जमीन के लगातार धंसने के कारण संकट के मुहाने पर खड़े उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में स्थित दो होटलों और कुछ घरों को गिराने का काम स्थानीय लोगों के जोरदार विरोध प्रदर्शन के बाद रुक गया है।
पहले इन होटलों और घरों को मंगलवार को गिराया जाना था। लेकिन लोगों के विरोध के बाद इसे बुधवार तक टाला गया लेकिन लगातार विरोध की वजह से बुधवार को भी बुलडोजर की कार्रवाई पर ब्रेक लग गया है।
इस बीच जोशीमठ में मौसम भी लगातार खराब हो रहा है।
होटल के मालिकों का कहना है कि उन्हें इस बारे में पहले से कोई सूचना नहीं दी गई थी। होटल मालिकों ने कहा कि उन्हें इस बारे में अखबार में छपे विज्ञापनों से सूचना मिली। इन होटलों के नाम मलारी इन और होटल माउंट व्यू हैं।
मुआवजे की मांग
जोशीमठ के स्थानीय लोगों ने कहा है कि प्रशासन ने कुछ नहीं बताया है कि जिन लोगों की संपत्तियों को तोड़ा जाएगा उन्हें मुआवजा किस आधार पर दिया जाएगा। उन्होंने मांग की है कि उन्हें बद्रीनाथ धाम मास्टर प्लान की तर्ज पर मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसे देखते हुए जोशीमठ के प्रशासन ने सभी अफसरों और जिन होटलों और घरों को तोड़ा जाना है उनके मालिकों के साथ बैठक की है।
पुलिस और प्रशासन के तमाम अफसरों के साथ ही राज्य सरकार के संबंधित महकमों की टीम भी यहां मौजूद है।
जोशीमठ में अब तक 700 से ज्यादा घरों में चौड़ी दरारें आ चुकी हैं और राज्य सरकार ने 4000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित किया है।
सोमवार को प्रशासन ने जमीन के लगातार धंसने के कारण खाली किए जा चुके मकानों पर रेड क्रॉस के निशान लगाए थे। चमोली के डीएम हिमांशु खुराना ने बताया था कि सिंहधार, गांधीनगर, मनोहरबाग आदि वार्डों को असुरक्षित घोषित कर इन वार्डों में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके साथ ही जोशीमठ को आपदा संभावित क्षेत्र घोषित किया गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बीते शनिवार को जोशीमठ पहुंचे थे और उन्होंने प्रभावित परिवारों से मुलाकात की थी। स्थानीय लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि पिछले साल नवंबर से अब तक लगातार शिकायत करने के बाद भी राज्य सरकार नहीं चेती और उसने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की।
बेतरतीब और अनियोजित विकास
जोशीमठ में जिस तरह के हालात बने हैं उसे लेकर उत्तराखंड के दूसरे जिलों के पर्वतीय शहरों में भी चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं क्योंकि उत्तराखंड बनने के बाद से ही पहाड़ों में बेतरतीब और अनियोजित विकास हुआ है और बीते कुछ सालों में लगातार आपदाएं आती रही हैं।
जोशीमठ के स्थानीय लोग भी बेतरतीब विकास कार्यों के खिलाफ आवाज उठाते रहे लेकिन सरकारों ने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया। लगातार हालात बिगड़ने के बाद जोशीमठ में एनटीपीसी और चार धाम ऑल वैदर रोड के सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई। इसके अलावा एशिया के सबसे बड़े औली रोपवे का भी निर्माण कार्य रोक दिया गया है। क्योंकि इसके नीचे कुछ दरारें देखने को मिली हैं।
जोशीमठ के लोगों का कहना है कि एनटीपीसी की सुरंग ने पूरी जमीन को खोखला कर दिया है और दूसरी ओर बाईपास सड़क के लिए की जा रही खुदाई ने जोशीमठ की बुनियाद को हिला दिया है।
धार्मिक, सामरिक लिहाज से अहम है जोशीमठ
जोशीमठ चीन से लगने वाली भारत की सीमा के चमोली जिले में स्थित है। यहां बद्रीनाथ धाम है जहां देशभर से हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। जोशीमठ उन चार धार्मिक मठों में से एक है जिनकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। तीन अन्य धार्मिक मठ- द्वारका, पुरी और श्रृंगेरी के हैं। जोशीमठ का पुराना नाम ज्योर्तिमठ है।
कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने किशोरावस्था में कल्पवृक्ष के नीचे तप किया था और इसके बाद देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की थी और तब जोशीमठ को ज्योर्तिमठ नाम दिया गया था। बाद में यह जोशीमठ के नाम से प्रचलित हुआ।
बद्रीनाथ जाने वाले पर्यटक और श्रद्धालु जोशीमठ में रुकते हैं। इसके साथ ही सिखों के पवित्र तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब तक जाने वाली यात्रा का मुख्य पड़ाव भी जोशीमठ है। दुनिया भर में प्रसिद्ध वैली ऑफ फ्लावर और स्कीइंग स्थल औली का रास्ता भी जोशीमठ से होकर जाता है।
जोशीमठ का सामरिक महत्व भी है। चीन सीमा से लगने वाले नीति व माणा घाटी के लिए भारतीय सेना व आइटीबीपी के तमाम जवान जोशीमठ से होकर जाते हैं। भारत की आजादी के बाद सेना के बेस कैंप के रूप में जोशीमठ का तेजी से विकास किया गया। जोशीमठ से होकर ही लार्ड कर्जन ट्रैक, नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क, चेनाप घाटी का रास्ता भी जाता है।
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