क्या आपने आतंकवाद विरोधी शपथ ली है? सभी प्रकार के आतंकवाद और हिंसा का डटकर विरोध करने की शपथ? मेरे एक युवा मित्र ने मुझसे पूछा। 21 मई की रात हो चुकी थी। इस सवाल से मैं चौंक गया। अभी जब कोविड का आतंक इस कदर हावी है कि हम जैसे लोग कायरों की तरह दरवाजे बंद करके घरों में दुबके हुए हैं तब मुझसे किस आतंक का विरोध करने की माँग की जा रही है?
“क्या ऐसी कोई शपथ लेनी थी?” मैंने पूछा। “जी! लेनी ही नहीं दिलवानी भी थी।” “आज ही क्यों?” फिर ध्यान आया कि वह 21 मई का दिन था। ठीक 30 साल पहले 21 मई को ही राजीव गाँधी की हत्या कर दी गई थी। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) के सदस्यों के द्वारा। तब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी। इस हत्या को आतंकवादी कार्रवाई माना गया।
सरकार ने तय किया कि प्रत्येक वर्ष 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इसका मकसद है युवाओं को आतंकवाद से विरत करना, हिंसा की पूजा के रास्ते से हटाना। एलटीटीई आतंकवादी समूह था। उसके नेता मारे गए, गिरफ्तार हुए। किसी ने आँसू नहीं बहाए। लेकिन तमिलों का जनसंहार करने वाले महिंदा राजपक्षे से दुनिया के सारे शांतिवादी हाथ मिलाने में फ़ख्र महसूस करते हैं?
गृह मंत्रालय का निर्देश
सिर्फ यह शपथ युवाओं को क्यों लेनी थी? क्या आतंक, हिंसा की मुझ जैसे प्रौढ़ पूजा नहीं करते? फिर देखा कि सरकार ने इसका ख्याल रखा है।
गृह मंत्रालय का परिपत्र है जिसमें सभी सरकारी इदारों के कर्मचारियों को, चाहे वे किसी भी उम्र के हों, यह शपथ लेनी है कि वे आतंकवाद का, हिंसा का डटकर विरोध करेंगे। तो यह वयस निरपेक्ष हिंसा-विरोध है, यह देखकर संतोष हुआ। शपथ 21 तारीख को ली जानी है, ऐसा निर्देश था।
समझा कि जैसे सरकारी निर्देश हर जगह पहुँचते हैं, विश्वविद्यालयों में भी भेजे गए होंगे। और उनके अधिकारियों ने इसे राष्ट्रीय दायित्व मानकर अपने कर्मचारियों को, जिनमें हम अध्यापक शामिल हैं, इस आतंकवाद विरोधी शपथ अभियान में शामिल होने का आदेश दिया होगा।
2021 के परिपत्र में आज की विशेष परिस्थिति का ध्यान रखा गया है। सो, दूरी रखते हुए या ऑनलाइन माध्यम से अपने घरों से इस शपथ समारोह में शामिल होने की ताकीद है। शपथ ली गई, इसका पता कैसे चलेगा? क्या उसकी रिकॉर्डिंग भेजनी है?
“रन फॉर यूनिटी” के दिन दौड़े क्या?
आजकल के युवा आपकी उम्र का लिहाज नहीं करते, सो मुझसे पूछा गया कि अच्छा, यह बताइए पिछले “रन फॉर यूनिटी” दिवस को आप देश की एकता के लिए दौड़े थे या नहीं? 2014 से सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन को मुकर्रर कर दिया गया है कि सब देश की एकता के लिए दौड़ें।
स्वच्छता दिवस के दिन क्या किया?
गाँधीजी की जयंती को स्वच्छता सन्देश के प्रसारण का जिम्मा दिया गया है। अगला सवाल था, “स्वच्छता दिवस” को आपने क्या किया था? कुछ किया था इसका क्या प्रमाण है? क्या आपने सीढ़ी चढ़ते-उतरते सेल्फी लेकर अधिकारियों को भेजी थी? झाड़ू लेकर सफाई करते वक्त की तस्वीर? सवाल वाजिब थे।
हर घटना का दस्तावेजीकरण
मैंने विभागाध्यक्ष को “योगा-डे”, “स्वच्छता दिवस” आदि पर सबसे परेशान देखा था इस बात के लिए कि उसकी रिकॉर्डिंग हो रही है या नहीं। फोटो उतारी गई या नहीं? आधुनिकता की परिभाषा में यह शामिल नहीं किया गया है कि उसका एक महत्वपूर्ण पक्ष है हर भाव, घटना का दस्तावेजीकरण।
अच्छा है, मनुष्य अपनी मूर्खताओं का अलबम बनाता चले तो आने वाली पीढ़ियाँ मनोरंजन के लिए कुछ उपाय न होने पर उसे पलटकर अपने पूर्वजों का आनंद ले सकेंगी।
वैसे, बहुत वक्त नहीं गुजरा है, 2014 को धूमधाम से स्वच्छता दिवस मनाने निकले अपने तत्कालीन कुलपति की विवेकानंद की प्रतिमा के आगे दस्ताने वाले हाथ में तलवार की तरह तनी झाड़ू की तसवीर की स्मृति अबतक गुदगुदी देती है।
मनुष्य शायद हमेशा से ही दस्तावेजीकरण करने वाला प्राणी रहा है। लेकिन अब दस्तावेज वास्तव में सबूत है। हम स्वच्छता संकल्पी हैं, हम योगार्थी हैं, हम एकतावादी हैं, हम आतंकवाद विरोधी हैं, आदि,आदि! यह हमारे चित्रों से प्रमाणित होगा।
शपथ की संस्कृति
लेकिन मेरा दिमाग अटक गया संकल्प या शपथ या कसम पर। जो देश हरेक चीज़ के लिए अपने लोगों को शपथ लेने पर बाध्य करता हो, वह कैसा देश है? और यह शपथ की संस्कृति ही क्या है?
कुछ साल पहले जिन्हें वैज्ञानिक राष्ट्रपति कहकर देश के बौद्धिक नेता के रूप में भी पूजा जाने लगा था उनकी एक आदत ने उनकी तरफ से मेरा मन फेर दिया था। वह आदत थी हर जगह बच्चों को इकठ्ठा करके उनसे शपथ दिलवाने की। वे उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने और अच्छा भारतीय बनने की शपथ दिलवाते थे।
शिक्षा पूरी करना क्या सिर्फ अपने संकल्प पर निर्भर है? मैं मेहनत करूँगा, मेहनत करूँगा, मेहनत करूँगा, यह दुहराना क्या काफी है? वे लाखों बच्चे-बच्चियाँ जो स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं या धकेलकर निकाल दिए जाते हैं वहाँ से, क्या संकल्प शक्ति की कमी के कारण ऐसा होता है?
बच्चों को उनसे उलटकर कभी कहना था कि आप भी शपथ लीजिए कि हर वर्ष अपनी सरकार के बजट में कम से कम 6% शिक्षा पर खर्च करने का निर्देश देंगे। लेकिन वे ऐसा कर नहीं सकते थे। राष्ट्रपति के बंधक श्रोता थे वे!
शपथ का स्वांग
मैंने राष्ट्रपति कलाम को जब वे राष्ट्रपति थे तब और जब नहीं रह गए तब भी बच्चों को देखते ही उन्हें शपथ दिलाते हुए उनको अत्यंत संतुष्ट और मुदित देखा। कभी इस शपथ के स्वांग पर सोचने का अवकाश उन्होंने खुद को नहीं दिया होगा। अच्छा भारतीय कैसे बना जाता है? यह शपथपत्र में नहीं बताया था।
छात्रों को आतंकवादी साबित किया!
बात-बात में शपथ लेने का निर्देश जो राज्य अपने लोगों को देता है, वह असुरक्षित राज्य है। लेकिन मेरे युवा मित्र ने पूछा कि यह आतंकवाद विरोधी शपथ आप अभी छात्रों से दिलवा ही कैसे सकते हैं? अभी, जब आपने जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय और दूसरे संस्थानों के कई छात्रों और अध्यापकों को आतंकवाद विरोधी कानून में गिरफ्तार कर रखा है। सरकारी तौर पर वे आतंकवादी मान लिए गए हैं। अखबारों, टीवी सबने उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया है।
इस वक्त इस सरकारी आतंकवाद विरोधी संकल्प का वास्तविक आशय क्या होगा? क्या हम छात्र गुल्फिशा, आसिफ तन्हा, सफूरा जरगर, नताशा नरवाल, देवांगना कालिता, शरजील इमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर, इन सबसे लड़ेंगे? क्या हम हैनी बाबू और आनंद तेल्तुमबड़े की किताबें अब नहीं पढ़ें?
आखिर इस देश की सरकार और उसकी पुलिस ने उन्हें दहशतगर्द घोषित किया है! सबसे ऊँची अदालत भी उनपर जो इल्जाम है उसे इतना संगीन मानती है कि जमानत भी नहीं दे सकती! सवाल वाजिब था। इस वक्त इस सरकारी संकल्प में शामिल होने का मतलब खुद को इन सबसे दूर कर लेना होगा। और इससे बड़ा झूठ और नाइंसाफी और क्या हो सकती है?
या फिर संकल्प पत्र का शाब्दिक अर्थ ही लिया जाए? हर प्रकार के आतंक और हिंसा का विरोध? यह शपथ हिंसा का कानूनी एकाधिकार जिसके पास है, वह राज्य दिलवाए, यह भी एक विडंबना है। या राजकीय हिंसा को हिंसा नहीं, हिंसा का निवारण मानें?
ये क्रूर काम है!
जो भी हो, भारत में इस समय छात्रों से यह शपथ लेने को कहना सबसे क्रूर कार्य है। अभी चार रोज़ पहले बस्तर के सिलगेर में जब पुलिस ने 4 आदिवासियों को मार गिराया तो वह माओवादी आतंकवाद से लड़ रही थी या खुद दहशत के बूते अपना रुआब उस इलाके में कायम करना चाहती थी?
आतंक क्या है? हिंसा क्या है? यह सवाल अब इज़रायल के यहूदी भी अपनी सरकार से कर रहे हैं और अमेरिका के यहूदी भी। क्या हमास के रॉकेट आतंकवादी कार्रवाई हैं तो इज़रायल डिफ़ेंस फ़ोर्स (आईडीएफ़) को एक नियमित आतंकवादी बल क्यों न कहा जाए?
क्या गली-गली, गाँव-गाँव पनप रहे “धार्मिक संत” जो मुसलमानों के सफाए की खुली धमकी देते हुए प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर रहे हैं, वे आतंकवादी हैं या नहीं? क्या “लव जिहाद” के नाम पर बने कानून ही आतंकवादी कानून हैं या नहीं?
आतंकवाद और हिंसा विरोधी संकल्प दिलवाने वाले अध्यापक जो अपनी मर्जी के ख़िलाफ़, बेमन छात्रों से यह संकल्प करवा रहे थे और उसे मना भी नहीं कर सकते थे, वे खुद किस आतंक के शिकार थे? क्या वे उस आतंक से लड़ सकते हैं? उसकी कीमत क्या होगी?
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