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चुटकुले सुनाता है और शंख बजाता है उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का तबला!

उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने जब तबले पर थाप दिया तो दिल्ली का कमानी ऑडिटोरियम ठहाकों से गूंज उठा। तबला सुनते समय हँसने की क्या बात हो सकती है? लेकिन ज़ाकिर हुसैन यह करतब कर दिखाते हैं। इसका कारण ये है कि वो सिर्फ़ तबला नहीं बजाते, वो एक ज़बरदस्त किस्सागो भी हैं। छोटी छोटी कहानियाँ और माहौल को हल्का कर देने वाले उनके चुटकुले उनके तबले से भी निकलते हैं! 

प्रसिद्ध कथक गुरु बीरजू महाराज के द्वारा स्थापित कलाश्रम संगीत और नृत्य विद्यालय के 26वें वसंत उत्सव के अवसर पर ज़ाकिर हुसैन ने तबला के जादू से अद्भुत शमां बांध दिया। यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि तबला से शंख की मधुर ध्वनि भी निकल सकती है। ज़ाकिर हुसैन ने यह भी कर दिखाया। 

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तबला को एक सहयोगी उपकरण माना जाता है, जिसका मक़सद संगीत और नृत्य में ताल और लय का साथ देना होता है। ज़ाकिर हुसैन ने साबित कर दिया है कि तबला संगीत का एक स्वतंत्र माध्यम है। ज़ाकिर हुसैन ने छोटी छोटी कहानियों और मज़ेदार हास्य प्रसंगों को तबले की ध्वनि से निकाला। इस आयोजन में उनका साथ दिया सारंगी के उस्ताद मुराद अली खान ने। 

यह सिर्फ़ संगत नहीं था बल्कि उस्ताद खान ने सारंगी पर उन्हीं प्रसंगों को जीवित कर दिया। इस अवसर पर ज़ाकिर हुसैन को पहला बीरजू महाराज सम्मान दिया गया।

कथक नया प्रयोग 

बीरजू महाराज बेज़ोर कथक नर्तक के साथ साथ एक अच्छे कवि भी थे। उन्होंने कथक के लय के साथ अपनी कविताओं पर एक फ़िल्म बनायी थी। इन कविताओं को श्रेया घोषाल, जावेद अली, सुखविंदर सिंह और राशिद खान जैसे मशहूर गायकों ने स्वर दिया है। इन कविताओं पर पहली बार नृत्य की पेशकश की गयी। इसे कथक के नए युग की शुरुआत कहा जा सकता है। 

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भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत की एक समस्या ये है कि ज़्यादातर कलाकार वर्षों पहले लिखी रचनाओं को ही दोहराते रहते हैं। नयी पीढ़ी इससे जुड़ नहीं पाती इसलिए शास्त्रीय संगीत से दूर भागती रहती है। बीरजू महाराज की कविताओं में पुराने प्रतीकों के साथ नयी संवेदनाओं और भावनाओं को व्यक्त किया गया है। इन छोटी-छोटी रचनाओं को शोवना नारायण, वास्वती मिश्रा, ममता महाराज, सुजाता बनर्जी और मैत्रेयी पहाड़ी जैसी नृत्यांगनाओं के निर्देशन में नृत्य नाटिका के रूप में पेश किया गया। इनमें कथक की शैली को बरक़रार रखते हुए आधुनिक नृत्य संयोजन के ज़रिए मन मोहक बनाने की सफल कोशिश की गयी। कलाश्रम की सचिव और बीरजू महाराज की शिष्या सास्वती सेन की परिकल्पना ने समारोह को नया रंग दे दिया। 

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शैलेश
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