“गुजरात को बदनाम करने की साज़िश की गई और वहाँ निवेश रोकने की कोशिश की गई।” प्रधानमंत्री ने अभी दो रोज़ पहले गुजरात में यह वक्तव्य दिया। इस वक्तव्य को नोट तो किया गया लेकिन इसके मायने पर विचार नहीं किया गया है।
बिलकीस बानो के मुजरिमों की रिहाई के बाद बार-बार कहा जा रहा था कि गुजरात सरकार ने प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के नारी सम्मान के आह्वान के ख़िलाफ़ आचरण किया है। अख़बार और दूसरे लोग इस मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर निराशा जाहिर कर रहे थे।
बिलकीस ने दोषियों को छोड़ा
बिलकीस और उसके परिजनों और गाँव वालों के ख़िलाफ़ सामूहिक हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए उम्र क़ैद की सजा काट रहे अपराधियों को देश की आज़ादी के दिन माफ़ी दी गई थी। उनकी बाक़ी सजा माफ़ कर दी गई।
देश और बाहर हाहाकार उठा कि क्या गुजरात सरकार ने प्रधानमंत्री का लाल क़िले का भाषण नहीं सुना? क्या वे उसमें नारियों के सम्मान की बात नहीं कर रहे थे? उसी दिन सामूहिक बलात्कार में शामिल लोगों को माफ़ी देने का क्या मतलब? प्रधानमंत्री आख़िर इस अन्याय पर चुप कैसे रह सकते हैं?
प्रधानमंत्री ने सबको उत्तर दे दिया है। हत्यारों और बलात्कारियों की माफ़ी के बाद अपनी पहली गुजरात यात्रा में खादी उत्सव में भाग लेकर और उसके साथ अपना वक्तव्य देकर। पहला जवाब यह है कि प्रधानमंत्री से किसी मानवीयता की उम्मीद करना व्यर्थ है। ऐसे लोगों के लिए प्रधानमंत्री के पास उपहास का वक्त भी नहीं है। दूसरा उत्तर यह है कि इंसानियत या इंसाफ़ की माँग करने वाले गुजरात के दुश्मन हैं। वे गुजरात को बदनाम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों ने गुजरात को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भरसक कोशिश की गई कि गुजरात में निवेश न आए। लेकिन सबको नाकामयाब कर दिया गया है। इस वक्तव्य का प्रसंग क्या था? क्यों प्रधानमंत्री अपने मुख्यमंत्री काल की याद दिला रहे थे? कौन तब गुजरात को बदनाम कर रहा था?
2002 की याद दिलाई
अपनी कूट भाषा में प्रधानमंत्री अपनी जनता को 2002 की याद दिला रहे थे। 2002 के जनसंहार की। उस जनसंहार में उनकी सरकार की भूमिका की पूरी दुनिया में जो आलोचना हुई थी, वे उसी की तरफ़ इशारा कर रहे थे।
2001 का भूकंप
इस आलोचना को वे गुजरात को बदनाम करने की साज़िश बतलाते हैं। हालाँकि अख़बारों ने भाषण की जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, उसमें 2002 का उल्लेख नहीं है। 2001 के भयंकर भूकंप का ज़िक्र है। उससे उबर कर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए गुजरात की जनता को शाबाशी का ज़िक्र है।
इस भूकंप के बाद पूरे भारत और संसार से गुजरात की जनता की तरफ़ मदद के लिए हाथ बढ़े। भारत के हर कोने से, हर तरह के लोग अपनी ताक़त भर सहायता लेकर गुजरात पहुँचे। इसमें गुजरात को बदनाम करने की बात कहाँ से आई? क्या किसी ने यह कहा कि गुजरात को मदद नहीं दी जानी चाहिए? बल्कि उसे वापस पैरों पर खड़ा करने के लिए कई बाहरी लोगों ने तो कच्छ में जैसे डेरा ही जमा लिया।
कई लोगों का गुजरात से रिश्ता इस भूकंप की त्रासदी के बाद शुरू हुआ और अब तक जारी है।
2002 के दंगे
इस भयावह त्रासदी के अगले साल और बड़ी त्रासदी हुई। लेकिन वह पूरे गुजरात की न थी। मात्र गुजरात के मुसलमानों के लिए ही वह त्रासदी थी। यह भी कहा जाना चाहिए कि जैसे भूकंप ने गुजरात के बाहर लोगों का दिल हिलाया, वैसे ही 2002 की त्रासदी ने भी। उसके बाद भी पूरे भारत से लोग गुजरात पहुँचे।
लेकिन वे जिन राहत शिविरों में पहुँचे, वे भूकंप के बाद के राहत शिविरों से अलग थे। इन शिविरों में जिन मुसलमानों ने पनाह ली थी, उनके साथ कुदरत ने नहीं, उनके पड़ोसी हिंदू गुजरातियों ने नाइंसाफ़ी की थी। और वह एक योजना के साथ किया गया था। भूकंप की तरह स्वतः स्फूर्त न था।
इन शिविरों में खाने के सामान की ज़रूरत थी। जैसे भूकंप के बाद के शिविरों में थी। लेकिन और भी ज़रूरत थी। अपने पड़ोसियों के हमलों से ज़ख़्मी लोगों को इलाज की ज़रूरत थी और ज़ख़्म पर हमदर्दी के मरहम की भी।
2001 में तो गुजरात सरकार ने भी भूकंप पीड़ितों के शिविरों में मदद पहुँचाई थी। बाहर से जो आ रहे थे, उनके साथ मिलकर काम किया था। स्वामी नारायण संप्रदाय ने भी सहायता पहुँचाई थी। लेकिन 2002 में जो शिविर थे, न उनको स्थापित करने में, न उनको चलाने में गुजरात सरकार ने कोई मदद की।
इन शिविरों में जो आए थे, जैसा हमने कहा, वे गुजराती थे, लेकिन सिर्फ़ मुसलमान। क्यों गुजरात सरकार ने यहाँ वह नहीं किया जो उसने 2001 में किया था? इतना ही नहीं, क्यों तब के मुख्यमंत्री ने ऐसे शिविरों को एक अलग क़िस्म की साज़िश का अड्डा बतलाकर इन शिविरों के ख़िलाफ़ हिंदू गुजरातियों में घृणा भरने की कोशिश की?
अपने घरों, मोहल्लों से जान बचाकर भागे लोगों के लिए मुसलमानों की संस्थाओं ने और दूसरे संगठनों ने राहत शिविर स्थापित किए थे। जिन्हें 20 साल पहले के मार्च, अप्रैल, मई के महीनों की याद है, वे जानते हैं कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा जारी थी। मुसलमानों को सुरक्षा की ज़रूरत बनी हुई थी।
क्या कहा था मुख्यमंत्री ने?
तब गुजरात के मुख्यमंत्री का क्या रुख़ था? उन्होंने उस वक्त अपनी हिंदू जनता से कहा था कि वे आतंकवादी पैदा करने वाले कारख़ाने नहीं चलने दे सकते। अपने एक भाषण में मुख्यमंत्री ने कहा था, “हम क्या करें? उनके लिए राहत शिविर चलाएँ? क्या हम बच्चा पैदा करने वाले केंद्र बनाएँ? हम पाँच, हमारे पच्चीस”। मुख्यमंत्री की जनता समझती है कि इशारा किनकी तरफ़ है। आगे उन्होंने कहा था कि पंक्चर बनाने वालों की लाइन लगी है। आबादी बढ़ाने की साज़िश में जो लगे हैं, उनको सबक़ सिखलाने की ज़रूरत है।
राहत शिविरों के ख़िलाफ़ हिंदू जनता के मन में हिंसा किसने भरी? किसने राहत शिविर तोड़े और तुड़वाए? एक-एक कर राहत शिविर चलाने वालों को धमकी दी गई। उनमें से कुछ गिरफ़्तार कर लिए गये।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
हालात इतने ख़राब होने लगे कि महाश्वेता देवी के साथ 200 लेखकों, कलाकारों ने सर्वोच्च न्यायालय में जून, 2002 में गुहार लगाई कि इन राहत शिविरों को बचाया जाए।
इन्हीं राहत शिविरों में एक में बिलकीस बानो थी। अपने पेट में 5 महीने के गर्भ के साथ। जिसे गुजरात के मुख्यमंत्री आबादी बढ़ाने का षड्यंत्र बतला रहे थे और इसके लिए सबक़ सिखाने की धमकी दे रहे थे।
जिन्होंने बिलकीस बानो का हाथ थामा, उनकी आवाज़ को अदालत में पहुँचाने में उनकी मदद की, इंसाफ़ की राह पर उनके साथ चले, उन्हें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात के ख़िलाफ़ साज़िश करने वाले लोगों के रूप में पेश कर रहे थे। 5 मार्च को एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा था, “…भारत भर में मीडिया के द्वारा (गुजरात के ख़िलाफ़) एक अहिंसक धर्मनिरपेक्ष हिंसा भड़काई जा रही है।”
गुजरात गौरव यात्रा
2002 में भारत की मीडिया में आत्मा बची थी। वह बतला रहा था कि गुजरात में क्या हो रहा है। इसे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात के ख़िलाफ़ एक अहिंसक धर्मनिरपेक्ष हिंसा बतला रहे थे। कुछ महीने बाद उन्होंने गुजरात गौरव यात्रा निकाली। यात्रा निकालने के कारण के बारे में बतलाया कि वे इस यात्रा के ज़रिए राज्य के 5 करोड़ लोगों की गौरव गाथा बतलाना चाहते हैं। यह गोधरा, नरोदा पाटिया, गुलबर्ग की कहानी नहीं है। गुजरात हत्यारों, बलात्कारियों का राज्य नहीं जैसा छद्म धर्मनिरपेक्ष, कट्टर और सत्ता के भूखे कांग्रेसी नेता बतलाने की कोशिश कर रहे हैं।”
याद कर लें कि ये नाम मुसलमानों के बड़े संहार से जुड़े हैं।
यह भाषण अगस्त, 2002 में दिया गया था। ठीक 20 साल पहले। तब जिसने यह भाषण दिया था, आज वही व्यक्ति उसी गुजरात में अपने लोगों को उसी बदनामी के अभियान की याद दिला रहा है। तब जब पूरे देश में एक बार फिर गुजरात सरकार की तीखी आलोचना हो रही है।
इशारे से बतलाया जा रहा है कि अभी जो लोग बिलकीस बानो के मुजरिमों की रिहाई के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं, वे उसी अभियान का हिस्सा हैं, जो तब गुजरात को बदनाम कर रहे थे, उसके ख़िलाफ़ एक अहिंसक धर्मनिरपेक्ष हिंसा भड़का रहे थे।
जो प्रधानमंत्री की चुप्पी से निराश हैं, उन्हें अपने कान का इलाज कराना चाहिए। प्रधानमंत्री बोल रहे हैं, जैसे तब गुजरात के मुख्यमंत्री बोल रहे थे। उन्हें 3 साल की सालेहा के कातिल भी सुन रहे हैं और सालेहा की माँ बिलकीस बानो भी सुन रही है। एक ही भाषण के मायने दोनों के लिए अलग हैं।
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