्ट्र विरोधी, आतंकवादी साज़िश माना है और 28 मुसलमानों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है। साथ ही उसने मुसलमानों के साथ खड़े होने वाले लोगों और संगठनों के ख़िलाफ़ टिप्पणी की है।

इस फ़ैसले से आज की राष्ट्रवादी समझ पुष्ट होती है कि हिंदुओं की हिंसा पूर्व नियोजित नहीं होती, वह स्वतःस्फूर्त होती है। वे स्वभावतः हिंसक भी नहीं होते। हो ही नहीं सकते।


वे तो बस भड़क जाते हैं या उत्तेजित हो जाते हैं।। या तो 500 साल पुरानी किसी नाइंसाफ़ी की याद के कारण भड़क जाते हैं,या किसी की शक्ल सूरत देखकर या गोमांस के ख़याल से ही वे उत्तेजित हो सकते हैं।वह उत्तेजना स्वाभाविक और जायज़ है। इस उत्तेजना में अगर उनसे हिंसा हो जाती है तो उसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। लेकिन अगर मुसलमान अपने ऊपर होने वाली हिंसा का प्रतिरोध करें और उसमें हिंसा हो तो वह हिंसा हमेशा पहले से तय साज़िश के मुताबिक़ की जाती है। वह हिंसा हिंदुओं के ख़िलाफ़ नहीं,  राष्ट्र के ख़िलाफ़ अपराध होती है। हिंसा का हर वह कृत्य जिसमें मुसलमान हों, आतंकवादी होता है।
अगर आपको याद हो, 2018 के गणतंत्र दिवस के रोज़ उत्तर प्रदेश के कासगंज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संकल्प फाउंडेशन के लोगों ने जबरन एक मुसलमान बहुल मोहल्ले से मोटर साइकिल रैली ले जाने की कोशिश की थी। उस वक्त उस मोहल्ले में गणतंत्र दिवस समारोह हो रहा था।तिरंगा फहराया जा रहा था। लेकिन तिरंगा झंडे लिए हुए हिंदू मोटरसाइकिल दौड़ते हुए उसके बीच से निकलना चाहते थे।
पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह ने 31 जनवरी, 2028 को अपने लेख में(https://tinyurl.com/3arc9eek) इस घटना के बारे में बतलाया:
  • “कासगंज में बद्दू नगर मुहल्ले के अल्पसंख्यक भी, सांप्रदायिक शक्तियों के इस दुष्प्रचार के विपरीत कि वे राष्ट्रीय समारोहों को लेकर उत्साह नहीं प्रदर्शित करते, गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारियों में लगे थे।
उस परंपरा के अनुसार, जिसके तहत वहां वे गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस मिलजुलकर मनाते रहे हैं। हां, उन्होंने सड़क तक कुर्सियां बिछा रखी थीं और उन्हें अंदेशा नहीं था कि वही फ़साद का कारण बन जाएंगी।
अभी वे तिरंगा फहराने की तैयारी ही कर रहे थे कि विश्व हिंदू परिषद और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तिरंगा रैली में शामिल लोग वहां पहुंचे और कुर्सियां हटाकर रैली को निकल जाने देने का फ़रमान सुनाने लगे।
लोगों ने उनसे झंडारोहण तक इंतज़ार करने का आग्रह किया तो वह उन्हें क़ुबूल नहीं हुआ और वे मनमानी पर उतर आए. नारेबाज़ी के बाद बवाल शुरू हुआ तो बढ़ते-बढ़ते मारपीट व आगज़नी तक जा पहुंचा और एक युवक की हत्या कर दी गई।”
कासगंज में 26 जनवरी की इस हिंसा के बाद भी हिंसा हुई। मुसलमानों के घरों, दुकानों और उनकी संपत्ति को लूट और जलाया गया। यह सब कुछ 3 दी तक चलता रहा। दिल्ली से ‘युनाइटेड अगेंस्ट हेट’ नामक संगठन की एक टीम इस हिंसा के तथ्य जानने के लिए वहाँ गई। उसकी रिपोर्ट में , (https://tinyurl.com/m9jf4z9y) कहा गया, “ उस दिन संकल्प फाउंडेशन और एबीवीपी ने प्रभु पार्क से सुबह 8 बजे हवाई फायरिंग कर रैली शुरू की थी और रैली के साथ पुलिस के लोग मौजूद नहीं थे। जब दोनों गुटों के बीच विवाद हुआ, उसके बाद रैली में शामिल कुछ युवक बिलराम गेट के पास आकर वहां खड़ी एक ट्रॉली में लदी ईंटों से पत्थरबाजी करने लगे।”
उस समय ए बी पी समाचार चैनल ने भी इस हिंसा की रिपोर्ट की। उसने तक़रीबन वही बतलाया (https://tinyurl.com/pfncffzm) जो ‘युनाइटेड अगेंस्ट हेट’ की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया।ए बी पी चैनेल के पंकज झा की रिपोर्ट का शीर्षक था ‘देशभक्ति के नाम पर दंगा’। इस  रिपोर्ट के बाद पंकज झा को जान से मार देने की धमकियाँ दे गईं। दिलचस्प यह है कि चैनल ने इन्हें शायद इंटरनेट से हटा लिया है क्योंकि आज खोजने पर वे नहीं मिलतीं।पंकज झा की यह रिपोर्ट ‘आज तक’ जैसे चैनेल की उस भड़काऊ रिपोर्टिंग की काट कर रही थीं जो पूछ रही थी कि “भारत में नहीं तो क्या पाकिस्तान में जा कर फहराएँ तिरंगा?”
दरअसल कासगंज में हिंसा पूर्व नियोजित थी लेकिन यह योजना या साज़िश हिंदुत्ववादी संगठनों की थी। उसनका मक़सद हिंसा भड़काना था। बाइक रैली के पहले हवाई फ़ायरिंग ज्यों हुई? बाइक पर बंदूक़ क्यों लहराई जा रही थी? चंदन गुप्ता को काफ़ी क़रीब से गोली लगी थी। बाइक रैली से लोग अपनी बाइक छोड़कर भागे। वे किनकी थीं? 
26 जनवरी के बाद 3 रोज़ तक जो हिंसा हुई क्या उसकी कोई सरकारी जाँच हुई? क्या उसमें शामिल लोग गिरफ़्तार हुए और क्या उन्हें सज़ा हुई? उस वक्त कासगंज के पुलिस प्रमुख ने चेतावनी दी थी कि यह हिंसा फैलने नहीं दे जाएगी।यह कहते ही उनका तबादला क्यों कर दिया गया? क्या इसलिए कि उनपर मुसलमानों का भरोसा था?
  • क्या अदालत ने ये सवाल पूछे? नहीं। उसने पूछा कि ये सवाल पूछे ही क्यों जा रहे हैं? मानवाधिकार या नागरिक अधिकार संगठनों को क्यों कासगंज में दिलचस्पी थी? क्यों वे ‘फैक्ट फाइंडिंग’ कर रहे थे और क्यों मुसलमानों को क़ानूनी सहायता दे रहे थे? वे क्यों इंसाफ़ की खोज में लगे थे? 
पीपुल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज(पी यू सी एल) ने अदालत की इस टिप्पणी की आलोचना करते हुए बयान(https://tinyurl.com/2s4y48ax) जारी किया है। उसने ठीक ही कहा है कि नागरिक संगठनों द्वारा ‘फैक्ट फ़ाइंडिंग’ ग़ैरकानूनी नहीं है और यह हमारा संवैधानिक अधिकार है।
एन आई ए की इस अदालत ने जो फ़ैसला दिया है वह अन्यायपूर्ण है और उसकी अपील ज़रूर की जानी चाहिए।यह फ़ैसला उन हिंदुत्ववादी संगठनों का हौसला बढ़ाएगा जो कासगंज जैसी हिंसा आयोजित करते रहते हैं। मुसलमानों के मोहल्ले में जबरन घुसकर हिंसा करना उनका अधिकार है:यह इस फ़ैसले का एक निष्कर्ष है। पुलिस इस हिंसा को नहीं रोकेगी और मुसलमान अपनी रक्षा में कुछ नहीं कर सकते।
2018 की कासगंज की हिंसा के बाद के 7 सालों में इस तरह की हिंसा की घटनाओं में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है। हिंदुत्ववादी संगठनों और नेताओं को कोई सज़ा नहीं हुई है। इससे आगे बढ़कर अब अदालतें कह रही हैं कि मुसलमानों की कोई मदद करना राष्ट्रविरोधी कृत्य है। 
वक़्त-बेवक़्त से और खबरें
लखनऊ की अदालत के इस फ़ैसले से याद आया कि सर्वोच्च न्यायालय ने एहसान जाफ़री की हत्या में इंसाफ़ के लिए उनकी पत्नी ज़किया जाफ़री के 20 साल लंबे संघर्ष के बाद उनके ख़िलाफ़ क्या कहा था। सिर्फ़ उनके नहीं, इंसाफ़ की खोज में उनके साथ खड़ी तीस्ता  सीतलवाड के ख़िलाफ़ टिप्पणी करते हुए अदालत ने नाराज़गी ज़ाहिर की थी कि वे इतने लंबे वक्त तक वे इंसाफ़ की माँग पर अड़ी रहीं।और अदालत इससे भी हैरान थी कि तीस्ता को इसमें क्या दिलचस्पी हो सकती थी कि ज़किया को इंसाफ़ मिले। ज़रूर यह साज़िश है। 
अदालत ने सरकार से कहा था कि वह इनके ख़िलाफ़ जाँच और कार्रवाई करे। भारत में इंसाफ़ की खोज को अब अदालतें साज़िश और राष्ट्र्द्रोह मानने लगी हैं। यह इस बार के गणतंत्र दिवस का मुख्य विचारणीय प्रश्न है।  
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अपूर्वानंद
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें