जब इस दौर का इतिहास लिखा जाएगा तो उन्हे किताबों में क्या पढ़ने को मिलेगा? हाल की कुछ घटनाएं शायद इसका उत्तर दे दें। यति नरसिंहानंद नाम का एक तथाकथित साधु देश की महिलाओं का खुलेआम अपमान करता है, उन्हे बच्चा पैदा करने वाली मशीन बनाने की आकांक्षा रखता है, देश के मुसलमानों के कत्लेआम का खुलेआम आह्वान करता है और आसानी से जमानत पर रिहा होकर फिर से इसी गंदगी को जनमानस के बीच बांटने लगता है। जब इस नरसिंहानंद पर कार्यवाही नहीं होती और कड़ा संदेश नहीं जाता तो कई और नरसिंहानंदों का उत्पादन शुरू हो जाता है।
दुनिया के किसी भी सभ्य देश में ऐसा मेन स्ट्रीम मीडिया चैनल नहीं देखने को मिलेगा जो खुलेआम अल्पसंख्यकों के खिलाफ इतनी घृणा फैला रहा हो। इसे और इसके विभाजन के एजेंडे को रोकना भी प्रधानमंत्री की ही जिम्मेदारी है। मुश्किल यह है कि इस घृणा के अलग-अलग उत्पाद सिर्फ वो लोग नहीं हैं जो सरकार में शामिल नहीं हैं बल्कि इसमें ऐसे लोगों की भी मिलीभगत हो सकती है जो विभिन्न प्रदेशों की सरकारों में भी प्रमुख पदों पर आसीन हैं।
मध्य प्रदेश के खरगोन की घटना को लेकर जिस तरह मुसलमानों के घरों को बुलडोजर से गिराया गया और प्रदेश के गृहमंत्री द्वारा एक टीवी चैनल पर खुलेआम एक समुदाय के खिलाफ टिप्पणी की गई उससे विभाजन की नीयत और नीति दोनों के समर्थन में पर्याप्त सबूत मिल जाते हैं। खरगोन में नासिर अहमद खान, पूर्व एएसआई, मध्य प्रदेश पुलिस, के घर को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने आग लगा दी। नासिर अहमद ने यह तक कहा कि उनके पड़ोसी की पत्नी ने उकसाते हुए कहा ‘इसे जिंदा जला दो’। प्रदेश की वर्षों तक सेवा करने वाला एक व्यक्ति सिर्फ इसलिए अपना घर खो देता है क्योंकि वह मुस्लिम है, यह शर्मनाक है। एक पड़ोसी अपने पड़ोसी के प्रति मानवता का व्यवहार उसके धर्म को देखकर करने लगा है। अगर इसे न रोका गया तो देश का हर पड़ोस असुरक्षित होगा। हर परिवार असुरक्षित हो जाएगा। इस असुरक्षा का पतन करना और इसका समाधान खोजना भी प्रधानमंत्री की ही जिम्मेदारी है।
गांधी जी मानते थे कि किसी भी लक्ष्य को पाने के दौरान इस्तेमाल किए गए माध्यमों की पवित्रता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना की स्वयं लक्ष्य। ऐसे में किसी व्यक्ति ने सत्ता ‘कैसे’ प्राप्त की यह मायने रखता है, लेकिन सत्ता मिलने के बाद खासकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे पदों तक पहुँचने के बाद व्यक्ति को और अधिक सचेत हो जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में इस समय यह नहीं हो रहा। मुझे नहीं पता कि भारत के प्रधानमंत्री क्यों यति नरसिंहानंदों और सुरेश चवानके जैसे लोगों को पनपने और बढ़ने दे रहे हैं? मुझे यह भी नहीं पता कि क्यों और कैसे ‘बुलडोजर’ ने देश के कानून और न्यायालय की शक्ल धारण कर ली है? जब न्यायपालिकाएं ‘मुस्कुराहट’ के आधार पर अपराधी और अपराध का विनिश्चय कर रही हों तब देश के प्रधानमंत्री को धर्म से इतर जाकर ‘एकता’ का संदेश तब तक पढ़ते रहना चाहिए जबतक देश की अखंडता से खेल रहे नरसिंहानंदों को सही ‘सबक’ न मिल जाए।
भारत के प्रधानमंत्री हो सकता है इन सभी घटनाओं के लिए सीधे जिम्मेदार न हों लेकिन देश की एकता और अखंडता के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी भारत के प्रधानमंत्री की है न कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल या विश्व हिन्दू परिषद की। देश के लिए संविधान की शपथ भारत के प्रधानमंत्री ने ली है न कि इन संगठनों ने। देश की जनता, जोकि हो सकता है आने वाले भविष्य को न भांप पाती हो, उसने भी वोट और भरोसा देश के प्रधानमंत्री पर ही दिखाया है। ऐसे में उनकी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि देश में हर दिन घृणा की नई खेप पहुँचा रहे संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कदम उठायें और उन्हे ऐसा संदेश दें ताकि फिर से कोई ऐसा न कर सके। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दो बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। हो सकता है एक बार और बन जाएँ। देश की जनता उनके साथ है। लेकिन यदि इस जनता को आने वाले 10 सालों में यह पता चला कि जब चंद लोग अपने व्यक्तिगत हितों के लिए देश के पुनर्विभाजन की चालें चल रहे थे तब प्रधानमंत्री ने देश की अखंडता को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। तब प्रधानमंत्री संग्रहालय का स्वरूप नरेंद्र मोदी जी के अनुकूल नहीं होगा।
प्रधानमंत्री वह पद होता है जिसके माध्यम से सम्पूर्ण विश्व भारत से जुड़ता है। प्रधानमंत्री ही वो शख्सियत होता है जिससे विश्व में देश का सम्मान और अपमान जुड़ता है। ऐसे में अगर विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को एक समुदाय के खिलाफ बुलडोजर इस्तेमाल से प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने के सपने को देखने में सहायता मिलती है तो इसको रोका जाना चाहिए। और यह जिम्मेदारी भारत के प्रधानमंत्री की है। बजाय इसके कि वो बीजेपी शासित मुख्यमंत्रियों की प्रशंसा में कसीदे पढ़ें, उन्हे उनसे कानून व्यवस्था, अल्पसंख्यक अधिकारों और बढ़ती अंतर्धार्मिक खाई के बारे में कठोर प्रश्न पूछने चाहिए।
प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि वो अपने सलाहकारों से पूछें कि जब कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री नहीं रह जाता, उसके हाथ में सत्ता नहीं रह जाती, तब उसके पास क्या बचता है? उन्हे अपने सलाहकारों से लगे हाथ यह भी पूछ लेना चाहिए कि देश के इतिहास में कब, लगभग प्रतिदिन के हिसाब से, किसी एक समुदाय के खिलाफ बलात्कार और नरसंहार की धमकियां दी गईं थी? अगर सलाहकार रीढ़ दिखा पाए तो वो बता सकेंगे कि ‘सर ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ’। दंगे पहले भी हुए हैं और हो सकता है कि आगे भी हों। साफ दिख रहे दंगों को रोकने के लिए सरकारों को आगे आना ही होता है। क्योंकि उसका असर जनता को सीधे और तुरंत दिखता है। लेकिन इस समय जो हो रहा है उसका असर पीढ़ियों तक रहने वाला है। जहर की जिस खेती को नरसिंहानंदों के माध्यम से करवाया जा रहा है उसके उत्पाद करोड़ों देशवासियों को खाने ही पड़ेंगे, चाहे फिर किसी का मन हो या न हो।
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