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राखी बांधिए लेकिन मुल्क के बहुरूपियों को भी पहचानिए

राखी कच्चे धागों के जरिये भाई-बहन के स्नेह को इंगित करने वाला पवित्र त्यौहार है लेकिन अब इसे भी बाजार की सियासत की नजर लग गयी है। पहले बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर अपने ही नहीं बल्कि अपने सुहाग की रक्षा का भी वचन हासिल करतीं थीं पर अब जमाना बदल गया है। अब राखियां सियासत और कमाई का जरिया बन गयीं हैं। हमने और आपने इतिहास में पढ़ा होगा कि कैसे अतीत में राजपूतानियों ने मुगलों को युद्धकाल में राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और कैसे अपने सुहाग और राज की रक्षा की थी।

 आजकल हम देख रहे हैं कि चाहे नेता हों या व्यापारी, राखी के जरिये अपने मतलब साधने में लगे है। सब बहनों को मूर्ख समझ रहे हैं और उनके स्नेह को लालच देकर खरीदना चाहते हैं। कोई सत्ता चाहता है तो कोई अपना कारोबार बढ़ाना चाहता है। उन्हें बहनों की रक्षा, सम्मान और सुहाग से कोई लेना-देना नहीं हैं। हमारे मध्यप्रदेश में कोई 18 साल सत्ता में रहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अचानक बहनों के आत्म सम्मान की याद आयी तो उन्होंने डेढ़ करोड़ बहनों को हर महीना एक हजार रुपया नगद उनके खाते में भेजना शुरू कर दिया।   18 साल से उनकी ये बहनें कहाँ थीं उन्हें खुद होश नहीं है । अब चौहान साहब अपनी बहनों का वोट हासिल करने के लिए उन्हें राखी के बदले रसोई गैस का सस्ता सिलेंडर और सौ रूपये की बिजली भी देने को राजी हैं। वे अपनी बहनों के आंसू पौंछना चाहते हैं लेकिन बहनोइयों को बेरोजगारी और दुर्दशा से बाहर नहीं निकालना चाहते। बहनें भी एक हजार रूपये में खुश हो रहीं है। 

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 अरे सोचो की इन एक हजार रूपये से न गृहस्थी चलने वाली है और न सम्मान की रक्षा होने वाली है। ये सब तभी मुमकिन है जब उनके सुहाग को रोजगार मिले, बच्चों को नौकरियां और काम धंधा मिले। उनके सर पर तो दबंग पेशाब कर रहे हैं, उन्हें मैला खिला रहे है। उन्हें पीट रहे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की देखा-देखी पूर्व हो चुके कांग्रेस के कमलनाथ भी सत्ता का शेषनाग नाथने के लिए बहनों को बरगला रहे है। वे कहते हैं कि हमारी सरकार बनवा दो तो हम डेढ़ हजार रुपया महीना देंगे। ये भाई हैं या सौदागर है? 

बहनों को ये जानना होगा कि ये वे भाई हैं जिनके राज में दस रूपये किलो बिकने वाला टमाटर ढाई सौ रूपये किलो बिका। महंगाई आसमान छूने लगी। लेकिन इन भाइयों का रोम तक नहीं फड़का। रक्षाबंधन का पर्व आते ही नेता ही नहीं दवा और गाय का शुद्ध घी बेचने वाले बाबा भी बहनों के प्रति द्रवित हो जाते है । बहनों से अपील करते हैं की अपने सुहाग ही नहीं बल्कि बच्चों को भी जहरीले रसायनों से बचाये और उनका बनाया शुद्ध कच्ची घानी का सरसों का तेल खाये। बाबा जी अपनी बहनों को सचेत करने के लिए अखबारों में एक -एक पेज के विज्ञापन देते हैं लेकिन बहनों से स्नेह जताने के लिए नहीं अपनी जेबें भरने के लिए ।

बाबा तो बाबा साथ ही बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक राखी के जरिये अपनी बिक्री बढ़ाने का मौक़ा हाथ से नहीं जाने देती । ये कंपनियां राजस्थान के घेवर और बुन्दी के लड्डू बनाने वालों की दुश्मन है। ये रंग-बिरंगे विज्ञापन बनाकर कहतीं हैं की राखी पर घेवर और लड्डू नहीं चॉकलेट के पैकेट उपहार में दीजिये। बहनों को ठगने के लिए सेल्समेन बनते हैं अभिनय के बादशाह और शहंशाह। बेचारी बहनें झांसे में आ जाती हैं और लड्डुओं के बदले चॉकलेट खरीद ले आती हैं। जिसमें न खुशबू होती है और न स्नेह। 

भारत की आधी आबादी बहनों की है यानि आधा बाजार उनका है। देश में जब बड़ी संख्या में बहनें गायब होतीं हैं तब कोई मुख्यमंत्री भाई सामने नहीं आता। जब उन्हें मणिपुर में नंगा घुमाकर सामूहिक बलात्कार किया जाता है तब ये तमाम भाई भूमिगत हो जाते है। संसद का समाना नहीं करते लेकिन जब आंधी गुजर जाती है तब इनका लाड़-प्यार बरसात के बादलों की तरह उमड़ने लगता है। 

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बहनों को राखी बाँधने से पहले भाई की कलाई भी देखना होगी । चेहरा, चाल और चरित्र भी देखना होगा। नीयत भी देखना होगी । देखना होगा की भाई फर्जी तो नहीं है। पूछें की भाई जान अस्पताल, स्कूल बनवाने के बजाय लोक पर लोक बनाने पर क्यों आमादा हैं ? । मैं अपने शहर में देखता हूँ कि बहनें बेहद भावुक होतीं है। झूठे -सच्चे अपराधों में जेलों में बंद अपने भाइयों को राखी बाँधने के लिए वे कितना अपमान सहतीं है। कितना भ्र्ष्टाचार सहतीं हैं ? ऐसी निश्छल बहनों को ठगना सियासी और व्यापारी भाइयों कि लिए बहुत आसान होता हैं । वे उनका आसान शिकार बनतीं हैं। ज्योतिषी बहनों को भद्रा और अभद्र के जाल में उलझाते हैं ,जबकि राखी बाँधने कि लिए हर समय शुभ होता है । 

(राकेश अचल की फेसबुक वॉल से)
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