मुसलमानों के मकान, उनकी संपत्ति को कौन तबाह कर रहा है? मध्य प्रदेश के छतरपुर से शहज़ाद अली के आलीशान मक़ान को किसने ज़मींदोज़ किया? किसने उसे आदेश पर दस्तख़त किए? किसने शहजाद अली की 3 गाड़ियों को कुचला, किसने उसका आदेश दिया?
किसके आदेश से मुसलमानों का जुलूस निकाला गया? किसने उन्हें ‘पुलिस हमारा बाप है’ का नारा लगाने को मजबूर किया?
असम में बलात्कार के एक अभियुक्त को कौन रात में एक तालाब के किनारे ले गया यह कहकर कि वह घटना स्थल है? और वहाँ वह अभियुक्त कैसे मारा गया? क्या वह इतने पुलिस बंदोबस्त में सचमुच भाग निकालने की कोशिश करते हुए तालाब में कूदा और डूब कर मर गया? पुलिस के इस दावे को असम में कौन मान रहा है? जिन्हें इसमें मज़ा आ रहा है वे भी सच्चाई जानते हैं।
यह सब कुछ प्रशासनिक अधिकारी कर रहे हैं। स्थानीय पुलिस अधिकारी कर रहे हैं। इनका निर्णय वे कर रहे हैं और इसपर अमल भी वही कर रहे हैं।वे यह कहकर अपनी ज़िम्मेवारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते कि उन्हें मुख्यमंत्री ने ऐसा करने को कहा था या ऊपर से इसका आदेश था।
मध्य प्रदेश के छतरपुर में मुसलमानों के एक रोष प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाज़ी हुई। वे मोहम्मद साहब के सार्वजनिक अपमान के ख़िलाफ़ अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर रहे थे और एफ़ आई आर दर्ज कराना चाहते थे।पुलिस के झड़प के बाद पत्थरबाज़ी हुई। कैसे हुई, कौन इसमें शामिल था, यह जाँच से ही मालूम हो सकता है। शहज़ाद अली नाराज़ प्रदर्शनकारियों को समझाने की कोशिश कर रहे थे।लेकिन उन्हें पुलिस ने हिंसा उकसानेवालों में शुमार किया और अगले ही रोज़ उनका घर ज़मींदोज़ कर डाला और उनकी सारी गाड़ियाँ कुचल डालीं।
साथ ही मुसलमानों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हुए उनका जुलूस निकाला।
यह सब क़ानून के किन प्रावधानों के तहत किया गया? मकान तोड़ने को पहले प्रशासन ने यह कहकर जायज़ ठहराया कि वह सरकारी ज़मीन पर था, फिर कहा कि वह जलाशय के काफ़ी क़रीब था और फिर यह कहा कि ज़मीन तो शहज़ाद अली की है लेकिन मकान का नक़्शा स्वीकृत नहीं था। तो क्या भारत में या मध्य प्रदेश में नक़्शा न होने के कारण पूरा मकान तोड़ डाला जाता है? वह भी बिना नोटिस के?
क्यों ज़िलाधिकारी को यह बोलने का साहस नहीं है कि हम वास्तव में मुसलमानों को सबक़ सिखलाना चाहते थे इसलिए उनके समुदाय के एक मोतबर आदमी को हमने तबाह कर दिया जिससे सबमें ख़ौफ़ बैठ जाए? क्यों वह झूठ और अर्ध सत्य का सहारा ले रहे हैं?
इसके पहले कॉंग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने प्रेस को बतलाया था कि उनके पास भिंड के ज़िलाधिकारी की रिकॉर्डिंग है जिसमें वे कह रहे हैं कि वे मुसलमानों का घर तोड़ेंगे, हिंदुओं का नहीं। जहाँ ‘हिंदू मुस्लिम एंगल’ होगा वहीं घर तोड़ेंगे।हत्या के एक मामले में अभियुक्त मुसलमानों के मकान प्रशासन ने ध्वस्त कर दिए लेकिन वैसे ही मामले में अभियुक्त हिंदू का मकान तोड़ने से इनकार कर दिया।
उसके कुछ पहले उज्जैन में बलात्कार के एक ही मामले में अभियुक्त मुसलमान का घर तो तोड़ दिया गया लेकिन हिंदू अभियुक्त का नहीं।
हमने मध्य प्रदेश में ही दो साल पहले डिंडोरी के ज़िलाधीश रत्नाकर झा का बयान देखा था:” डिंडोरी जिले में छात्रा के अपहरण के मामले में आरोपी आसिफ खान के दुकान और मकान को जमींदोज कर दिया गया है। दो दिवस तक आरोपी आसिफ खान के दुकानों सहित उसके अवैध मकान पर कार्रवाई की गई है।”
आसिफ़ ख़ान का अपराध यह था कि उन्होंने एक हिंदू औरत से शादी की थी। वह वैध विवाह था। लेकिन जैसा भारत में होता है, लड़की के परिवारवालों ने हंगामा किया। ज़िलाधीश ने आसिफ़ ख़ान के पिता का घर तोड़ डाला। किस क़ानून के तहत? और उसका गर्व पूर्वक ऐलान भी किया। पूछने पर सफ़ाई दी कि गाँव वाले चाहते थे कि उसका घर तोड़ दिया जाए, इसलिए हमने तोड़ दिया।
मुसलमानों पर कोई इल्ज़ाम लगते ही,पलक झपकते प्रशासन उनके मकान, दुकान ध्वस्त कर देता है। अयोध्या में समाजवादी पार्टी के एक मुसलमान नेता पर बलात्कार का इल्ज़ाम लगते ही उनका मकान, मार्केट ध्वस्त कर दिया गया। ये घटनाएँ उन सैकड़ों कार्रवाइयों की झलक भर हैं जो पिछले 5-6 साल में भारत के अलग-अलग राज्य में प्रशासन के द्वारा मुसलमानों के खिलाफ़ की जा रही हैं।
मुसलमानों पर कोई इल्ज़ाम लगते ही, पालक झपकते प्रशासन उनके मकान, दुकान ध्वस्त कर देता है।उनका अपना मकान होना भी ज़रूरी नहीं। वह जिस मकान में है, उसे तोड़ डाला जाता है। उदयपुर में एक मुसलमान किशोर ने झगड़े में एक बच्चे को चाकू मार दिया। वह हिंदू था। फिर क्या था! प्रशासन ने उस बच्चे का मकान तोड़ डाला। वह न तो उसका था, न उसके माँ-बाप का। वह किराए का का था जिसमें 4 और परिवार रह रहे थे। मकान मालिक हिंदू था। यह एक घटना यह बतलाने के लिए काफ़ी है कि मकान तोड़ा जाता है सबक़ सिखलाने को। उसका वैध, अवैध होना बहाना भर है। यह कैसे होता है कि किसी घटना के फौरन बाद प्रशासन को मकान के अवैध होने की याद आती है?
यह सब कुछ वे लोग कर रहे हैं जो प्रशासन और पुलिस में हैं। फ़ैसले वे ले रहे हैं। इसके लिए ज़िम्मेवार वही हैं।लेकिन यह बात कोई कह नहीं रहा। यह ठीक है कि भारतीय जनता पार्टी की नीति यही है। लेकिन अलग-अलग मामले में क्या मुख्यमंत्री लिखित आदेश देते हैं? या क्या राज्य ने ऐसा कोई सामान्य निर्देश जारी किया है? यह सब कुछ प्रशासन अपनी तरफ़ से कर रहा है। कहीं कुछ होते ही बुलडोज़र क्योंकर निकल पड़ता है?
क्यों कॉंग्रेस पार्टी यह नहीं पूछ पा रही है? अन्य दल भी यह सवाल क्यों नहीं कर पा रहे हैं? क्यों कोई साफ़-साफ़ नहीं कहता कि पुलिस और प्रशासन मुसलमानों के साथ जो कर रहा है, वह अपराध है। राहुल गाँधी ने दूसरे प्रसंगों में पिछले दिनों कई बार कहा है कि जो अधिकारी ग़ैर संवैधानिक काम कर रहे हैं, उन्हें उसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन मुसलमानों के ख़िलाफ़ ग़ैरक़ानूनी हिंसा करनेवाले प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के बारे में यह क्यों नहीं कहा जा रहा?
अदालतें यह पैटर्न क्यों नहीं देख पा रही हैं? क्यों पिछले दो साल से सर्वोच्च न्यायालय इसपर कोई निर्देश नहीं दे पाया है?
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प्रशासनिक अधिकारियों को यह समझ लेना चाहिए कि वे जो कर रहे हैं, वह अपराध है। वे सब जो उनके हाथों जुल्म के शिकार हुए हैं, उन पर मुक़दमा कर सकते हैं। या राज्य ही, जब वह फिर से संवैधानिक तरीक़े से चलने लगेगा, उन पर मुक़दमा चला सकता है। जैसा अभी बांग्लादेश में हो रहा है।
जो अपराध हिंदुत्ववादी गिरोह या भीड़ करती थी, अब वह प्रशासन और पुलिस कर रही है। भारतीय राज्य-तंत्र का हिंदुत्ववादीकरण भारत की पिछले 10 साल की सबसे भयानक घटना है।
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